किसी को उजाड़कर उस जगह बनाया गया घर मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का निवास कभी हो ही नही सकता ?

विशेष संवाददाता
पिनाकी मोरे

निर्माणाधीन राम मंदिर और तुलसी के राम

भारत के प्रधानमंत्री कहे जाने वाले शख्स अपील कर रहे हैं कि 22 जनवरी तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर भजन-कीर्तन करें, कुछ अनुष्ठान-आयोजन करें और उसकी फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड करें और वे आश्वासन दे रहे हैं कि कुछ चुनिंदा फोटो वे स्वयं शेयर भी करेंगे।मतलब असल बात है कि राम नहीं, साहब को ही ध्यान में रखना है कि कहीं आपके सौभाग्य से वे शेयर कर लें।

खैर, यह न‌ए भगवान् और उनके भक्तों के बीच का मामला है, इसलिए इस पर कुछ नहीं कहेंगे! हां, यह चिंता का विषय जरूर है कि इसकी आड़ में संघ गैंग द्वारा धार्मिक उन्माद फैलाने की एक नयी मुहिम शुरू हो चुकी है। इसलिए, हम यहां निर्माणाधीन राम मंदिर और परम रामभक्त संत तुलसीदास के राम के संबंध पर कुछ जरूर कहना चाहते हैं।

एक बात शुरू में ही फिर याद कर लें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतिम मध्यस्थतानुमा फैसले में यह तो नहीं ही कहा कि राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाए जाने के पक्के सबूत मौजूद हैं! साथ ही,सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को कानून का उल्लंघन और एक आपराधिक कृत्य माना, जिसके लिए कानूनी कार्रवाई जारी रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने संबद्ध जमीन पर भी दोनों पक्षों का मालिकाना हक माना और मध्यस्थता करते हुए एक पक्ष को मस्जिद बनाने के लिए दूसरी जगह जमीन मुहैया करायी। इस दृष्टि से प्रत्यक्ष अकाट्य सच तो यही है कि राम मंदिर का निर्माण बाबरी मस्जिद को जबरन तोड़कर किया जा रहा है, जिस विध्वंस को सुप्रीम कोर्ट भी आपराधिक कृत्य मानता है।

हम सामान्य बुद्धि से भी समझ सकते हैं कि किसी को उजाड़कर बनाया गया घर मर्यादापुरुषोत्तम राम का निवास तो हो ही नहीं सकता, वह चुनावी बिसात का दिखावा भले हो। आइए, इस बात को स्वयं भगवान् राम की भावनाओं के परिप्रेक्ष्य में समझने का प्रयास करें।

हमें अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर के चुनावी शोर के बीच तुलसीदास की इस चौपाई को सदा याद रखना चाहिए:
अवध तहां जहं राम निवासू।
तहंइं दिवस जहं भानु प्रकासू।।
जहां श्री रामजी का निवास हो वहीं अयोध्या है। और हम जानते हैं कि “कण-कण में व्यापे हैं राम।” इसलिए, जहां राम वहीं अयोध्या, न कि जहां अयोध्या वहीं राम! और राजनीतिक स्वार्थ में आदमी से आदमी के बीच नफरत फैलाने का मोहरा बनी अयोध्या नगरी को छोड़ तो राम कब का फिर वनवास पर निकल पड़े हैं!

रामचरितमानस’ के लगभग अंत में राम स्वयं अपने बारे में कहते हैं:
अखिल बिस्व यह मोर उपाया‌।
सब पर मोहि बराबर दाया।।

ध्यान देने की बात है कि तुलसीदास राम के मुंह से कहवा सकते थे कि उनके हृदय में केवल हिन्दुओं के लिए जगह है। पर तुलसी के राम तो सर्वव्यापी सर्वहितकारी थे। वे ऐसा कैसे कह सकते थे। ऐसे सब पर बराबर करुणा और प्रेम रखने वाले राम का नाम लेकर जिस तरह हजारों बेगुनाहों का खून बहाया जा चुका है और फिर राम मंदिर के उद्‌घाटन के बहाने जिस तरह चारों तरफ चुनाव के मद्देनजर घृणा और उन्माद का माहौल बनाया जा रहा है वह कितना धर्म विरोधी, राम-विरोधी काम है, इसे अलग से कहने की जरूरत नहीं है।

संघ गिरोह के लोग “हिन्दू-मुस्लिम” करते हुए अपनी रामभक्ति का डंका गली-गली पीटते चल रहे हैं। पर वाल्मीकि मुनि तो बता रहे हैं किसी विशेष धर्म के दंभ से मुक्त व्यक्ति के ही हृदय में राम रह सकते हैं। ‘रामचरितमानस’ में मुनि वाल्मीकि के माध्यम से तुलसी कहते हैं:
जाति पांति धनु धरम बड़ाई।
प्रिय परिवार सदन सुखदाई।।
सब तजि तुम्हहिं रह‌ई उर लाई।
तेहि के हृदयं बसहु रघुराई।।”

इसी प्रकार, इससे आगे तुलसीदास लिखते हैं कि राम का ‘गेह’ (घर) कहां है। संघ गिरोह बाबरी मस्जिद के मलबे पर आधा-अधूरा बने राम मंदिर में रामलला की ‘प्राण-प्रतिष्ठा’ कर न केवल राम के मूल्यों और भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहा है, बल्कि उनकी “कण-कण” में व्यापकता को भी मटियामेट कर रहा है। इधर तुलसी वाल्मीकि के मुख से बोल रहे हैं:

जाहि न चाहिअ कबहुं कछु तुम सन सहज सनेह।
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेह।।

जिसे कभी कुछ भी नहीं चाहिए और जिसका राम से स्वाभाविक प्रेम है उसी का हृदय राम का अपना घर है। दूसरे की फिक्र करने के पहले संघ गैंग पहले इस कसौटी पर खुद को तौले कि क्या वह रामभक्त है। संघ गैंग को क्या स्वाभाविक प्रेम है राम से! क्या इन्हें कुछ भी नहीं चाहिए ? नहीं, ऐसा नहीं है। बाबरी मस्जिद टूटते ही पूरा संघ गैंग चिल्ला उठा था: “मध्यावधि चुनाव-मध्यावधि चुनाव” और आज भी अधूरे राम मंदिर का आम चुनावों के पहले उद्‌घाटन कर वही चुनावी मकसद पूरा किया जा रहा है। मतलब साफ है कि हिन्दू मन के साम्प्रदायिक दोहन के द्वारा दिल्ली की हिलती गद्दी पर फिर काबिज हो जाने की ही यह पूरी कवायद है। यही कारण है कि जहां तुलसी के राम का घर (गेह) निस्वार्थ सहज सनेही भक्तों का हृदय है, वहीं हिन्दू धर्म को बदनाम करनेवाले इन सत्तालोलुप बगुला भगतों का राम हजारों मासूमों की लाश पर बने मंदिर में रहता है, वह कण-कण में नहीं व्यापता है! रावण ने सीता का अपहरण किया था, इन लोगों की राम के ही अपहरण की कोशिश जारी है!

कहना न होगा कि तुलसी के राम के लिए धर्म-जाति से परे सारे मनुष्य समान हैं। यह हम याद रखें कि जो राम हमारे दिलों पर राज करते हैं वे व्यापक रूप से तुलसी के ही राम हैं। पर यह जो नये “राम लाए ‌ग‌ए हैं” और जिनकी “प्राण-प्रतिष्ठा” हो रही है वह पूरा प्रकरण ही राम के विचारों भावनाओं के विपरीत राजनीतिक स्वार्थ में घृणा-उन्माद का बीभत्स खेल है। इसमें किसी रूप में शिरकत राम-विरोधी, धर्म-विरोधी और मानवता-विरोधी कृत्य है। धर्म और राम हमारी अंतरात्मा की अनुभूति हैं और वे इन उन्मादियों से दूर वहीं विराजमान रहें तो पूरी मानवता का कल्याण है।

“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।”

सभी सुखी हों, सभी निरोग रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुख का भागी न बनना पड़े। (बृहदारण्यक उपनिषद्)
शांतिः शांतिः शांतिः

संवाद
रामसूजन अमर

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