पांचों टाइम हर मस्जिदों में आजान की गूंज सुनाई देती है जो लाजमी है , लेकिन के खिलाफ पाबंदियां और रोकथाम के कहीं हम खुद जिम्मेदार तो नही है?

क्या अज़ान पर पाबन्दी के हम खुद जिम्मेदारन हैं ?

आप Google या YouTube पर अज़ान सर्च करेंगे तो आप को बहुत – बहुत खूबसूरत आवाज़ में अज़ान सुनने को मिलेंगी। इन विदेशी मुस्लिम भाईयों की अज़ान में एसी मिठास और कशिश होती है कि लोगों का ध्यान उन की तरफ खिंच जाता है। चलता हुआ मुसाफिर, आदमी रुक जाता है। उन के साउंड सिस्टम भी बहुत अच्छे होते हैं। कई बार सोशल मीडिया पर भी ऐसी विडियोज वायरल हुई हैं कि ग़ैरमुस्लिम भी रुक कर अज़ान सुनते हैं और वीडियो रिकॉर्डिंग तक कर रहे होते हैं।

सब जानते हैं कि हमारे वतन हिन्दुस्तान में काफी वक्त से अज़ान के खिलाफ महौल बनाया जा रहा है। कोशिश की जा रही है कि धीरे – धीरे अज़ान पर पूरे तरीक़े से पाबंदी लगा दी जाए। इसके लिए कहीं खुद आवाम और मस्जिद कमेटिया जिम्मेदार तो नहीं हैं? क्योंकि हमारे यहां ज़्यादातर ऐसे लोग अज़ान लगाते हैं जिनको तर्ज़ और तलफ्फुज़ के बारे में कुछ पता ही नहीं होता। उन को यह भी नहीं पता होता है कि कहां खींचना है और कहा नहीं खिचना है।

ज़्यादातर तो ऐसे बुज़ुर्ग अज़ान लगते हैं कि दांतों की कमी होने की वजह से अल्फ़ाज़ तक की अदायगी नहीं होती। वे सिर्फ माइक को बिल्कुल मुंह में चिपका कर ज़ोर से चीखना जानते हैं, बाकी हमारी मस्जिदों का साउंड सिस्टम उन की आवाज़ में चार चांद लगा देता है। इतनी सारी कमियों के होते हुए कैसे हमारी अज़ान में उन विदेशी मुस्लिमों की तरह मिठास और कशिश आ सकती है ? ऐसी अज़ान जो हमारे ही दिल में नहीं उतरती वह गैरमुस्लिमों को कैसे भा सकती है ? वे तो पाबन्दी लगवाना ही चाहेंगे। हमें इन बातों पर आज से ही ध्यान देना होगा –

हमारी मस्जिदों में मुअज्जिन के तौर पर अच्छे क़ारी होने चाहिए जो अच्छी आवाज़ में अज़ान भी लगाएं और इमाम साहब की गैरमौजूदगी में ठीक तरीके से नमाज़ भी पढ़ाएं। मुअज्जिन साहब के अलावा सिर्फ वे ही लोग अज़ान लगाएं जिन को तलफ़्फ़ुज़ के साथ सही तरीक़े से अज़ान लगाना आती हो। ला इल्म लोगों को अज़ान लगाने से रोका जाए। साउंड सिस्टम अच्छी क्वालिटी का होना चाहिए। कम वॉल्यूम पर इको वगैरा की अच्छे से सेटिंग कर ताले में बंद रखना चहिए, जिससे कि हर कोई आकर उसमे कलाकारी न दिखाए।

जब सही तरीके से खूब मिठास और कशिश से भरी अज़ान की आवाज़ फिज़ा में गूंजेगी तो एक अलग ही खुशनुमा माहौल पैदा होगा और इन्शाअल्लाह अज़ान सुन कर ही लोग मस्जिद की तरफ खिंचने लगेंगे। पाबन्दी तो दूर की बात है। गैर कौम की भी कोई रोक थाम नही होगी। खुद कहेंगे फला मोहल्लों की मस्जिद में ऐसी सुरेली आज़ान

सुनाई नही दे रही। क्या वजह है?
अल्लाह हमें अमल की तौफ़ीक दे, आमीन।

प्रस्तुत
ड्रॉक्टर मुहम्मद सामी

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