इस तरह बेमानी से बनी अपना इकबाल खो चुकी मोदी की हुकूमत की सुहाग रात शबाब पर है
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
बेईमानी से बनी, अपना इकबाल खो चुकी मोदी सत्ता का हनीमून पूरे शबाब पर है।
काशी में
मोदी के काफिले पर किसी ने चप्पल फेंक मारी। मोदी दुबका हुआ गाड़ी के भीतर था, वरना चप्पल उसके गाल पर पड़ी होती। पड़ना भी चाहिए। परीक्षा पर चर्चा करने वाला मोदी अब परीक्षा ही रद्द करवा रहा है। देश के 33 लाख से ज्यादा युवाओं के सपने चूर हैं।
पर्चे बनाने से लेकर बांटने और बेचने वाले सारे उसी के अंध भगत। आगे क्या बोलें? चप्पल फेंकना ठीक नहीं, पर करें भी तो क्या?
ट्रेनें एक दूसरे पर चढ़ी जा रही हैं और रेल मंत्री पक्की सड़क पर फटफटी में जाने की रील बना रहा है। चुनावी ड्यूटी में मस्त है।
भरे जून के मानसून में सूखा पड़ा है, लेकिन व्यापम वाला शिवराज मामा ट्रेन में घुसकर रील बनवाता है, रोड शो करवाता है। उसे मालूम है कि सूखा और बाढ़ तिजोरी के दरवाजे खोलते हैं। बड़े शर्म की बात है।
लेकिन देश का नौजवान भूखा–प्यासा, उधार के पैसों से साल भर पढ़कर क्या पेपर लीक का इंतजार करेगा?
बच्चों की नौकरी के लिए लंगोटी में बसर कर रहे मां–बाप क्या सोशल मीडिया पर लंबी तकरीरें लिखेंगे? नहीं। उनके हाथ में चप्पल तो होगी ही। होनी भी चाहिए।
बात गाल पर तमाचे से अब चप्पल तक आ चुकी है। रवीश कुमार ने कल ठीक कहा–इस निकम्मी, बेशर्म सरकार को शिक्षा नहीं, परीक्षा मंत्री चाहिए।
नकल माफिया आजकल ये माफिया बीजेपी को चंदा देकर सुरक्षित हैं।
मणिपुर तो छोड़िए। कश्मीर आतंकवाद में सुलग रहा है और गृह मंत्री शाह अपने बॉस के लिए योगा दिवस की सेटिंग करवा रहे हैं।
उसी गृह मंत्री शाह को सत्ता की एक बैसाखी टीडीपी ने लंगड़ी मार दी है। दूसरी बैसाखी मोदी ने अपने पैरों से बांध रखी है। पेंच स्पीकर पर फंसा है।
इस देश के मौजूदा हालात पर बीरेंद्र चट्टोपाध्याय की कुछ पंक्तियां याद आती हैं–
नीला लिबास पहनते हैं,
लाल लिबास पहनते हैं,
राजा बदलते हैं,
ये राजा आया,
वो राजा गया,
परिधानों का रंग बदलता है…
दिन नहीं बदलते!
पूरी दुनिया को ही निगल लेना चाहता है जो नंगा बच्चा,
कुत्तों के साथ उसकी भात की लड़ाई जारी है,
जारी रहेगी!
कब से पेट के भीतर जो आग लगी है,
अभी भी जलेगी !
राजा आते जाते हैं आते हैं और जाते हैं,
सिर्फ परिधानों का रंग बदलता है,
सिर्फ़ मुखौटों का ढंग बदलता है,
पागल मेहर अली दोनों हाथों से बजाता है ताली,
इस रास्ते, उस रास्ते नाचते हुए, गाता है :
‘सब झूठ हाय! सब झूठ हाय!
झूठ हाय! सब झूठ हाय।’
जननी जन्मभूमि,
सब देखकर सब सुनकर भी अंधी तुम!
सब समझते सब बूझते भी बहरी तुम!
तुम्हारा नंगा बच्चा कब से हो गया वह मेहर अली,
कुत्तों का छीनकर खाता है भात
कुत्तों के सामने बजाता है ताली।
तुम नहीं बदलती
वह भी नहीं बदलता।
सिर्फ़ परिधानों का रंग बदलता है
सिर्फ़ परिधानों का ढंग बदलता है”।
वाकई, मेरे देश के हाथ में अब चप्पल है। सामने सत्ता का गाल है।
और…गरीब की आंखें अब गुस्से से लाल हैं।
साभार;पिनाकी मोरे
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