इसे जानते तो सब है किंतु इस पर बात कोई नहीं करना चाहता बात है डॉक्टर रईसा अंसारी डॉक्टर रहते ठेले पर क्यों बेच रही है आम, जाने पूरा खुलासा

संवाददाता

ठेले पर आम बेचती डॉक्टर रईसा अंसारी भारतीय संवैधानिक व्यवस्था का वो सच बयान कर रही हैं जिसे जानते तो सब हैं लेकिन इस पर बात कोई नहीं करना चाहता।

इंदौर की देवी अहल्या बाई यूनीवर्सिटी से फ़िज़िक्स में मास्टर और पीएचडी रईसा को बेल्जियम से रिसर्च करने का ऑफ़र मिला।
लेकिन उनके रिसर्च हेड ने उनके रिकमेंडेशन लेटर पर हस्ताक्षर नहीं किया, थीसिस सबमिट होने के दो साल बाद तक उनका वाइवा नहीं किया गया और फिर प्रशासनिक दख़ल के बाद उनका वाइवा हो सका।

रईसा ने सीएसआईआर (काउंसिल ऑफ़ साइंटीफ़िक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च) की फेलोशिप पर कोलकाता के आईआईएसईआर (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च) से रिसर्च की हैं,

एक रिसर्च हेड के हस्ताक्षर नहीं करने की वजह से रईसा शोध करने के लिए बेल्जियम नहीं जा सकीं.
2011 में पीएचडी करने वाली रईसा को एक बार जूनियर रिसर्च के लिए अवार्ड मिला था।

मीडिया उनका साक्षात्कार लेने उनके पास पहुंची।
उनके गाइड का नाम पूछा लेकिन गाइड सामने नहीं आना चाह रहे थे। रईसा ने किसी और का नाम ले दिया। यही बात गाइड को चुभ गई।
फिर आगे की कहानी आप जान ही चुके हैं।

रईसा को एसोसिएट प्रोफ़ेसर की नौकरी भी मिल गई थी।
लेकिन कुछ ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्हें ये नौकरी भी छोड़नी पड़ी।.
वो अब फल बेच रही हैं।
एक पढ़ी लिखी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने वाली महिला को फल बेचते हुए देखकर बहुत से लोगों को अफ़सोस हो रहा है।
मुझे भी कहीं न कहीं अफ़सोस हो रहा है।
लेकिन इस बात का फ़क्र भी है कि एक मुस्लिम महिला ने अपने सम्मान से समझौता नहीं किया।

आप एक बार जरूर सोचिएगा कि डॉक्टर रईसा अंसारी का गाइड व रिसर्च हेड कितना कुंठित होगा जिसने डॉक्टर रईसा अंसारी के रिकमेंडेशन लेटर पर हस्ताक्षर नहीं किया जिसकी वजह से रईसा शोध करने के लिए बेल्जियम नहीं जा सकीं?

आप एक बार जरूर सोचिएगा कि वो सिस्टम कितना कुंठित सिस्टम है जो डॉक्टर रईसा अंसारी द्वारा थीसिस सबमिट करने के बावजूद भी दो साल बाद तक उनका वाइवा नहीं किय?

संवाद
अज्ञात पत्रकार

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