कुरान में जो कुछ कहा गया है उसको झुठलाना नामुमकिन है
संवाददाता
विज्ञान और क़ुरआन (पार्ट-1)
इंसान ज़मीन पर जन्म लेते ही इस दुनिया में अपनी जगह समझने की कोशिश करता है, अपनी जिंदगी के मकसद को समझने के लिए, बहुत से लोग अपने धर्म की तरफ चले जाते हैं, मगर अक्सर धर्मों की बुनियाद उन किताबों पर होती है जिनके बारे में उनके मानने वाले बिना किसी दलील के दावा करते हैं।
लेकिन इस्लाम मुख़्तलिफ़ है क्योंकि इसकी बुनियाद दलील और सबूत पर है।
इसमे वाज़ेह निशानियां हैं जो क़ुरआन और इस्लाम की सच्चाई को सपोर्ट करती हैं। क़ुरआन में ऐसी विज्ञान और सच्चाई है जो उस वक्त के लोगों को मालूम नहीं थी, मगर आज विज्ञान ने इन्हें जाना है। क़ुरआन सिर्फ एक ही ज़ुबान, अरबी में नाज़िल हुआ है और इसकी मिसाल देना नामुमकिन है. क़ुरआन को एक ऐसी किताब कहा गया है जो इंसान की हिदायत के लिए है।
क़ुरआन में वैज्ञानिक तथ्य
अगर हम कायनात की तरतीब (सिस्टम) को देखें, तो हमारा ये कहना बिल्कुल अक़्ली होता है कि इस कायनात का एक मुंतज़िम (इंतेज़ामी) ज़रूर है। इस मुंतज़िम को हम अल्लाह कहते हैं, जिन्होनें इस पूरे कायनात में एक निज़ाम (सिस्टम) और काबिलियत पैदा की।
क़ुरआन मजीद 7वीं सदी में नाज़िल हुई, जब साइंस आज के जैसी तरक्की याफ्ता नहीं था. ना कोई दूरबीन थी, ना माइक्रोस्कोप और ना ही कोई तकनीक थी। उस वक़्त लोग सोचते थे कि सूरज ज़मीन के चक्कर लगता है, या आसमान ज़मीन के बड़े खंभों से थमा हुआ है। लेकिन क़ुरआन ने अपने अंदर ऐसे इल्म और वैज्ञानिक तथ्यों को शामिल किया जो उस वक्त के लोगों के लिए अजनबी थे।
1. कायनात का निर्माण:
बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक़, कायनात लगभाग 13.8 बिलियन साल पहले एक बड़े धमाके से शुरू हुई। ये धमाका (बिग बैंग) गैलेक्सी और सितारे बनाने का सबब बना कुरान मजीद में इसकी तरफ कुछ इस तरह इशारा दिया गया है:
“क्या उन लोगों ने नहीं देखा कि आसमान और ज़मीन मिले थे, फिर हमने उन्हें अलग अलग किया?” [क़ुरआन 21:30]
ये आयत बिग बैंग थ्योरी के मुताबिक़ है और ये बात हैरान कर देने वाली है कि एक किताब जो 1400 साल पहले नाज़िल हुई थी, इस हकीकत को कैसे बयान करती है?
2. लोहा:
लोहा ज़मीन पर कुदरती तौर पर नहीं बना, बल्कि ये ज़मीन पर आसमान से आया है। कुरान इस हकीकत को कुछ इस तरह से बयान करता है:
“और हमने लोहे को उतारा जिसमें ज़बरदस्त क़ुव्वत है और इंसान के लिए फायदा है।” [क़ुरआन 57:25]
ये बात है आज के वैज्ञानिकों के लिए भी अजीब थी कि लोहा आसमान से उतारा गया है।
3. सूरज की कक्षा:
20वीं सदी में ये बात समझ आई कि सूरज अपनी कक्षा में घूम रहा है। क़ुरआन इस हकीकत को पहले ही बयान कर चुका है:
और वही है जिसने रात और दिन और सूरज और चांद बनाए और ये सब अपनी-अपनी कक्षा में गर्दिश करते हैं।” [क़ुरआन 21:33]
4.आसमान का हिफ़ाज़ती निज़ाम (सिस्टम):
आसमान ज़मीन के लिए एक हिफ़ाज़ती चादर के तौर पर काम करता है। ये ज़मीन को सूरज की ख़तरनाक किरण और अंतरिक्ष के दूसरे ख़तरनाक असर से बचाता है
और हमने आसमान को एक हिफ़ाज़ती छत बनाया, मगर लोग हमारे निशानियों से मुँह मोड़ लेते हैं।” [क़ुरआन 21:32]
5. बादलों का बनना:
अल्लाह ने क़ुरआन में बादलों के बनने और उनसे बारिश के बारे में कुछ इस तरह से बयान किया:
“क्या तुमने नहीं देखा कि अल्लाह ही है जो बादलों को चलाता है, फिर उन्हें आपस में मिलाता है, फिर उन्हें एक दूसरे पर तह-ब-तह कर देता है और फिर तुम देखते हो कि उन बादलों में से बारिश गिरती है।” [क़ुरआन 24:43]
6. गहरा समंदर और अंधेरा:
क़ुरआन गहरे समंदरों के अंधेरों को कुछ इस तरह बयान करता है:
“या फिर जैसे एक गहरी समंदर में अंधेरा है, जो लहरें एक दूसरे पर छाई हुई हैं और उनके ऊपर बादल हैं, जब कोई अपना हाथ निकालता है तो उसे कुछ दिखायी नहीं देता।” [क़ुरआन 24:4]
ये बात सिर्फ आज के वैज्ञानिक अनुसंधान से पता चली है कि समंदर के अंदर गहरा अंधेरा होता है।
7. दो समंदर हैं जो कभी नहीं मिलते:
अलास्का की खाड़ी में दो समंदर हैं जो कभी नहीं मिलते। क़ुरआन हकीकत है कुछ इस तरह से बयान करता है:
और वही है जिसने दो दरिया को मिलाया, एक का पानी मीठा है और दूसरे का पानी खारा है और दोनों के दरमियान एक आड़ है जो उन्हें मिलने से रोकता है।” [क़ुरआन 25:53]
8. पहाड़ों का मक़सद
क़ुरआन पहाड़ों की अहमियत को कुछ इस तरह से बयान करता है: “क्या हमने ज़मीन को फ़र्श और पहाड़ों को मेख़ों की तरह गाड़ दिया”
[क़ुरआन 78:6-7]
9. बादलों का वज़न
हमें बादल को देख कर लगता है कि वजन में बहुत हल्के हैं। कॉटन कैंडी की तरह और इस पर साइंस कहता है कि एक बादल का वजन 1.1 मिलियन पाउंड तक हो सकता है। मतलब बादल हमारी सोच से वजन में कहीं ज्यादा है।
और क़ुरआन ने ये बात 1400 साल पहले ही साबित कर दी और वैज्ञानिक ने ये 20वीं सदी में पता लगाया। अल्लाह फरमाता है कुरआन में,
वही है जो तुम्हारे अंदर बिजली चमकाता है, डर और चिंता पैदा करता है और घने बादल पैदा करता है” [सूरह अर रा’द 13-12]
मरने के बाद इंसान जिंदा नहीं हो सकता इस पर अल्लाह क़ुरआन में फरमाता हैं:
और वे तंज (डराना) करते हुए कहते हैं, “जब हम हड्डियों और राख में बदल जाएंगे तो क्या हम सच में एक नई फितरत के रूप में जिंदा होंगे?”
कह दो! “ऐ पैगम्बर, “हां, चाहे तुम पत्थर या लोहा बन जाओ,…..” [क़ुरआन 17:49-50]
इसमे इंसान के मरने के बाद दोबारा जिंदा होने की बात बताई गई है, क्योंकि ये हकीकत है कि इंसान फिर से जिंदा होगा पर उस वक्त उसका शरीर अलग-अलग फॉर्म में होगा क्यू कि किसी भी जानदार का शरीर हड्डी का फॉर्म ले लेता है जिसकी प्रक्रिया बहुत लंबी होती है और फिर हम जीवाश्म ही क्यों ना बन जाए पर हमें दोबारा जिंदा किया जाएगा।
क़ुरआन की इन निशानियों से ये साबित होता है कि ये किताब सिर्फ एक रूहानी किताब नहीं, बल्कि इसमे इल्म-ए-साइंस भी शामिल है जो इंसान के लिए हमेशा के लिए रहनुमाई है, अल्लाह तआला फरमाता है तुम गौर ओ फ़िक्र करो, क़ुरआन एक मुकम्मल किताब है और बस हमें उस पर गौर ओ फ़िक्र करनी है।
संवाद:मोहमद अफजल इलाहाबाद