इस बार लोकसभा चुनाव में चार सौ पर करना मोदी जी के लिए बेहद ही है मुश्किल?
नई दिल्ली
संवाददाता
हिसाम सिद्दीकी
अबकी चार सौ पार नहीं हो सकते मोदी
नई दिल्ली। अयोध्या में बाइस जनवरी को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही बीजेपी ने मंदिर मुद्दे को पूरी तरह भुनाने के लिए देश खुसूसन उत्तर और वस्ती (मध्य) भारत के घर-घर तक पहुंचने के लिए अक्षत प्रसाद और दिए पहुंचाने के साथ-साथ मुल्क के साढ़े चार सौ जिलो से रोजाना पच्चीस ट्रेनों के जरिए राम मंदिर दर्शन के लिए लोगों को अयोध्या लाने और वापस ले जाने का भी प्रोग्राम बनाया है।
इन प्रोग्रामों की वजह से बीजेपी लीडरान के हौसले बहुत बुलंद है इसी लिए पार्टी ने नारा दिया है कि तीसरी बार-मोदी सरकार, अबकी बार-चार सौ पार“। खुद मोदी का ख्याल है कि 1984 में राजीव गाँधी की कयादत में कांग्रेस ने चार सौ चौदह (414) सीटें जीती थीं इस बार वह राजीव गाँधी का रिकार्ड तोड़ कर चार सौ चौदह से ज्यादा सीटें जीतेंगे। बीजेपी का अबकी बार चार सौ पार का नारा सुनने में तो बहुत अच्छा लगता होगा, लेकिन कोई यह नहीं बता पा रहा है कि आखिर मोदी चार सौ से ज्यादा सीटें जुटा पाएंगे कहां से?
राजीव गांद्दी की कांग्रेस ने चार सौ चौदह सीटे तब जीत ली थीं जब कश्मीर से कन्याकुमारी और असम व बंगाल से महाराष्ट्र तक हर तरफ कांग्रेस ही कांग्रेस की चर्चाएं थी। वैसे तो इंदिरा गांधी की शहादत का भी पूरे मुल्क पर जबरदस्त असर था। जबकि मोदी की पार्टी साउथ इंडिया की पांचों रियासतों में कहीं नहीं है। साउथ की एक सौ इकत्तीस (131) लोकसभा सीटों में पुलवामा धमाके के बावजूद बीजेपी सिर्फ उन्तीस (29) सीटें जीत पाई थी जिनमें पच्चीस (25) सीटें सिर्फ कर्नाटक से आई थीं। इस वक्त साउथ की तरह की पूरब में बंगाल से उड़ीसा तक और पच्छिम से महाराष्ट्र में बीजेपी बहुत कमजोर है फिर चार सौ पार कहां से होंगे?
गौर हो कि इस वक्त बीजेपी मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली, हरियाना और असम में ताकतवर दिखती है। इन तमाम रियासतों में बीजेपी ने 2019 में चन्द को छोड़ कर सभी सीटें जीत ली थीं। गुजरात की छब्बीसों सीटें, मध्य प्रदेश की उन्तीस (29) में से अट्ठाईस (28), राजस्थान की सभी पच्चीस और छत्तीसगढ़ की ग्यारह में से नौ सीटें यानी इन रियासतों की पैंसठ सीटों में से बीजेपी ने बासठ (62) सीटें जीत ली थी। अब सीटों की तादाद में इजाफा तो होने से रहा। बीजेपी बासठ में से कुछ सीटें हार जरूर सकती है। दक्खिन भारत में मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद 2019 में तामिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। कर्नाटक की अट्ठाइस में से पच्चीस सीटें बीजेपी जीती थी। अबकी बार पांच से सात तक जीत जाए तो भी बहुत होंगी। कर्नाटक के अलावा तेलंगाना की सत्रह (17) में से चार सीटें बीजेपी को मिली थीं इस बार वह (बाकी पेज दो पर) भी मिलना मुश्किल है।
2019 में बीजेपी की कयादत वाले एनडीए ने बंगाल, बिहार, झारखण्ड और महाराष्ट्र की एक सौ तेंततीस (133) लोकसभा सीटों में से एक सौ नौ (109) सीटें जीत लीं थी। इनमें बीजेपी की बंगाल की बयालीस (42) में से अट्ठारह (18) बिहार की चालीस (40) में से सत्रह, झारखण्ड की तेरह में से ग्यारह और महाराष्ट्र की अड़तालीस (48) में से तेइस (23) सीटें मिली थीं। इतनी सीटें मिलने की वजह यह थी कि महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना मिल कर एलक्शन लड़ी थीं, इसी तरह बिहार में बीजेपी, नितीश के जनता दल यूनाइटेड के कांद्दे पर सवाल होकर एलक्शन मैदान में उतरी थी। अब नितीश, आर.जे.डी., कांग्रेस और सीपीआई माले एक साथ है इसलिए बिहार में बीजेपी दहाई तक पहुंचेगी इसमें भी शक है। महाराष्ट्र में मोदी और अमित शाह ने बाल ठाकरे की शिव सेना तुड़वाई पार्टी के नाम और चुनाव निशान पर ठाकरे खानदान से दगाबाजी करने वाले एकनाथ शिंदे का कब्जा करा दिया और शरद पवार की एनसीपी तुड़वाकर उससे निकले दस लोगों को वजीर बनवा दिया है। इन कार्रवाइयों से पूरे महाराष्ट्र के लोगों के जज्बात मजरूह (आहत) हुए हैं उनकी तमामतर हमदर्दियां उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ हैं।
बताते चलें कि बंगाल में पिछली बार बीजेपी ने बयालीस में से अट्ठारह सीटें इसलिए जीत ली थीं कि पुलवामा द्दमाका हो चुका था और बीजेपी ने बेशुमार पैसा खर्च करके बंगाल के लोगों में यह जज्बा भर दिया था कि बंगाल में अब बीजेपी ही आने वाली है। लेकिन लोकसभा के बाद असम्बली चुनाव हुए तो बीजेपी कुछ नहीं कर पाई और ममता बनर्जी की सीटें पहले से भी ज्यादा आ गई। तीसरी बार ममता बनर्जी की रिकार्डतोड जीत के बाद आम बंगालियों में यह मैसेज गया कि बंगाल में बीजेपी, पैर नहीं जमा सकेगी।
अब तो बीजेपी स्पांसर्ड जो सर्वे हो रहे हैं वह भी कह रहे हैं कि इस बार बंगाल में बीजेपी पांच से आठ तक ही सीटें जीत पाएगी क्योंकि ममता बनर्जी की सियासी पकड़ बहुत मजबूत हो चुकी है। बंगाल तामिलनाडु और केरला जैसी रियासतों में मंदिर का कोई असर नहीं पड़ने वाला है। इसीलिए होम मिनिस्टर अमित शाह ने बंगाल जाकर सी.ए./एन.आर.सी. का मुद्दा फिर छेड़ा है।
राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद वैसे तो बीजेपी देश के कई प्रदेशों में इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रही है। लेकिन सबसे ज्यादा फोकस उत्तर प्रदेश की अस्सी सीटों पर है। बीजेपी प्रदेश की सभी अस्सी सीटे जीतने का दावा कर रही है।
वर्ष 2019 के चुनाव में बीजेपी और अपना दल ने मिल कर चौसठ (64) सीटें जीती थी। बाद में हुए बाइएलक्शन में दो और सीटें रामपुर और आज़मगढ़ भी जीत ली थी। अब इस तादाद में इजाफे के बजाए कमी होने की ही उम्मीद है। जहां तक सभी सीटें जीतने की बात है तो 1984 में जब कांग्रेस ने मुल्क में रिकार्ड चार सौ चौदह सीटें जीत ली थीं। तब वह भी यूपी की तमाम सीटे नहीं जीत पाई थी।
पी.एम. नरेन्द्र मोदी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उत्तर और वसती (मध्य) भारत की तकरीबन तमाम सीटें जीतने के बाद उन्हें तीन सौ तीन सीटें मिली हैं। अब कर्नाटक, बंगाल, बिहार, झारखण्ड, और महाराष्ट्र वगैरह मिला कर उनकी सीटें दो से सवा दो सौ तक ही आती दिख रही है।
सरकार बनाने के लिए दो सौ बहत्तर (272) सीटों की जरूरत होती है अब अगर मोदी की साठ से सत्तर तक सीटें कम हो गईं तो उन्हें किस पार्टी की मदद मिलेगी? सिर्फ एक पार्टी उड़ीसा की बीजू जनता दल है लेकिन वहां इतनी सीटें नहीं है। दूसरी पार्टी आंध्र प्रदेश की वाई.एस.आर. कांग्रेस मोदी की हिमायत कर सकती है। पिछली बार वाई.एस.आर. कांग्रेस ने प्रदेश की पच्चीस (25) में से बाइस (22) सीटें जीतने का रिकार्ड बनाया था। जगनमोहन रेड्डी चीफ मिनिस्टर भी बन गए लेकिन अब उनकी हालत खस्ता दिख रही है। हाल ही में उनकी बहन वाई.एस. शर्मीला कांग्रेस में शामिल हो चुकी है। दूसरे तेलंगाना में कांग्रेस की जबरदस्त वापसी के बाद पार्टी को उम्मीद हो गई है कि वह तेलंगाना की तरह आंध्र प्रदेश भी जीत लेगी फिर मोदी दो सौ बहत्तर (272) सीटें कहां से लाएंगे? उन्हें कांग्रेस ने रियासती सदर बना दिया है।