हिन्दोस्तान के मुसलमानों तुम्हारे ऊपर बरसों से एक दबाव है, इसे समझो , महसूस करो कि तुम सिर्फ़ इंसान ही नहीं हो बल्कि ‘मुसलमान हो?

रिपोर्टर:-
तुम्हारी ‘ग़लत’ हरकतों के ज़िम्मेदार सिर्फ़ तुम ही भर नहीं हो बल्कि तुम्हारी पूरी क़ौम और तुम्हारे मज़हब का एक-एक अनुयाई है।
तुम सड़क पर चलते हो तो इंसान नहीं चलता, बल्कि मुसलमान चलता है।
तुम्हारी हर एक आदत फ़ितरत को सब बहूत ग़ौर से देखते हैं, और तुम्हारा एक ग़लत क़दम तुम्हें शक में डाल देता है।
इसीलिए तुम्हें हर काम बहूत सचेत होकर करना चाहिये, ग़लतियों की कोई गुंजाइश तुम्हारे लिए नहीं है।
कोई और सड़क पे थूकेगा तो वो सिर्फ़ थूकेगा जो कि इंसानों के लिए सामान्य है, वहीं तुम थूकोगे तो कोरोना फैलाने वाले हो जाओगे।
कोई और ISI और चीन के लिए जासूसी करेगा तो वो ‘हनी ट्रैप’ का शिकार होगा,
तुम्हारा कोई कहीं पकड़ा गया तो तुम्हारी पूरी क़ौम को ग़द्दार कहा जाएगा।
कोई और कत्ल करेगा तो कातिल कहा जायेगा।
मगर यही कोई मुसलमान करेगा तो ‘ये करते ही ये हैं!
कोई और अपराध करेगा तो वो अपराधी, तुम में से कोई करेगा तो मुसलमान ‘ऐसे’ होते ही हैं!
कोई और मुसलमान लड़की से शादी करे वो ‘लव मैरिज’,, तुम में से कोई करे वो ‘लव जिहाद’?
कोई और मांस खाए तो शौक़, पसंद, चखना, तुम खाओ तो कसाई, निर्दयी।
कोई और मज़दूरी करे तो वो मेहनती, तुम करो तो ‘पंचर छाप।
कोई और अपने जाति , मज़हब वाले हत्यारे और बलात्कारी के समर्थन में जुलूस निकाले तो वो सिर्फ़ ‘समर्थक,’ तुम में से कह दे तो तुम्हारी पूरी क़ौम ‘ज़ालिम सोच’ वाली।
कोई और सिर्फ़ ‘गोश्त’ के शक में तुम्हें पीट-पीट कर मार भी दे तो वो उनकी आस्था को चोट, लेकिन तुम अपने धर्म के अपमान पे बोले तो तुम ‘धर्मांध?
कोई और UPSC टॉप करे तो इंटेलिजेंट, काबिल, तुम में से
करे तो UPSC जिहाद।
कोई और एन्टी-ब्राह्मण पोस्ट पर हत्या कर दे वो मात्र अपराध, दुनिया के किसी कोने में कोई मुसलमान ऐंटी-पैग़म्बर उपहास पे हत्या कर दे तो तुम सारे के सारे आतंकवादी।
कोई और अपने इष्टों की बिकनी, चप्पल पे बनाए जाने का विरोध करे तो वो आस्था, तुम अपनी जान से प्यारे नबी के कार्टून का विरोध करो तो असहिष्णु और कट्टरपंथी!
कोई और अपनी औलादों की हत्या महज़ किसी और से प्यार करने की वजह से कर दे तो वो ऑनर किलिंग, तुम में से कोई जाहिल ऊर्दू नाम वाला करे तो पूरी क़ौम क्रूर और कट्टर?
कोई और लड़कियों के जींस, मोबाइल और मर्दों से बराबरी को रोके तो वो संस्कृति का रखवाला, मगर तुम में से करे तो ‘तालिबानी सोच’ वाले!
ऊपर तुलनात्मक उदाहरण इस लिए दिये कि एक ही अपराध को देखने के दो चश्मे हैं, एक सबके लिए दूसरा मुसलमानों के लिए, जो की ठीक नहीं है।
अपराध करने वाला सिर्फ़ अपराधी होता है, हिंदू, मुसलमान, सिख ईसाई इत्यादि नहीं।
हत्या हर हाल में निंदनीय है, किसी पे भी ज़ुल्म निंदनीय है, किसी के साथ भी ज़बरदस्ती करना निंदनीय है, मगर वो निंदनीय फिर सब के लिए है।
ऐसा नहीं कि एक ही तरह का जुर्म कई लोग करें और ज़िम्मेदार सिर्फ़ जुर्म करने वाला ही हो, और अगर वही जुर्म करने वाला ऊर्दू नाम वाला हो तो फिर उसकी पूरी क़ौम के लोग और धर्म ग़लत कैसे?
ऐसे ही हर एक छोटे-बड़े अपराध कोई और करे तो महज़ अपराध है, ग़लती है?
मगर तुम में से ऐसा कोई करे तो वो तुम्हारे पूरे मज़हब की ज़िम्मेदारी है।
इसी लिए ख़ुद को देखा करो, सोचा करो, तभी कुछ कहा करो, तभी कुछ किया करो, क्योंकि तुम सिर्फ़ तुम नहीं हो,बल्कि तुम ‘मुसलमान’ हो।