केवल जुबानी विरोध से ईवीएम की लूट को नहीं रोका जा सकता तो इसके रोकथाम का क्या है आंखरी उपाय ?

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रिपोर्टर:-
लोकतंत्र को पारदर्शिता से चलाना बहुत ही कठिन काम है।
फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, नीदरलैंड, अमेरिका जैसे उन्नत देश नासमझ थोड़े ही हैं कि चुनाव में ईवीएम मशीन का इस्तेमाल करने के बाद पुन: मतपत्रों के इस्तेमाल पर वापस आ गए?
असम के करीमगंज में भाजपा उम्मीदवार की कार में मिली ईवीएम को क्या महज पीठासीन अधिकारी की भूल मान लिया जाना चाहिए?
ये तो एक मामला था जिस पर लोगों की नजर चली गई और सामने आ गया।

साल 2014के चुनाव से लेकर वर्तमान में हो रहे चुनावों के वक्त लोगों की आंख में धूल झोंक कर, न जाने इस तरह के कितने और धोखाधड़ी के मामले हो गुजारे हुए होंगे?
लोकतंत्र को पारदर्शिता से चलाना बहुत कठिन काम है।
जब सभी विपक्षी पार्टियां मतपत्रों से चुनाव कराने की मांग कर रही हैं तो सिर्फ एक पार्टी क्यों इसको मुखर होकर विरोध कर रही है?

जब मशीन की विश्वसनीयता पर बार-बार सवाल उठते रहे हैं तो इसमें विपक्ष की मांग को मानने में हर्ज क्या है?
विपक्ष केवल ट्वीट करके विरोध करना बंद करे और एकजुट हो।

आगामी कोई भी चुनाव अगर मतपत्र से नहीं होता तो संपूर्ण विपक्ष उसका बहिष्कार करे।
केवल जुबानी विरोध से ईवीएम की लूट को नहीं रोका जा सकता।
इसके विरोध में खड़े कानून और प्रावधान लाने की जरूरत है।

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