समाज में फैली अंध श्रद्धा को आखिर कैसे मिटाया जा सकता है क्या है इसके इलाज?

रिपोर्टर:-
अंधविश्वास को हम केवल शिक्षा, जागरूकता और विवेक से मिटा सकते !
कुछ लोग जादू टोने-टोटके में उलझ कर समय, श्रम और धन की फिज़ूलखर्ची करने लगता ?
इक्कीसवीं सदी में भी अधिकांश आबादी अंधविश्वास में जकड़ी हुई है!
शहरों से अधिक गांवों में इसकी जड़ें गहरी हैं!
वो भी खास कर महिलाएं ओर चाहे लोग पढ़े-लिखें हो या अनपढ़,अंधविश्वास से मुक्ति कोई नहीं पा सका है!
कुत्ता कान फड़फड़ाए तो उसे अपशकुन समझ लेते है।
बिल्ली रास्ता काट जाए तो यात्रा स्थगित कर देते हैं।
कोई छींक दे तो लोग ठहर कर आगे बढ़ते हैं।
न जाने ऐसी कितनी ही बाते हैं जो अंधविश्वास के कारण बनते हुए काम बिगाड़ देती है।
भूत-प्रेतों के नाम पर स्थित और भी अधिक बुरी है!
अधिकतर देखने में आता है कि मनुष्य अपनी इच्छाओं का दास बन गया है।
और उनकी पूर्ति के लिए टोने-टोटके में उलझ कर समय, श्रम और धन का अपव्यय करने लगा है।
वह अपने विवेक को भूल कर गलत रास्ते की ओर कदम बढ़ा रहा है।
यह समाज के विकास में सबसे बड़ी बाधा है।
अंधविश्वास को हम केवल शिक्षा, जागरूकता और विवेक से मिटा सकते हैं।
और इसके लिए प्राथमिक शिक्षा से ही पहल करने की जरूरत है।
समाज के जागरूक तबके को भी इसमें भूमिका निभानी होगी।