इंग्लैंड में मौलाना मो.अली की वफात के बाद उन्हें फलिस्तीन में क्यों दफनाया गया?

रिपोर्टर:-
मौलाना मोहम्मद अली जौहर रह.की वफात जब इंग्लैंड में हुई तब उनकी तदफीन को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं कि इंग्लैंड में हो या हिंदुस्तान में ?
तब आलम ए इस्लाम की एक मुमताज़ हस्ती और फ़लस्तीन के मशहुर रहनुमा अल्हाज मुफ़्ती अमीन अल हुसैनी के दिल में ये ख़्याल पैदा हुवा, कि वो मौलाना जौहर के रिश्तेदारो को ये मशवरा दें कि वो उनका जनाज़ा बैतुल मुक़द्दस लाएं और मुबारक जमीन में उनकी कब्रगाह बने।
मुफ़्ती साहब ने इस तरह का तार मौलाना शौकत अली को भेजा और उनको जानकारी दी कि मस्जिद ए अक़्सा की चार दिवारी के अंदर एक कमरा उनकी कब्रगाह के लिये उनके एक गुमनाम चाहने वाले ने पेश किया है।
इस खबर उनके रिश्तेदार भी राज़ी हो गए और इंग्लैंड वालों को भी ख़ामोश होना पड़ा!
उनके जनाज़े को समुद्री जहाज से फिलिस्तीन पहुंचाया गया ।
मौलाना शौकत अली जैसे ही अपने छोटे भाई मौलाना मुहम्मद अली जौहर के जनाज़े को लेकर इंगलैंड से मिस्र पहुंचे तो मिस्र के बेशुमार मुसलमान उनके इंतजार में मौजुद थे।
उनमें से बहुत सारे लोग जनाज़े के साथ बैतुल मुक़द्दस को रवाना हुए।
मुफ़्ती अमीन साहब ने नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ाया जिसमें फिलिस्तीन मिस्र और दीगर जगहों के करीब 2 लाख मुसलमान शामिल थे ।
और फिर मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मस्जिद ए अक़सा के आहते मे दफ़नाया गया;
यहां दफ़न होने वाले एकलौते ग़ैर-अरब और हिन्दुस्तानी बने।
अरब दुनिया उन्हे ज़रीह उल मुजाहिद उल अज़ीम मौलाना मुहम्मद अली अल हिन्दी के नाम से जानती है।
मौलाना मोहम्मद अली जौहर को मस्जिद ए अक़सा (बैतुल मुक़द्दस) के आहते मे दफ़नाने का एक मक़सद था कि किसी भी तरह हिन्दुस्तान के मुसलमान को येरुशलम से जोड़ा जाए वो भी मज़हबी एतबार से , जिस तरह वो मक्का व मदीना से मुहब्बत करते हैं वैसा ही येरुशलम से करने लगे।