बार बार इस स्तर का महज इंटेलिजेंस फेलियर महज इनकी ही सरकारों के शासन के दौरान ही क्यों हुवा करता है?
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
सवाल पूछिये कि कारगिल युद्ध को ट्रिगर करने के लिये पाकिस्तान के इतने सैनिक इतनी लॉजिस्टिक्स व्यवस्था कर के, बंकर आदि बनाकर हमारी सरहद में इतना अंदर आख़िर आये कैसे थे?
सवाल पूछिये कि बार बार इस स्तर का इंटेलिजेंस फ़ेलियर केवल BJP सरकारों के शासन के दौरान ही क्यों हुआ करता है?
ये भी सवाल पूछिये कि जब कारगिल युद्ध की जीत का सेहरा बोफ़ोर्स तोप / गन पर ही बँधा, तो आधिकारिक तौर पर इसे स्वीकार करने में संकोच क्यों रहा?
सवाल पूछिये कि कारगिल के शहीदों के लिये खरीद किये गये रद्दी क्वालिटी के ताबूत घोटाले की जाँच आज किस स्तर पर है?
सवाल पूछिये कि देश के लोकतंत्र के मंदिर में जब कारगिल संबंधित घोटाले discuss होने वाले थे, तभी संसद पर हमला हुआ और पूरी चर्चा का discourse या माहौल कैसे फिर से “राष्ट्रवाद” की तरफ़ बदला गया?
सवाल पूछिये कि संसद पर हुए उस हमले के बाद ज़बरदस्ती कराये गये ‘ऑपरेशन पराक्रम’ का क्या औचित्य था?
ऑपरेशन पराक्रम” द्वारा “आर या पार की लड़ाई” करने की भारत के भाजपाई तत्कालीन प्रधानमंत्री की हड़बड़ी के बाद तत्कालीन भाजपाई प्रधानमंत्री के राष्ट्रीय सलाहकार बृजेश मिश्रा ने उतनी ही हड़बड़ी में अमेरिकी सेक्रेटरी ऑफ़ स्टेट्स कोंडेलिसा राइस से क्यों बात की थी और क्या बात की थी ?
और अब ये सवाल भी पूछिये कि “ऑपरेशन पराक्रम” में सेना के फॉरवर्ड मूवमेंट में देश के लोगों के एक हज़ार करोड़ रुपयों को खर्च कराने की परिणति चुपचाप सेनाओं को लौटा लेने में कैसे हुई?
सवाल तो ये भी है कि जब इतिहास गवाह है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में जिनकी मातृ संस्था RSS अंग्रेजों के साथ थी, उसी BJP की सरकारें हमेशा राष्ट्रवाद भुनाने वाली राजनीति कर के ही सत्ता कैसे पाती हैं?
अगर खुले दिमाग़ से कारगिल, देश की संसद पर हमला, फ़िज़ूल में करवाया गया ‘ऑपरेशन पराक्रम’ का मूवमेंट, इन सब की कड़ियाँ आपस में जोड़ेंगे और उसे 2014 से आई BJP सरकार के समय हुए सैन्य बलों और सेना के बेसेज़ पर होते हमलों की रौशनी में देखेंगे तो आसानी से समझ पायेंगे कि “राष्ट्रवाद” से जुड़ी भावनात्मक स्थितियों का उत्पन्न होना ही BJP की जीत सुनिश्चित करता आया है.
और जब ये सब आपकी समझ में आ जाये, तब एक फाइनल सवाल ये भी पूछिये कि क्या “राष्ट्रवाद” से जुड़ीं ऐसी भावनात्मक परिस्थितियाँ किन्हीं कारकों द्वारा उत्पन्न नहीं कराई जा सकती हैं?
ज़रा सोचिये कि अगर देश का फर्जी भावनात्मक “राष्ट्रवाद” न उमड़े तो BJP जीतेगी ही कैसे?
और फिर एक सवाल ये भी उठ ही आता है कि इतने इंटेलिजेंस फ़ेलियर बार बार होते जाने के बावजूद केवल अजित डोवाल ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार क्यों हैं?
इन सभी सवालों को पूछने का साहस ही कारगिल में भारत की विजय को सुनिश्चित करने वाले भारत माँ के अमर शहीद सपूतों के लिये सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कारगिल विजय दिवस।
संवाद; पिनाकी मोरे