अबकी बार वह इधर जीते या उधर जीते पर अयोध्या क्यों हारे?

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

एक यक्ष प्रश्न कि साहब

अयोध्या क्यों हारे?

मंदिर से जुड़ी कमेटी और पदाधिकारियों ने बीस बीस लाख में ज़मीन ख़रीदकर मंदिर को ही करोड़ों में बेची थी। इस दलाली में गरीब आदमी बुरीतरः पिस गया, मंदिर से जुड़े बेईमान मौज मार गए।

मंदिर के नाम पर वाराणसी की तरह सैकड़ों हज़ारों घर, दुकान गरीब ठेले ख़ौमचे सब उजाड़ दिये। लोग सड़क पर आ गए लेकिन उनकी चीख किसी ने भी नहीं सुनी। सुनी तो सिर्फ़ उस राम ने, जिसने इन पापियों को अयोध्या से दूर कर दिया।

तमाम शंक्राचार्यों, धर्म गुरुओं और साधुओं की बातों और चेतावनी को अनदेखा कर आधे अधूरे मंदिर में हमारे राम को बैठा दिया, क्यों? वोट पाने के लिए। जब हम इंसानों को ही ये बात बुरी लगी सोचो तो उस राम को कितनी बुरी लगी होगी?

राम मंदिर के नाम पर आए चंदे में ही बंदरबाँट हो गई। इन पापियों ने कई जगह फर्जी रसीद छपवा कर चंदे की रक़म भी हड़प ली।

सबसे बुरा : कोर्ट ने फ़ैसला दिया, जनता ने चंदा दिया, तुमने क्या किया? ये कि हम राम को लाए। कौन ला सकता है उस राम को जो सबको लाए! इतना अहंकार कि मोदी भगवान का हाथ पकड़कर मंदिर ले जा रहे हैं। ऐसा तो इस देश में भगवान का अपमान कभी नहीं हुआ। उसकी नाराज़गी ही तुम पर भारी पड़ी।

अब लगाते रहना हिसाब और देते रहना जनता को गाली। पर उसी राम ने तुम्हारा सब कुछ हिसाब कर दिया। और सुनो अभी तो उसने सिर्फ़ चेतावनी देकर छोड़ा है। अगर फिर उसका नाम बेचा तो सोचो अंजाम क्या होगा?

साभार: पिनाकी मोरे

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