जब दोस्त का ही साथ है तो एक के बाद एक,एक खरीदते खरीदते शायद पूरा देश ही कर देगा अपनी मुट्ठी में
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
अडानी अपने मित्र मोदी की मदद से जिस तरह एक के बाद एक चीज़ें ख़रीद रहा है, लगता है वो पूरा देश खरीदने निकला है !
अच्छा अडानी के पास इतना पैसा आया कहाँ से ?
दरअसल बैंकों ने उसे कर्ज़ दिया है, यही नहीं जब जितना चाहिए, बैंक उसे कर्ज़ दे देता है !
अच्छा तो बैंकों के पास इतना पैसा कहाँ से आया ?
देश के मज़दूर किसान, नोकरीपेशा लोग बैंकों में अपनी बचत के पैसे रखते हैं, बैंक यही अडानी को कर्ज़ के रूप में देता है।
मतलब अडानी जनता के पैसे से जनता के लिए बनी संस्थाओं को ख़रीद रहा है !
जी हाँ, ऐसा ही है !
अडानी ये कर्ज़ वापस कैसे करता हैं ?
धंधे से मिले मुनाफ़े से करते हैं, धंधा न चले तो नहीं भी करते, कई बार बैंक अधिकारी, अफ़सर, नेता और पूँजीपति मिलकर सब पैसा आपस में बांट लेते हैं।
बदले में सवाल है कि
तो इन पर कार्यवाही क्यों नहीं होती ? इसके जवाब में बताया जाता है कि
अमीर को अमीर के गुनाह नज़र नहीं आते, दूसरे जाँच करने वाले लालच या जान जाने के डर से भी इंसाफ नहीं कर पाते !
ऐसे डूबने वाले कर्ज़ों का क्या होता है ?
कुछ नहीं, कई तकनीकी दाँव पेंच में उलझा रहता है, फिर लोग भूल जाते हैं, कई बार कर्ज़दार किसी और मुल्क़ में जाकर बस जाता है।
क़र्ज़ के रूप में इस तरह कितना पैसा डूबा होगा ?
ठीक ठीक तो पता नहीं लेकिन कर्ज़, करमाफ़ी और रियायत वगैरह को मिलाकर अंदाज़ा लगाया जाए तो इतना पैसा तो ये अमीर लूट ही चुके हैं कि अगर उसकी रिकवरी हो जाये देश के सारे बेघरों को घर, हर बच्चे को निःशुल्क तालीम और हर बेरोज़गार को रोज़गार मिल सकता है !
आखरी सवाल
तो जनता इसके लिए आन्दोलन क्यों नहीं करती ?
अडानी जैसे अमीर लोग बिकाऊ मीडिया के ज़रिए जनता को जाति और धर्म के झगड़े में उलझाए रखते हैं, इसलिए लोगों को इस पर सोचने की फुर्सत ही नहीं मिलती । लोग अपनी अपनी रोजमर्रा जिंदगी में मसरूफ है। कोई पूछने वाला नहीं है इन महाशयों को बाकी रहा सब काम तो उसका निबटारा उनके अजीज दोस्त का उन्हे पूरा साथ दिया जा रहा है तो निश्चित ही एक दो चीज नही बल्कि पूरा देश इन के कब्जे,मुट्ठी में होने में कोई देर नहीं लगेगी।
आख़िर ये लूट यूँ ही कब तक चलता रहेगा ?
संवाद:पिनाकी मोरे