जिधर हो गड़बड़ी तो लिख देगा सब कुछ ठीक है,दिल्ली में बैठा केचुआ तो ऐसे ही अंधा है मान लेगा क्योंकि भाजपा का दलाल है?

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

भाजपा का दलाल कें.चु.आ की चाल :-

कें.चु.आ केन्द्रीय सरकार के मनपसंद का हो तो जहां बहुत कांटे का मुकाबला हो वहां 7 चरण में चुनाव होते हैं जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, जहां चुनाव में एक तरफा जीत या एकतरफा हार पक्की हो वहां एक ही चरण में चुनाव कराए जाते हैं , जैसे केरल, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु इत्यादि।

राज्य की सत्ता जिस पार्टी के पास होती है , चुनाव में पूरी मशीनरी उसी की होती है। एक उदाहरण के रूप में उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में 80 जिलाधिकारी और 80 एसपी या कमिश्नर हज़ारों आईएएस और आईपीएस में से राज्य सरकार के सबसे विश्वसनीय 80-80 लोग होते हैं जो सर्विस रूल्स और संविधान के साथ साथ बल्कि कहीं अधिक राज्य सरकार के लिए वफादार होते हैं।

चुनाव आचार संहिता लगने के पहले ऐसे हर राज्य की मशीनरी राज्य सरकार के नियंत्रण में होती है और हर लोकसभा -विधानसभा , हर बूथ पर समीकरण और आंकड़े के अनुसार राज्य की मशीनरी को निर्देश दे दिए जाते हैं।

चुनाव आचार संहिता लगने के पहले ही सारी बिसात बिछा दी जाती है , सारी चालें चल दी जातीं हैं।
चुनाव आचार संहिता भी जनता को मुर्ख बनाने का एक झुनझुना है , यही जिलाधिकारी अपने जिले के मुख्य जिला निर्वाचन अधिकारी होता है। चुनाव बाद भी उसे राज्य सरकार और मुख्यमंत्री की कृपा चाहिए ही होती है। वैसे भी वह मुख्यमंत्री का सबसे विश्वसनीय आईएएस अधिकारी होता है।

यही जिला निर्वाचन अधिकारी चुनाव आयोग को नामांकन मतदान और मतगणना तक की रिपोर्ट भेजता है।
जहां गड़बड़ी हुई वहां लिख देगा कि सब ठीक है तो दिल्ली में बैठा केंचुआ तो ऐसे ही अंधा है , मान लेगा।

चुनाव में चार तरह से धांधली होती है , 1- नामांकन के समय, प्रशासन सूरत की तरह जिसका चाहे मीन मेख निकाल कर नामांकन रद्द कर सकता है।
2- चुनाव प्रचार में किसी के भाषण या बयान पर उसको नोटिस पर नोटिस पकड़ाना , चुनाव प्रचार से रोक देना और किसी के उससे अधिक आपत्तिजनक भाषण पर अंधे बहरे हो जाना। इसके अतिरिक्त भी प्रशासन तमाम प्रोग्राम के लिए अनुमति देना ना देना, कहीं सख्ती तो कहीं छूट जैसे खेल चलते रहते हैं।
3- अब आता है मतदान का दिन, कहां किस पार्टी का का वोटर है उस हिसाब से फोर्स लगाई जाती है। , जैसे भाजपा के वोटर्स का बूथ है तो एक होमगार्ड बैठा दिया जाता है और उसके विरोधी दल के वोटर्स का बूथ है तो लंबी लंबी संगीनों के साथ कई दर्जन जवान तैनात कर दिए जाते हैं। इससे वोटर्स के दिल दिमाग में डर पैदा किया जाता है।

मुस्लिम वोटों के बूथों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज होती है और वोटरों को भगाया जाता है जिससे उनके वोट ना पड़ सकें।
रामपुर, आज़मगढ लोकसभा उपचुनाव और संभल का मौजूदा चुनाव इसका उदाहरण है।

प्रशासन की ऐसी कोशिश के कारण लोग डर कर घर बैठ जाते हैं।क्योंकि चुनाव बाद भी उन्हें ज़िन्दगी जीना होता है, पुलिस थाने के चक्कर में कोई पड़ना नहीं चाहता।

इसके बाद आता है मतगणना का दिन, EVM के इतर 200-5000-10000 तक के अंतर से हारे प्रत्याशी को जिला मुख्य चुनाव अधिकारी जीत का प्रमाण पत्र थमा देता है।
आप हल्ला मचाते रहिए, उसके जीत की गिनती के आधार पर सरकार बन जाती है , फिर आप दौड़ते रहिए कोर्ट कचहरी।

यही चार चरण प्रशासन के लिए फर्क पैदा करने के लिए बहुत है , वह चाहे तो किसी के लिए निर्णायक अंतर पैदा कर सकता है।
और वह किसके लिए चाहेगा आप बेहतर समझ सकते हैं।

इसकी एक काट है जो प्रशासन की हर ऐसी कोशिश को ध्वस्त कर देगा और वह है शत प्रतिशत मतदान। चाहे कुछ भी हो मतदान करना मत छोड़ें, मतदान से आपको कोई रोक नहीं सकता, प्रशासन सिर्फ़ डरा सकता है, खदेड़ सकता है मगर शांतिपूर्ण तरीके से मतदान को नहीं रोक सकता। जो भी हो मतदान करिए, यही लोकतंत्र में सारे खेल की काट है।

और मुसलमान इसे समझ चुका है, आंकड़े उठाकर
देख लीजिए जहां मुसलमानों का प्रतिशत अधिक है वहां मतदान का प्रतिशत अधिक है।

संवाद;पिनाकी मोरे

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