अबकी बार 400पार का नारा फैल, उनका मैजिक भी फेल और लक्ष्य भी हुआ बे चिराख
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
देशबन्धु में संपादकीय आज.
मोदी मैजिक फेल, लक्ष्य भी ध्वस्त
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जिस कथित करिश्माई व्यक्तित्व के बल पर भारतीय जनता पार्टी ने इस लोकसभा चुनाव में अपने बल पर 370 और नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) के बल पर 400 सीटों से ज़्यादा का लक्ष्य निर्धारित किया था, वह मतदान के पांच चरण निकलते-निकलते इसलिये हवा में उड़ता नजऱ आ रहा है क्योंकि अब न तो मोदीजी के पास कोई नयी बात कहने को रह गई है और न ही उनके व्यक्तित्व से लोग आकर्षित हो पा रहे हैं।
इसका कारण यही है कि भाजपा के विमर्श का आधार उनका चेहरा था, जबकि उन्हें टक्कर देता इंडिया गठबन्धन विमर्श के आधार पर कई करिश्माई व्यक्तित्व गढ़ चुका है जो देश के चारों दिशाओं में धूम मचा रहे हैं।
विमर्श की बात करें तो लगता है कि भाजपा के पास अपना कोई भी नैरेटिव नहीं रह गया है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी जो कहते हैं वही भाजपा का विमर्श और विषय होता है; और मोदी जी जो कहते हैं वह कांग्रेस या इंडिया गठबन्धन के नेताओं द्वारा कही गई किसी बात की प्रतिक्रिया मात्र होती है। अब भाजपा की सभाओं में दिखने वाली भीड़ केवल जुटाई गई होती है जो लौटते वक़्त कोई नयी बात लेकर नहीं जा रही है।
चूंकि यह हुजूम लाया हुआ है इसलिये वह मोदी या भाजपा के भाषणों के दौरान कहां पर ‘मोदी मोदी’ कहना है, बखूबी जानता है। इसे ही दरबारी मीडिया प्रस्तुत करता है। यह माहौल बनाने में उसका योगदान होता है जबकि अब तक सम्पन्न हुए 418 लोकसभा सीटों पर मतदान के बाद जो अनुमान आ रहे हैं वे साफ बता रहे हैं कि भाजपा-एनडीए लगभग सभी राज्यों में पिछड़ रही है। मोदी मैजिक तो हवा में उड़ ही चुका है, वह अपने साथ 370-400 पार के नारे को भी उड़ा ले गया है।
अनेक ऐसे संकेत मिल रहे हैं जो इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि खुद भाजपा कार्यकर्ता एवं उसकी मातृ संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक इस बार के चुनाव को लेकर उदासीन हैं। इसका एक संकेत सभी चरणों में कम मतदान का होना है। भाजपा व संघ दोनों के ही कार्यकर्ता जानते हैं कि मोदी अपने सबसे बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिये संघर्षरत हैं और वे 400 पार लाकर वह करना चाहते हैं जो भाजपा के कहीं पहले संघ का लक्ष्य रहा है- संविधान व लोकतंत्र को समाप्त कर मनुवादी व्यवस्था को लाना।
ऐसे आड़े वक्तू में अगर दोनों संगठनों के कार्यकर्ता मतदान कराने के लिये 2014 एवं 2019 की तरह घरों से नहीं निकल रहे हैं तो मानकर चलना होगा कि इन पर से मोदी की पकड़ छूट चुकी है। इन संगठनों के कार्यकर्ता यह भी जान गये हैं कि जिन उद्देश्यों के लिये नरेंद्र मोदी ने यह नारा दिया है वह हासिल करने के लायक नहीं है। सम्भवत: उन्होंने यह भी सोच लिया है कि अगर हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा को साकार करना भी है तो वह कम से कम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में तो बिलकुल नहीं करना है क्योंकि दोनों ने इसके प्रति लोगों में शंकाएं एवं अरुचि पैदा कर दी है।
इन दोनों संगठनों के कार्यकर्ता यदि अपनी नाराजग़ी या उदासीनता जो भी रही हो, उसे त्यागकर मोदी की मदद के लिये आना भी चाहते तो अब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के उस बयान के बाद तो बिलकुल ही आने से रहे जिसमें नड्डा ने कहा है कि ‘अब भाजपा बड़ी हो चुकी है तथा उसे अब राजनैतिक कामों के लिये संघ की ज़रूरत नहीं रह गई है।
नड्डा का यह भी मानना है कि ‘पहले चाहे संघ पर भाजपा आश्रित थी पर अब दोनों अपने-अपने कामों को स्वतंत्रतापूर्वक करते हैं- भाजपा राजनीतिक काम और संघ विचारधारा सम्बन्धी कार्यकलाप व सांस्कृतिक गतिविधियां।’ यह तय है कि इस बयान के बाद अब भाजपा को अगले तथा अंतिम दो चरणों में संघ की मदद मिलने से रही। 400 सीटों का लक्ष्य पाना तो दूर, अब वह सत्ता बचा ले यही बहुत है।
कुछ बातें और जो सामने आई हैं उनमें प्रमुख यह है कि भाजपा ने जिस विषय को इस चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनाने की सोची थी, वह पूरी तरह से गौण हो गया है। अयोध्या में राम मंदिर का। 2019 के बाद से ही बड़े सुनियोजित तरीके से मोदी ने रामलला मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कराया और आनन-फानन में उसका निर्माण करवाया। इतना ही नहीं, आधे-अधूरे रूप से निर्मित मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा स्वयं मोदी ने एक भव्य समारोह में की।
कुछ दिनों पहले एक प्रतिष्ठित संगठन ने जो सर्वे किया उसके नतीजों ने भाजपा को मैदान से ही बाहर कर दिया। सर्वेक्षण ने बतलाया कि केवल 6 फ़ीसदी लोग ही राम मंदिर को चुनाव के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण मुद्दा मानते हैं। ज्यादातर लोगों ने बेरोज़गारी व महंगाई को सबसे अहम मसले बतलाकर मोदी व भाजपा की सारी तैयारियां ध्वस्त कर दीं। यही कारण है कि खुद मोदी ने अपने चुनाव प्रचार में इस विषय का सबसे कम बार उल्लेख किया।
कांग्रेस के कथित परिवारवाद सम्बन्धी मोदी-शाह के बयानों से लोग ऊब चुके हैं और विपक्षी नेताओं पर लगाये जाने वाले भ्रष्टाचार सम्बन्धी आरोपों पर भी कोई भरोसा नहीं कर रहा क्योंकि सभी भ्रष्टाचारियों के लिये भाजपा ने द्वार खोल रखे हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड्स का पर्दाफाश है ही।
जिस एनडीए के दम पर भाजपा 400 पार जाना चाहती है उसकी सभाओं में सहयोगी नेताओं की मौजूदगी नहीं होती और इंडिया की तरह उसकी संयुक्त सभाएं भी नहीं होतीं। मोदी मैजिक फेल, लक्ष्य भी ध्वस्त, सारा मोदी फैक्टर ही फैल हो चुका है।
संवाद:पिनाकी मोरे