जनता के साथ इतना बड़ा क्रूर मजाक और कोई कर भी नही सकता

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

जनता के साथ मोदी से ज्यादा क्रुर मजाक और कोई कर भी नहीं सकता

संघ और भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि राजनीति दुनिया का सबसे गंदा और घृणित धंधा है, और राजनीतिज्ञ सबसे घृणित, सबसे गये-गुजरे और पतित प्राणी हैं, और सरकार महज लूटेरों, भ्रष्टाचारियों, हत्यारों और माफियाओं का गिरोह है, जो अपने हित के लिए जनता की गाढ़ी कमाई येन-केन प्रकार से लूटने की क्षमता रखती है, और इस लूट का औचित्य भी सिद्ध करती है।

पर, अपनी इस हकीकत पर परदा डालने के लिए ही संघ और भाजपा धर्म और राष्ट्र कि नगाड़ा पीटते रहते हैं, जबकि सच्चाई यही है कि न तो इन्हें धर्म से कोई मतलब है और न ही राष्ट्र से।. धर्म और राष्ट्र इनके लिए वैसे एक साधन की तरह है , जिनके बलबूते वे लोगों को झांसे में रखकर उन्हें लूटते हैं ।और वे जयश्रीराम का नारा लगाते हुए इनका जयगान करते हैं।

बात दे कि गत शुक्रवार को नई दिल्ली में आईएसए अधिकारियों को 16 वें लोक सेवा दिवस के अवसर पर संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश और देशवासियों के साथ अब तक का सबसे बड़ा मजाक किया।. उन्होंने बड़े ही गर्व के साथ कहा कि प्रशासनिक अधिकारी इस बात को जरूर देखें कि सत्ता में बैठे राजनीतिक दल सरकारी धन का इस्तेमाल देश के विकास के लिए कर रहे हैं या अपने दल के विस्तार में प्रयोग कर रहे हैं या फिर वोट बैंक बनाने के प्रयास में उसे लूटा रहे हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रनिर्माण में अधिकारियों की महती भूमिका है, और यदि उन्होंने अपनी भूमिका का निर्वहन उचित तरीके से नहीं किया तो देश का धन लूट जाएगा, करदाताओं के पैसे बर्बाद हो जायेंगे और युवाओं के सपने चकनाचूर हो जायेंगे। उन्होंने अधिकारियों से यह भी कहा कि उन्हें यह देखना होगा कि सत्तासीन राजनीतिक दल सरकारी पैसे से अपना प्रचार कर रहा है या ईमानदारी से लोगों को जागरूक कर रहा है, अपने कार्यकर्ताओं को विभिन्न संस्थाओं में नियुक्त कर रहा है या सबको पारदर्शी रूप से नौकरी में आने का अवसर दे रहा है।

मोदी ने अमृतकाल का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकार के कामकाज की बदौलत भारत आज बहुत ऊंची छलांग लगाने के लिए तैयार है, और विश्व पटल पर विशिष्ट भूमिका में आया है। मेरी समझ में भारत और भारतीयों के साथ इससे बड़ा, इससे घृणित और क्रुर मजाक और कुछ भी नहीं हो सकता।

देश की जनता को यह अब बतलाने की जरूरत नहीं है कि अपने अब तक के कार्यकाल में मोदी सरकार ने अपने, अपनी पार्टी और अपने संगठन के हितों की पुर्ति के अलावा भी कुछ किया हो, यह किसी को भी मालूम नहीं है. आंख मूंदकर जनता के टैक्स के पैसे को अपने व्यक्तिगत, पार्टी और संगठन और उनसे जुड़े लोगों के लिए दोनों हाथों से खुलकर लुटाया गया है।.

अपने खुद के रहन-सहन, शौक, सुख-सुविधाओं, भोग-विलास, विदेश यात्रा, आठ हजार करोड़ रुपये का व्यक्तिगत हवाई जहाज, पार्टी के लिए चुनावी रैलियां और रोड शो से लेकर राज्यों में पार्टी विधायकों की संख्या कम रहने पर दूसरे दलों के विधायकों की खरीद-फरोख्त करने और पूरे देश के जिला मुख्यालयों में भव्य, सेंट्रल AC शानदार और आधुनिक सुविधाओं से लैस पार्टी कार्यालयों का अंधाधुंध निर्माण इनकी कारगुजारियों के सबूत हैं।

अपने संगठन और पार्टी के लोगों को न्यायपालिका, संवैधानिक संस्थाओं, केन्द्रीय सेवाओं, विश्वविद्यालयों से लेकर खेलकूद और साहित्य तक में गलत और मनमाने तरीके से नियुक्त करना भी लोगों को पता है।
सच में, जनता के साथ मोदी से ज्यादा क्रुर मजाक और कोई कर भी नहीं सकता. गरीबी, महंगाई, भूखमरी, बेरोजगारी, मजदूरों और किसानों की लूट, देश की संपत्ति, संपदा और प्राकृतिक संसाधनों को अडानी और अंबानी के हाथों कौड़ियों के मोल बेचना भी सबको मालूम है. संसद में अब भी यह प्रश्न खड़ा है कि अडानी की शेल कंपनियों में 20,000 करोड़ रुपये किसके हैं ? शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों से भी आम आदमी को वंचित करना भी क्या राष्ट्रनिर्माण है ?

यह कौन-सी ऊंची छलांग है कि आज भारत विकास के मामले में अफ्रीका के दक्षिण सूडान, अंगोला, बुरुंडी और सोमालिया जैसे राज्यों की श्रेणी में शामिल है ? भारत आज एशिया का सबसे भ्रष्ट देश घोषित हो चुका है। पत्रकारों पर हमले और पत्रकारिता पर नियंत्रण के मामले में दुनिया के 180 देशों में भारत 126 वें स्थान पर है. महिलाओं के लिए भारत दुनिया का अफगानिस्तान के बाद दुनिया का सबसे खराब देश माना गया है।

लोगों की खुशहाली के मामले में भारत दुनिया में 105 वें नंबर पर है, जो दक्षिण एशिया में भी मालदीव और अफगानिस्तान के बराबर ही है. दुनिया के तीन सौ विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय शामिल नहीं है. विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का भारत पर ऋण बढ़कर 51 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 126 लाख करोड़ रुपये हो गये हैं।

गौर तलब कीजिए कि 2009 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से घटकर आज भारत विकासशील देशों की सूची से भी बाहर कर दिया गया है. अब इनके अलावा भी विनाश का कोई पैमाना होता हो, तो मैं नहीं जानता. मोदी का विकास का क्या पैमाना है, यह तो वही जाने. हो सकता है कि विनाश को ही उन्होंने विकास मान लिया हो, ऐसे में मैं कुछ नहीं कह सकता।

साभार: पिनाकी मोरे

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