कोई बता दे कि ‘हिन्दोस्तान’ के अलावा पूरी दुनिया की इस्लामिक क़िताबों में इस ईद को ‘बकरा ईद’ कहा गया हो ?

images – 2021-07-09T172437.381

रिपोर्टर:-

गैर मुस्लिमो की तरफ से ईद उल अजहा को बकरा ईद कहा जाता है।
यह कमाल सिर्फ़ ‘हुनूद’ की तहज़ीब का है, जिस के रंग में हम लोग भी रंगते चले गए।

इस्लाम में इस ईद को ईद-उल-अज़्हा” कहा गया है।
ईद’ के मायने हैं मुसलमानों के जश़्न का दिन और ‘अज़्हा’ के मायने हैं चाश़्त का वक़्त।
लेकिन आवाम में ‘ईद-उल-अज़्हा’ के मायने क़ुरबानी की ईद से मशहूर हैं।
फिर भी लोग ‘क़ुरबानी की ईद’ ना कहते हुए सीधे ‘बकरा ईद’ कहते हैं।

जाहिलों की तरह, फिर मीडिया वाले जब ईद को जानवरों से मंसूब करके मुसलमान और इस्लाम की तस्वीर बिगाड़ते हैं तो इसमे अफ़सोस की क्या बात है.?
तुम्हारी तहज़ीब को तो तुमने ही बिगाड़ा है कोई औरों ने नही।
बहूत से इस्लामिक कलेंडरों में भी बे-धड़क आज ‘बकरा ईद’ लिखा जा रहा है!
जब इस्लाम की तारीख़ में इस ईद को ईद-उल-अज़्हा” कहा गया है फिर इसे ‘बकरा ईद क्यों कहा जाता है ?

किसी बुज़ुर्गाने-दीन ने भी इस ईद को ‘बकरा ईद’ नहीं कहा है।
लेकिन हमारे मुआशरे ने अपने बुज़ुर्गों की ज़बान छोड़कर नए-नए अल्फ़ाज़ों की पैदाइश उन लोगों से ज़बानी सीखी।
जिनकी नस्लें आगे चलकर अपने बुज़ुर्गों के पैदा किये हुए अल्फ़ाज़ों की तर्जुमानी करने लगी,
और हमारा मुआशरा सुन सुनकर ये भूल ही गया कि सही अल्फ़ाज़ क्या थे?
बराए करम! ये अहद करें कि आज से हम इस ईद को सिर्फ़ और सिर्फ़ “ईद-उल-अज़्हा” ही कहेंगे, और ये पैग़ाम सभी मुसलमानों तक पहुँचाएँगे।

बक़ौल मरहूम मेराज़ फ़ैज़ाबादी साहब.
सजा के भीगती पल्कों पे कहकशाँ हमने
तुझे तलाश किया है कहाँ-कहाँ हमने,
कोई
कहीं पे तुझसा कोई दूसरा नज़र आए
खंगाल डाली हैं ख़्वाबों की वादियाँ हमने,
ना वो लिबास, ना वो गुफ़्तगू, ना वो किरदार
मिटा दिये हैं बुज़ुर्गों के हर निशाँ हमने।

SHARE THIS

RELATED ARTICLES

LEAVE COMMENT