देश की आम जनता ने इन्हें कुर्सी पर क्यों बिठाया है क्या वह संविधान की धज्जियां उड़ाए?

विशेष संवाददाता

कल अमित शाह ने संसद में बाबासाहेब आंबेडकर को लेकर जो कुछ कहा, वह हर संघी का सार्वजनिक विचार है।

बाबासाहेब का इस तरह से अपमान बीते 10 साल 9 महीने के संघी राज में हर पल हुआ है, क्योंकि मनुवाद के पुजारियों के दिल–दिमाग से जाति, वर्ण व्यवस्था और शुद्धता–श्रेष्ठता जाती नहीं।

आरएसएस की शाखा में घुसते ही आपको अपनी डिग्री, ज्ञान, शिक्षा और विज्ञान सब बाहर फेंकना पड़ता है।
क्योंकि वहां 7 जन्मों, स्वर्ग–नर्क की बात होती है। देवताओं के राजा की बात होती है, जो खुद अपने ही नाम के आगे इंद्र लगा लिया करता था।
सावरकर की तरह, जिसने अपने नाम के आगे वीर जोड़ा था।

आंबेडकर ने संविधान को रचकर 2000 जातियों और 4 वर्ण के इस देश को समानतामूलक स्वर्ग बनाने की कोशिश की।

मात्र आरएसएस ने भारत की धरती को स्वर्ग बनाने की इस कोशिश को ध्वस्त करते हुए नर्क में बदल दिया। संविधान की धज्जियां उड़ा दी।

आज हम आरएसएस की इन शाखाओं को अपने आसपास चलते–फिरते देख सकते हैं। फ़र्ज़ी, लोटिया, डंडी स्वामी बाबाओं के उपदेशों में। मिथकों, फालतू के पाखंडों में। माथे पर धर्म के तिलक में।

अमित शाह ने साफ कह दिया है कि आरएसएस आंबेडकर को आगे भी अपमानित करेगी, क्योंकि वे मनुवादियों की वर्ण व्यवस्था वाली सोच के हिसाब से द्विज नहीं अधम हैं।
यह भी उतना ही सही है कि द्विज, यानी शुद्धता के समर्थक कांग्रेसियों ने कभी दलितों को हक लेने नहीं दिया। सिर पर मैला उठाने से लेकर गटर साफ करने तक।
उन औरतों को भी घूंघट और पल्लू से आजादी नहीं मिली, जो अपने लंबे बाल दिखाना चाहती हैं।

आरएसएस पर प्रतिबंध न लगाकर कांग्रेस ने देश में गधे पाले। आज इन बहुसंख्यक गधों का राज है। इस गलती की कोई माफी नहीं है।
लाल किले से 1990 के कविता पाठ का अंश सुनिए। तब पता चल जाएगा कि RSS का असली चेहरा और मंशा क्या है?

संवाद;पिनाकी मोरे

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