क्या चुनावी बॉन्ड की समीक्षा का सुप्रीम कोर्ट को अधिकार नही है?
नई दिल्ली
विशेष संवाददाता
सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार ने कहा कि चुनावी बॉन्ड की समीक्षा का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं है।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि ने शीर्ष अदालत में कहा कि जनता को इस फंड का स्रोत जानने का संविधान ने मौलिक अधिकार प्रदान नहीं किया है। नागरिकों को ‘कुछ भी और सबकुछ जानने का सामान्य अधिकार’ नहीं हो सकता।
उन्होंने इलैक्टोरल बॉन्ड योजना का समर्थन किया और इसे राजनीतिक दलों को ‘स्वच्छ धन’ के योगदान को बढ़ावा देने वाला उपाय बताया।
मोदी सरकार ने चुनावी बॉन्ड की शुरुआत इस दावे के साथ की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी।
वाह जी वाह! दावा तो था कि चुनावी बॉन्ड के जरिए दलों की फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी लेकिन अब कहा जा रहा है कि इनकी समीक्षा का अधिकार सुप्रीम कोर्ट को नहीं है न ही जनता को कुछ भी जानने का अधिकार नहीं है!
मतलब पारदर्शिता गई भाड़ में, हम चंदे के रूप में अपार कालाधन इकट्ठा करेंगे लेकिन उसकी हवा तक किसी को नहीं लगने देंगे। ये देश भाजपा की जागीर हैं।
यह मोदी की सरकार महाघोटालेबाज होने और गुंडागर्दी का स्पष्ट सबूत है। ईमानदार का खाता-बही खुला होता है। चौकीदार चोर है तभी तो चंदा देने वालों का नाम छिपा रहा है।
साभार;पिनाकी मोरे