जानिए इंसानियत के कातिल तानाशाह हिटलर ने खुद को क्यों मारी थी गोली?
इसी दिन यानी 30 अप्रैल, 1945 ई. को इंसानियत के कातिल हिटलर ने खुद को गोली मारी थी?
बता दें कि
वो ताकत का भूखा था, वो बेखौफ होकर अपने मुल्क में नफरत परोसता था, वो कहता था यहूदी हमारे ईसा मसीह के कातिल है, ये लोग आदतन अपराधी है, आतंकवादी है, गद्दार है, कातिल है और ये लोग हमारे देश में जहर की तरह फेल रहे है,
इन्होंने हमारी प्रॉपर्टी पर कब्जा कर रखा, आप हमे चुनो, मै यहूदियों का सफाया कर दूंगा, आपका खोया हुआ गौरव वापस लोटा दूंगा, आपकी जमीन मैं फ्रांस से वापस छीन लूंगा, मै आपके लिए किसी से भी लड़ जाऊंगा।
जनता ने उन्हे वाइमर गणराज्य (जर्मनी संविधान) के तहत अपना रहनुमा बना डाला, लेकिन उसने सबसे पहले इसी संविधान का गला घोंट दिया, जर्मन संसद में आग लगा दी ओर इल्जाम विपक्ष पर लगाकर विपक्ष को भी खत्म कर डाला,
सारे सिस्टम को खतम कर डाला, एक नया सिस्टम बनाया जिसमे यहूदियों के लिए सिर्फ मौत का विकल्प था, यहूदियों को भगाना नही है, उन्हे माफ भी नही करना है, उन्हे ईसाई भी नही बनाना है, बस यहूदियों को मार दो यही उनकी सजा है, क्योंकि इन्हे जीने का हक नहीं है। इस सिस्टम को नाजीवादी” कहते है।
जब वो जर्मनी की खोई हुई जमीन वापस लेने लगा तो यूरोप में आतंक सा छा गया, दो देशों ने हिटलर के हमलों का मुकाबला करने के लिए एक दूसरे की मदद करने के समझौते किए। लेकिन जब हिटलर हमला करता तो दूसरा देश तमाशा देखता रहता। कयोंकि उसकी हिम्मत ही नहीं होती थी।
लेकिन एक दिन इंग्लैंड और फ्रांस ने इस कातिल के खिलाफ जंग का एलान कर ही दिया। उसी के साथ सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया। जिसमे करोड़ों लोगों की जिंदगियां तबाह हो गई, पूरे विश्व की इकोनॉमी चौपट हो गई, गरीब को रोटी मिलना दुश्वार हो गया, गरीब सिर्फ रोटी के लिए पूरे दिन किसी के लिए काम कर सकते थे। इन सब का जिम्मेदार था अकेला एडोल्फ हिटलर।
एक दिन कातिल को कबीरदास का दूहा याद आया कि
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय!
जब दिल खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोय!
यानी उन्हे लगा कि बुरा तो सिर्फ मैं खुद हु, सारी समस्याओं की जड़ तो मैं खुद हूं, जर्मन जनता का दोषी भी मैं, यूरोप का दोषी भी मैं और दुनिया का दोषी भी मैं, इससे पहले की कुत्ते की मौत मार दिया जाऊं, इससे पहले खुद को गोली मार देता हूं और खुद को गोली मार दी। फुर्र फुर्र जो हिटलर की चाल चलेगा वो उसी की मौत मरेगा बेशक।
संवाद;जैनुल आबेदीन शेख