जाहिर तौर से नैतिक शिक्षा ही नैतिक मूल्यों को परिवर्तित करती है क्यों और कैसे? जाने तफसीलसे से !

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रिपोर्टर:-

स्कूल,विद्यालयों में ने तो नैतिक शिक्षा दी जा रही और न ही अभिभावकों के पास उसके लिए समय है!
इंटरनेट के दुरुपयोग ने किया बंटाधार।
एक समय पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा को वरीयता मिलती थी नैतिक शिक्षा की पुस्तकों में प्रेरक प्रसंगों के माध्यम से यह सिखाया जाता था कि हमें अपने जीवन में किन आदर्शों को आत्मसात करना है ।

इन आदर्शों में सत्य, ईमानदारी, सहनशीलता, विनम्रता, संवेदनशीलता, गुरु सेवा, माता-पिता का आदर, मित्रता, दया और दान जैसे मूल्य होते थे।
समय बीतने के साथ नैतिक शिक्षा अनिवार्य शिक्षा पाठ्यक्रम से बाहर हो गई।
अब न तो विद्यालयों में नैतिक शिक्षा दी जा रही है और न ही अभिभावकों के पास उसके लिए समय है कि वे बच्चों को ये संस्कार दे सकें।

वे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में ही व्यस्त हैं।
इस प्रकार नैतिकता परिदृश्य से गायब होती जा रही है।
सत्य यही है कि बिना नैतिक शिक्षा के एक अच्छे व्यक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती है।
एक ओर नैतिक शिक्षा का अभाव हो रहा है तो दूसरी ओर इंटरनेट एवं इंटरनेट मीडिया के दुरुपयोग ने बंटाधार किया हुआ है।

पहले संयुक्त परिवार में बुजुर्ग अपनी अगली पीढ़ी को कहानियों के माध्यम से अच्छी बातें सिखाते थे।
जब से एकल परिवार हुए हैं, यह सब भी बंद हो गया है।
वास्तव में नैतिक शिक्षा ही नैतिक मूल्यों को परिवर्तित करती है।
नैतिक मूल्यों से व्यक्ति चरित्रवान बनता है। सदाचार ही व्यक्ति को देवत्व की ओर ले जाता है।

हमारे समक्ष अनेक उदाहरण हैं जिनका व्यक्तित्व सही मायनों में आदर्श रहा।
उनका आदर्श होना उनके बाल्यकाल में मिली नैतिक शिक्षा और प्रशिक्षण से ही संभव हो सका।
आज भी समय है हम अपनी नई पीढ़ी को सत्य, त्याग, विनम्रता, सहनशीलता, करुणा, ईमानदारी और उदारता से ओतप्रोत पाठ पढ़ाएं, ताकि उनका भविष्य उज्ज्वल बन सके।

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