क्या खूब लिखा है ज़रूर पढ़िए मस्जिद अल अक्सा को लेकर मुहम्मद ज़ाहिद का ये लेख !

रिपोर्टर:-
दरअसल दो दिन पहले ट्विटर पर indiastandwithisrael टाॅप ट्रेन्ड कराया गया।
वह इसलिए कि इज़राईल ने अल-अक्सा मस्जिद में नमाज़ पढ़ते मुसलमानों पर गोली चलाई।
वह लोग जो खुद के परिजनों की लाशें मुसलमानों के हाथों जलवा रहे हों , जिनकी सासें मुस्लिम मुल्कों से आई आक्सीजन पर चल रही हो , जो खुद खड़े नहीं हो पा रहे हों , वह मुस्लिमों से नफरत में इतने कुछ अंधे हो गये हैं कि आईसीयू में 12 प्वाइंट आक्सीजन प्रेशर पर सांस लेकर इज़राईल के साथ खड़े होने की घोषणा कर रहे हैं!
खैर , जहरीले लोग अपनी हरकत से बाज नहीं आने वाले।
आईए देखते हैं कि वहाँ गोली क्यों चली ? क्योंकि मौजूदा दौर में किसी एक धर्मस्थल को लेकर जो सबसे अधिक विवाद है।
वह है येरुसलम में बनी अल अक्सा मस्जिद दुनिया के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शुमार है ।
तो यह मस्जिद दुनिया के सबसे बड़े विवाद के कारण फिलिस्तीन और इजरायल के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष की वजह भी है।
असल में कभी कभी दया , नेकी , इंसानियत , मदद और हमदर्दी , इसके करने वाले के लिए ही काल बन जाती है।
फिलिस्तीनी आज उसी काल से जूझ रहे हैं।
जर्मनी में हिटलर के जनसंहार के आतंक से जब यहूदी जर्मनी से भाग कर 1943 से पहले विभिन्न देशों में शरण लिए ।
तो मानवता के नाते मुस्लिम बहुल मुल्क फिलिस्तीन की तब की “अग्रेजी हुकूमत” ने भी तब अपने यहाँ उनको बड़े पैमाने पर शरण दी , और फिलिस्तीन की बंजर ज़मीनों पर उनको बसाया और उस सरकार की यही दया , नेकी , इंसानियत , मदद और हमदर्दी, मुसलमानों पर भारी पड़ गयी जिसकी कीमत वह आज भी अपनी जान देकर चुका रहे हैं।
इसके पहले 1-2% यहूदी जिस ज़मीन पर रह रहे थे वह बहुत बड़ी संख्या में आकर फिलिस्तीन के एक बंजर हिस्से पर काबिज़ हो गये।
यह यहूदी धीरे धीरे उस ज़मीन पर अपना अधिकार जताने लगे।
और अमेरिकी व्यवस्था में घुन की तरह घुसे यहूदियों ने फिलिस्तीन का 1947 में संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से बँटवारा कर दिया।
और फिलिस्तीन को दो हिस्सों में विभाजित किया।
इस तरह 55 प्रतिशत हिस्सा यहूदियों को मिला जिसे आज इज़राईल कहा जाता है और बाकी 45 प्रतिशत जमीन फिलिस्तीनियों के हिस्से में आई।
यह मानवीय आधार पर किसी देश में शरणार्थी बने लोगों द्वारा उसी देश पर कब्ज़ा करने का इकलौता उदाहरण है।
1967 में इजरायल के वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी समेत पूर्वी जेरुसलम पर कब्जा करने के बाद से अल अक्सा मस्जिद की इस जमीन को लेकर विवाद और बढ़ गया। क्योंकि यह पूर्वी जेरूसलम में ही स्थित है।
बाद में जॉर्डन और इजरायल के बीच इस बात पर सहमति बनी कि इस्लामिक ट्रस्ट वक्फ का अल अक्सा मस्जिद के कंपाउंड के भीतर के मामलों पर नियंत्रण रहेगा जबकि बाहरी सुरक्षा इजरायल संभालेगा।
इसके साथ गैर-मुस्लिमों को मस्जिद परिसर में आने की इजाजत होगी लेकिन उनको प्रार्थना करने का अधिकार नहीं होगा।
यथास्थिति बनाए रखने के वादे के बावजूद, पिछले कुछ सालों में यहूदियों ने मस्जिद में घुसकर प्रार्थना करने की कोशिश की जिससे तनाव की स्थिति भी बनी।
इन यहूदी लोगों ने येरूसलम स्थित अल अक्सा मस्जिद को हड़पने की कोशिश की।
और इसी कारण फिलिस्तीन और इज़राईल में संघर्ष बढ़ता गया।
इस अल अक्सा मस्जिद को यूनेस्को ने अपनी विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया हुआ है जो कि तीन धर्मों के लिए महत्वपूर्ण है।
यह प्राचीन शहर येरूसशम यहूदी, ईसाई और मुसलमानों का पिछले सैकड़ों सालों से विवाद का केंद्र है।
तो इसका कारण यह है कि तीनों ही धर्म के लोगों का पैगंबर हज़रत सुलेमान अलैहिससलाम को लेकर अलग अलग मत है और वह अल अक्सा मस्जिद को लेकर अलग अलग योजनाएँ रखते हैं।
ध्यान रहे कि हज़रत सुलेमान अलैहिससलाम” तीनों ही धर्म ईसाई , यहूद और इस्लाम के स्विकार्य पैगंबर हैं।
इस्लाम और कुरान भी इन धर्मों और इनकी किताबों तौरात , जबूर और इंजील को मान्यता देता है।
तौरात हज़रत मूसा अलैहेस्सलाम पर ,तो ज़बूर हज़रत दाउद अलैहेस्सलाम पर और इंजील हज़रत ईसा (मसीह) अलैहेस्सलाम पर उतारी गई।
और कुरआन इस्लाम की वह अंतिम किताब है जो आखिरी पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम पर उतारी गयी।
इन तीनों धर्मों में महत्वपुर्ण विवाद केवल किताबों को सबसे अधिक महत्व देने का है।
वर्ना इनकी सत्यता सभी तीनों धर्म के लोग स्विकार करते हैं।
आज से कोई 5000 साल पहले के हज़रत इब्राहिम अलैहेस्लाम तीनों धर्म के लोगों के पैगंबर हैं , इसीलिए तीनों धर्म को अब्राहम धर्म भी कहा जाता है।
खैर , अब आते हैं अल अक़्सा मस्जिद पर मुसलमानों का ईमान है कि मस्जिद अलअक़्सा हज़रत आदम अलैहेस्लाम (धरती के पहले मानव) के ज़माने की है और ज़मीन पर बनी दूसरी मस्जिद है।
मस्जिद अल अक़्सा के बारे में क़ुरआन में सुरह अलक़सास में ज़िक्र है।
इस्लाम के इतिहास में मस्जिद अलअक़्सा को क़िबला ए अव्वल कहकर पुकारा जाता है।
क्योंकि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत मुहम्मद के ज़माने में जब तक काबा पर गैरमुस्लिमों का क़ब्ज़ा था ,
मुसलमान “अलअक़्सा मस्जिद” की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ते थे।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रत मुहम्मद ने 17 महीनों तक मस्जिद अल अक़्सा की तरफ़ रुख़ करके नमाज़ अदा की है।
अल अक्सा मस्जिद मुस्लिमों के लिए मक्का , मदीना के बाद तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है।
अल अक्सा मस्जिद के पास ही सुनहरा गुम्बद ‘डोम ऑफ द रॉक भी है,
जिसे सल्लल्लाहो अलैहेवसल्लम हज़रत मोहम्मद के स्वर्ग जाने से जोड़कर देखा जाता है।
अल अक़्सा मस्जिद का 35 एकड़ का हाता है जिसमें इस्लामिक इतिहास के इसी तरह के 44 पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद हैं।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जब फ़िलस्तीन का बंटवारा हुआ तब भी मस्जिद अल अक़्सा फ़िलस्तीन का हिस्सा मानी गई।
अब सवाल यह है कि जो मस्जिद अलअक़्सा हज़रत आदम के ज़माने से लेकर हज़रत याक़ूब, हज़रत सुलैमान, हज़रत इब्राहीम, हज़रत इस्माईल, हज़रत मूसा और हज़रत ईसा अलैहिससलाम से लेकर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तक मुसलमानों के पास रही, उस पर यहूदी क़ब्ज़ा क्यों करना चाहते हैं ?
दरअसल यहूदियों का मानना है कि “मस्जिद अल अक़्सा” ही वह जगह है जहाँ इज़राईल बनाने वाले हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ और उन्हें वहाँ अपना धर्मस्थल बनाना है।
इसलिए यहूदी मस्जिद अलअक़्सा पर क़ब्ज़ा करना चाहते हैं।
यहूदी दावा करते हैं कि इस जगह पर पहले यहूदियों के प्रार्थना स्थल हुआ करते थे, लेकिन बाद में यहूदी कानून और इजरायली कैबिनेट ने उनके यहां प्रार्थना करने पर प्रतिबंध लगा दिया।
यहां मौजूद वेस्टर्न वॉल को वह अपने उस मंदिर का आखिरी अवशेष मानते हैं।
जबकि मुसलमान इसी दीवार को “अल बराक की दीवार कहता है।
उनका मानना है कि ये वही दीवार है जहां पैगंबर मोहम्मद s . साहब ने “अल बराक” को बांध दिया था। ऐसा वहाँ पुरातात्विक साक्ष्य भी है।
मुसलमानों का इमान है कि पैगंबर मोहम्मद s .s .ने अल्लाह से बातचीत के लिए इसी अल-बराक जानवर की सवारी की थी।
यहूदी मानते हैं जिस दिन वह इसी स्थान पर हज़रत सुलैमान अलैहिससलाम का धर्मस्थल बना लेंगे,
तो उन्हें वह तिलिस्मी किताबें हासिल हो जाएंगीं जिनकी मदद से वह अपने मसीहा दज्जाल को जल्दी बुला लेंगे और वह दुनिया से इस्लाम को ख़त्म कर देगा!
और वह यहूदियों को वह इस्राइल अता करेगा जिसकी झूठी दलील वह अपनी किताब तौरेत में गढ़ चुके हैं।
यहूदी भी मस्जिद में इस्राइली पुलिस की सिक्योरिटी के साथ अब भी पूजा के लिए आते हैं।
एक आँख वाले दज्जाल का ज़िक्र हदीस में भी है , जिसका आगमन कयामत की कई निशानियों में से एक बतायी गयी है।
अब इसाईयों का पक्ष समझिए दरअसल मस्जिद अलअक्सा की 35 एकड़ ज़मीन के एक हिस्से पर ही हज़रत ईसा(मसीह) का जन्म हुआ था और वहाँ उनका बैतुल अहम है।
इसाई लोग उस जगह को पाना चाहते हैं।
कुल मिलाकर तीन धर्मों के विवाद में एक मस्जिद फंसी है जो हमेशा से मुसलमानों की मस्जिद थी।
और कई बार इस्राइली फौजों और पुलिस ने कई हथकंडे अपना कर मस्जिद अलअक़्सा पर क़ब्ज़े की कोशिश की है।
कई बार वह 50 साल से ज़्यादा उम्र के फ़िलस्तीनियों के मस्जिद में एंट्री पर रोक लगाते रहे हैं।
और मस्जिद की बुनियाद को खोदते रहे हैं ताकि मस्जिद को कमज़ोर करके उसे गिराकर हादसे के तौर पर दिखा दिया जाए!
यही नहीं जब मस्जिद पर इस्राइल का क़ब्ज़ा था,
उसकी दीवारों पर इस्राइलियों ने ख़तरनाक कैमीकल पेंट कर दिया जिससे वह जर्जर हो जाए।
अपने अगले प्रयास में इस्राइली पुलिस ने मस्जिद अलअक़्सा से जुड़े दस्तावेज़ चुरा लिए जो मस्जिद की देख रेख कर रही अलक़ुद्स इस्लामी वक़्फ़ के दफ्तर में रखे हुए थे।
यह दस्तावेज़ साबित करते हैं कि मस्जिद अलअक़्सा पर फ़िलस्तीनियों और मुसलमानों का हज़ारों साल का हक़ है।
इस्राइली पुलिस अब भी मस्जिद कम्पाउंड में ही डेरा डाले हुए है और बात बेबात पर गोलियाँ चलाती हैं।
जिसमें अब तक हज़ारो लोग मारे जा चुके हैं।
अभी कुछ दिन पहले भी नमाज़ियों पर गोली चलाई गयी।
मस्जिद अल अक़्सा” की आज़ादी तब होगी जब वहाँ इस्राइली यहूदी पुलिस हटेगी,
उसका पूरी तरह से क़ब्ज़ा फ़िलस्तीनियों को मिलेगा।
18 अक्टूबर 2016 को संयुक्त राष्ट्र की सांस्कृतिक शाखा यूनेस्को की कार्यकारी बोर्ड ने तमाम अध्ययन और रिसर्च के बाद एक प्रस्ताव को पारित करते हुए कहा है कि यरूशलम में मौजूद ऐतिहासिक अल-अक्सा मस्जिद पर यहूदियों का कोई दावा नहीं।