जाने वर्ष 1955,और1971 में इस पूर्व प्रधान मंत्रियों को उनके कार्यकाल के दौरान ये अवार्ड दिया गया था

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

क्या नेहरू और इंदिरा गांधी ने खुद को दे दिया था भारत रत्न?

साल 1955 में पंडित जवारलाल नेहरू और साल 1971 में इंदिरा गांधी को उनके कार्यकाल के दौरान यह अवॉर्ड दिया गया था।
भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। यह भारत सरकार की ओर से कला, साहित्य, विज्ञान, सार्वजनिक सेवा और खेल के क्षेत्र में अहम योगदान देने वालों को यह सम्मान दिया जाता है।

भारत रत्न, या पदम् पुरस्कारों के लिए के लिए कोई ज्यूरी नहीं होती है। भारत की कैबिनेट जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है, वह राष्ट्रपति को इन नामों की सिफारिश करता है।
इसके बाद राष्ट्रपति द्वारा इन नामों पर मुहर लगाई जाती है।

पंडित नेहरू को पुरस्कार, बिना कैबिनेट रिकमेंडेशन के, तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने स्वतः दिया था।
बताए चले कि 15 जुलाई, 1955 को राष्‍ट्रपति ने एक भोज का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत रत्न देने की घोषणा की थी।
नेहरू जी, इस दिन रूस से 16 दिनों की यात्रा से आये थे। जिसमें उन्होंने रशियन इंडस्ट्रीज का अध्ययन किया।

इसके बाद भारत मे दुर्गापुर, बोकारो, भिलाई वगैरह स्टील के कारखाने लगे, और औद्योगिक विकास में रूस को पूरा आश्वासन मिला।
इस दौरान कई अंतरराष्ट्रीय मसलों ओर भी रूस से सहयोग और समन्वय स्थापित हुआ। पूरे रूस में नेहरू जी13000 किमी सफर किये, अनेक शहरों में गए। वहां हर जगह उनका बड़े ही सम्मान के साथ उनकी अगवानी किसी हीरो की तरह हुई।
इसका भारत मे भी जोशीला असर था। राजेन्द्र प्रसाद ने इसी उपलक्ष्य में सम्मान भोज दिया, और नेहरू जी को भारतरत्न देने की एकपक्षीय घोषणा कर दी।

16 जुलाई, 1955 को द टाइम्‍स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार, राष्ट्रपति ने इस बात को स्वीकार किया कि उन्होंने बिना प्रधानमंत्री या कैबिनेट के सुझाव के खुद यह सम्मान पंडित जवाहरलाल नेहरू को दिया।
चूंकि इस पर कैबिनेट की अनुशंसा नही थी, इसलिए न तो कोई गजट नोटिफिकेशन है, और न ही नेहरू का भारतरत्न के लिए कोई साइटेशन।

पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी जी को साल 1972 में भारत रत्न से नवाजा गया था। उस साल सिर्फ उन्हें ही भारत रत्न दिया गया। जो 1971 युद्ध मे उनकी भूमिका के लिए दिया गया था।
1971 में इंदिरा गांधी की भूमिका क्या थी, इस पर लिखने की जरूरत नहीं। यहां भी तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरी ने इंदिरा राष्ट्रपति राजेद्र प्रसाद की तरह ही खुद इस बात का फैसला लिया था।
और यहां भी कोई कैबिनेट प्रस्ताव, गवर्मेन्ट का नोटिफिकेशन नही है। यद्यपि साइटेशन जरूर है।
भारत का सम्विधान, उसमे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के अधिकार, जो लिखे गए है, उनका इम्पलीमेंटेशन, प्रथम 10-15 साल अस्पस्ट सा रहा है।

बता दे कि खास तौर पर प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने कई बार “नाम मात्र का मुखिया” होने के सिद्धांत को ओवरस्टेप किया।
एक खास मिसाल है, जब जनरल थिमैया ने एक खास जूनियर को, अपने बाद सेनाध्यक्ष के रूप में उत्तराधिकारी के रूप में नामित करते हुए सीधे, “सुप्रीम कमांडर” याने राजेन्द्र प्रसाद को चिट्ठी लिख दी।
राष्ट्रपति ने स्वीकार भी कर लिया औऱ गवर्मेन्ट को, उक्त अफसर के प्रमोशन नियुक्ति के लिए फाइल बनाकर भेजने के लिए मार्क किया।

बांडित जवाहरलाल नेहरू ने आपत्ति की।

इस मामले में कहा कि रक्षा मंत्रालय प्रस्ताव देगा, कैबिनेट विचार करेगी, और फिर जिसे रिकमेंड करेगी, वह सेनाध्यक्ष होगा।
थिमैया की रिकमेंडेशन रिजेक्ट हुई। सीनियरिटी के आधार पर नेक्स्ट मेजर जनरल को उनके बाद सेनाध्यक्ष बनाया गया।
नेहरू, इंदिरा के भारतरत्न के मामले में भी इसी तरह कॉन्स्टिट्यूशनल फ्रेमवर्क को ओवरस्टेप करने का मामला था। ये प्रिसिडेंट अच्छा है, या खराब, अपना1 अपना विचार हो सकता है।
मगर मैं, इसे एक गलत प्रिसिडेंट मानता हूँ।
और कांग्रेस के हर गलत प्रिसिडेंट को दोहराना मौजूदा सरकार का जन्मसिद्ध अधिकार, बचपन का कुटैव है।

बहरहाल पूर्व का प्रिसिडेंट देखते हुए, मै माननीय राष्ट्रपति महोदया से अनुरोध करना चाहता हूँ, कि वे भी हमारे प्रधानमंत्री को
2 करोड़ रोजगार, काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक..600 करोड़ लोगों को मकान और किसानों की आय दुगनी करने, नागरिको को कपड़ो से पहचानने..
तथा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का कचूमर निकालने के लिए तत्काल सुओ-मोटो भारतरत्न देव।

संवाद; पिनाकी मोरे

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