जनसंख्या क़ानून का समर्थन करना मूर्खता से अधिक कुछ नहीं है । इसे समझे कि यह मूर्खता क्यों है ? जाने !
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रिपोर्टर:-
भारतीय जनगणना के अनुसार हमारे यहाँ का टोटल फ़र्टिलिटी रेट ( TFR ) लगातार घट रहा है ।
संयुक्त राष्ट्र की पॉप्युलेशन डिविज़न के अनुसार अगर किसी देश का TFR 2.1 है तो उस देश में जेनरेशन रिप्लेसमेंट पर्फ़ेक्ट तरीक़े से हो जाएगा।
मतलब युवाओं और बूढ़ों में बैलेन्स बना रहेगा और अगर TFR 2.1 से नीचे गया तो अगले 15-20 सालो में देश बूढ़ों का देश हो जाएगा जैसे चीन , जापान आदि हो चुके हैं।
चीन ने इसीलिए अपना जनसंख्या क़ानून वापस ले लिया है ।
अगर भारत की जनगणना के हिसाब से यहाँ की TFR की तुलना करे तो :
1971 – 5.2
1981 – 4.5
1991 – 3.6
2001 – 3.1
2011 – 2.2
2021 की जनगणना अभी हुई नहीं है , उम्मीद है हमारा TFR पहले ही पर्फ़ेक्ट रिप्लेस लेवल 2.1 से नीचे पहुँच चुका होगा ।
फिर जनसंख्या क़ानून को लागू करना मूर्खता है या अक़्लमंदी आप खुद तय कर लें ।
हमने पहले भी लिखा है और फिर लिख रहे है कि जनसंख्या क़ानून सिर्फ़ और सिर्फ़ देश को यह समझाने के लिए है कि कोरोना में हुई मौतों से देश का भला हुआ है ।
अधिक जनसंख्या देश पर बोझ है और लोगों के मरने से यह बोझ कम हुआ है!
मौत से मुक्ति वाला कॉन्सेप्ट भी इसीलिए भागवत जी लेकर आए थे ।
मूर्खता मत कीजिए , यह मुद्दा हिंदू मुस्लिम का मुद्दा ना था और ना है ।
जनसंख्या अब बढ़ चुकी है , इसे कम करने का कोई कारगर तरीक़ा किसी के पास नहीं है ।
इसको मेंटैन किया जा सकता है और वो भारतीय समाज बिना किसी क़ानून के कर चुका है ।
जनसंख्या क़ानून लागू होने से महिला पुरुष अनुपात में भी देखने लायक़ बदलाव आएँगे और देश भी कुछ साल बाद बूढ़ों का देश हो जाएगा ।