कष्टदाई कि अपनों को अपने ही सामने रोते,दर्द से कहराते व दम तोड़ते हुए देखने पर होना पढ़ रहा मजबूर?

रिपोर्टर:-
जहां देशभर में सांसों को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है, वहीं चुनावी रैलियां अपने चरम सीमा पर रही?
कुछ समय व एक वर्ष पूर्व भी आपदा ने सरकार को समय दिया था कि ऐसी परिस्थिति से निपटने की व्यवस्था कर ले!मगर क्या ऐसा हुआ?
आज देश की राजधानी दिल्ली में लोगों को ऑक्सीजन इंजेक्शन, दवाओं की मूलभूत सुविधाओं की किल्लत का सामना करना पड़ रहा है।
लोग आक्सीजन की कमी के अभाव में दम तोड़ रहे हैं।
बदहवास की हालत में अपनों को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं!
इसी तरह से दूसरे ओर दूसरे राज्यों की राजधानियों व शहरों से भी ऐसी खबरें आ रही हैं तथा वही छोटे शहरों की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है कि वहां की क्या स्थिति होगी।
जब कि महाराष्ट्र की स्थिति तो और गंभीर है वहां के अस्पतालों में सुविधाओं का ज्यादा अभाव है।
सोशल मीडिया पर भी हालहि में बंगाल का एक वीडियो आया जिसमें एक रैली में अपार जनसैलाब देख कर देश के एक शीर्ष नेता कहते हैं कि जहां भी देखो लोग ही लोग दिखाई देते हैं!
जहां देशभर में सांसों को बचाने के लिए जद्दोजहद चल रही है,
वहीं चुनावी रैलियां अपने चरम सीमा पर थी।
सबसे बड़ा सवाल यह था कि जब कोरोना का दौर चल रहा था तो चुनाव रैली या जिला पंचायत जैसे चुनाव कराने की क्या आवश्यकता थी?
लेकिन सरकार ने इस ओर ध्यान नही ओर चुनाव कराने का मन बनाया!
लेकिन लोगो ने अब तो एक मजाक बनाकर रख दिया है कि कोरोना से बचना है तो चुनावी रैलियों में जाना चाहिए !
जो सोशल मीडिया पर जमकर वीडियो चल रही है तथा वही यह भी एक बड़ी विडंबना है कि आज भी हमारी मानसिकता धर्म, जात-पात, मंदिर, मस्जिद की ही राजनीति में उलझी हुई है।
और राजनीतिक दल भी ऐसी ही विचारधारा को अपने घोषणा-पत्रों में जगह देते हैं!
कोरोना जैसी आपदा ने एक साल का समय दिया।
मगर इसमें स्वास्थ्य से जुड़ी सुविधाओं का जाल खड़ा करने से सरकारें वंचित रह गईं?
इस समय को व्यर्थ की राजनीति करने में गुजार दिया गया फिर से महामारी ने अपना प्रचंड रूप दिखा दिया।
जिसकी वजह से आज जनता को अस्पताल, श्मशान,कब्रिस्तान के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं!
बड़ा ही कष्टदाई है कि अपनों को अपने ही सामने दम तोड़ते हुए देख रहे हैं।
उसके बाद दाह-संस्कार के लिए भी कतार में खड़ा होना यह हमारे देश की व्यवस्था पर सवालिया निशान खड़ा करता है?
अब हमें अपने आप से यह प्रण करना होगा कि अस्पताल, स्कूल, या जीवन जीने के मूलभूत सुविधाओं के ही आधार पर ही हम अपने देश की बागडोर किसी के हाथ सौंपेंगे!
अन्यथा ऐसे ही समय आने पर हमारे अपने हमारी बाहों में दम तोड़ते रहेंगे!जिसके जिम्मेदार हम खुद होंगे!
ऐसे विकास से क्या फायदा जिससे जनता की सांस को बचाया न जा सके?
आज हजारों करोड़ के खर्च से बनाई जा रही इमारतें,सड़के आम जनता को क्या फायदा दे रही है?
आज अगर इमारते सड़को की जगह पर पटेल अस्पतालो का निर्माण हुआ होता तो शायद वहां से कितने जीवन बच गए होते?
और यही पटेल जी के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होती।
इसी तरह मंदिर, मस्जिद के निर्माण में हजारों करोड़ खर्च करने की बजाय ऐसे सामूहिक फायदे के कार्यों में लगाए जाते,
तो देश और धर्म के हित में भी अच्छा होता!
जीवन को बचाने के लिए हर धर्म में वरीयता दी गई है !