जब कही भाजपा की हालत खराब होने लगती है,आरएसएस कमान संभाल लेता है

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

कई बार बीजेपी के लिए
RSS कमान सम्हाल चुका है
जब कहीं भाजपा की हालत पतली होती है, संघ कमान सम्हाल लेता है।

गौर तलब हो कि आपने व्हाट्सप पर पढ़ा होगा कि संघ वर्कर्स पर बंगाल, केरल में रोज हमले होते हैं।
संघी गप्पों की सत्यता, एज युजुअल 90% घटा दें, तो 10% छिटपुट हमले सचमुच होते हैं। ये ऑक्यूपेशनल हैजर्ड” है।
टीकाराम टपलू नामक संघी की हत्या, कश्मीर के प्रारम्भिक मर्डर्स में से थी। वे कश्मीरी पंडितों को जागृत करते थे। केरल बंगाल में भी वे हिन्दुओ को जागृत करते हैं।

RSS कोई सेवाभावी, गैर राजनीतिक, सांस्कृतिक संस्था नही।

ये एक होल्डिंग कम्पनी है। जो तमाम संगठनों का मकड़जाल चलाती है। हर पर्पज, हर एंगल से बनाये गए अलग अलग संगठनों का नेटवर्क, जो 90 साल के इवोल्यूशन का नतीजा है।

विहिप, बजरंग दल, सैंकड़ो एनजीओ, विद्या भारती (शैक्षणिक संस्था), भाजपा ( राजनैतिक ब्रांच) और “ये सेना – वो सेना” वगैरह गुंडा सेनाये है। भारतीय मजदूर संघ, किसान-छात्र संगठन, महिला संगठन..
सारे अलग चेहरे और अलग नाम, ऑटोनोमस काम करते हैं,

अंदरखाने, संघ के कोर्डिनेशन में। इस भूतिया RSS के हजारों रूप है। साधु रूप, शैतान रूप, बौद्धिक रूप, लठमार रूप, मुस्कुराता रूप, डराता रूप, शहद छलकाता रूप।
वो समयानुसार, उचित विंग का इस्तेमाल करते हैं। जीते तो सत्ता, हारे तो असफलता छुटभैयों पर डालकर हाथ झाड़ लेते हैं। तो संघ के कमान सम्हालने से मतलब है कि ये मकड़जाल, ये साझा नेटवर्क झोंका जायेगा।
और सारे एक ही काम करेंगे

समाज मे विभाजन !

मुसलमान से भय, सरकार/ नेता का आर्थिक/चारित्रिक करप्ट होने की कानाफूसी,कांस्पिरेसी थ्योरीज, दबंगों और इंफ्लुएंसर की पहचान, मित्रता, दल बढाना, भड़काऊ बयानबाजी, मारकाट की नौबत लाना..
और मारकाट हो जाये,तो रो रोकर बताना कि मारे गए सारे हिन्दू, संघ के कार्यकर्ता थे। मारे गए मुसलमान,आक्रांता थे।

माहौल यूँ बनाना कि आसपास के अल्पसंख्यक प्रतिक्रिया करें। फिर हर क्रिया- प्रतिक्रिया- क्रिया -प्रतिक्रिया का चक्र, सीटें बढ़ाता जाता है।
बस, इसी को दूसरे शब्दों में भाजपा के लिए जमीन तैयार करना कहते हैं। 90 साल की इस चक्र ने, RSS को वो पोजिशन दे दी, जिसकी उसे तलाश थी।

वैसे
भाजपा, यूं तो पंजीकृत, स्वतंत्र राजनैतिक दल है। वंशवाद से दूर, एक लोकतांत्रिक दल। पर सचाई यह है कि यह नीचे से ऊपर कठपुतलियों की पार्टी है।
जिला स्तर से ऊपर, आप संघ से नॉमिनेट हुए बगैर नही बढ़ सकते। टिकट स्थानीय मजबूरियों की वजह से मिल जाये, जीतकर मंत्री नही बन सकते।
संघ के आशीर्वाद के बगैर सीढ़ी चढ़ नही सकते। शीर्ष की शपथ तो स्वयंसेवक ही लेगा। वंशवाद मुक्ति की झंडाबरदा भाजपा, टॉप टू बॉटम, पिंजराबन्द तोतो का झुंड है।

संघ प्रमुख राष्ट्र के नाम दूरदर्शन देते हैं।मझोले स्तर के प्रचारक, राज्यों में घूम घूमकर मंत्रियों और पार्टी पदाधिकारियों की क्लास लेते हैं। सांसदों को प्रशिक्षण देते हैं।
किसी कस्बे संघ के प्रचारक आ जाये, तो उसे भोजन कराने वाले भजपैयों के सेवाभाव पर जरूर गौर करें। मामूली भजपैया, जनता के आशीर्वाद से नही, RSS के रहमोकरम पर ही सत्ता की मलाई चाभ सकता हैं।

कभी तो किसी प्रचारक को, मुख्यमंत्री की शपथ लेने के लिए रातोरात बियाबान (अमेरिका) से बुला लिया जाता है।
आप जिसे अनुशासन कहते हैं, दरअसल RSS का डंडा है, जिसकी लाइब्रेरी में आपकी फाइलें, वीडियो, सब मौजूद हैं।
तो इस सत्ता को पाने, बचाने के लिए RSS कमान संभालने कूदता है।

वो गैंग, जिसने एड़ियां रगड़कर “राजनैतिक गतिविधि में भाग न लेने की कसम खाकर बैन हटवाया था, वो हमारी राजसत्ता का कंट्रोलर बन बैठा है।
ऐसा भी नही कि संघ के कमान सम्हालते ही जादू हो जाये। जहाँ जनता नफरत नकार दे, इनकी दाल नही गलती।

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उधर केरल में वह 60 के दशक से कमान सम्हाल चुका है।आज तक मूंगफली न फोड़ सके।
इस असफलता का एक वैज्ञानिक कारण हैं।
न्यूटन का चौथा नियम कहता है –
संघ की सफलता, किसी इलाके में लोगो की (जहालत+ मूर्खता)×दिलों में नफ़रत. के सीधे समानुपाती होती है”

तो जहां, नफरत की पौध न हो, वहां वक्ती तौर पर सामान्य राजनीति की जाती है। येदियुरप्पा, वसुंधरा, रमन जैसे लोग आगे लाये जाते हैं।
उस सत्ता की छांव में समाज के बीच खंदकें खोदी जाती है, ताकि अगले चुनाव तक नफरत की फसल लहलहाने लगे।
फिलहाल 5 राज्य में संघ के कमान सम्हालने की खबरे आ रही हैं। जाहिर है वहां लोगो के बीच नफरत का नशा फटने की पक्की खबर है।
तो चेतावनी जारी की जाती है, कि इन राज्यों के लोग अपने “होशो हवास” की सुरक्षा मन प्रण से करें। क्योकि आरएसएस
कमान सम्हाल चुका है

@मनीष सिंह की कलम से
संवाद:पिनाकी मोरे

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