कविता: मुझे पता नहीं ~ अभिषेक देव वशिष्ठ
हार जीत के इस रण में,
हुआ विजयी कौन ?
मुझे पता नहीं..
जो था धर्म के तल पर
वह नभ में शीश उठाकर चलता ,
अधर्म के हर पन्ने पर,
सम्मान अपना वजूद ढूंढता..
यदि होगा रण मे,
राणा सा वीर कोई
जो गिरकर उठता,
फिर न गिरता I
देख जिसे
शत्रु भी काँपे
गर्जन उसकी , सह न पावे
सब सोचे,
वीर गिराने को..
जैसे पर्वत टहलाने को..
वीर कभी न आघाता है,
उनके वार को समझ जाता ह्
हुई भूल उनसे,
की आये रण मे
देख वीर को पछताए
छण भर मै.
हार जीत के इस रण में,
हुआ विजयी कौन ?
मुझे पता नहीं..
~अभिषेक देव वशिष्ठ
