देश के साबिका प्रधान मंत्री राजीव गांधी के लिए ऐसा भी एक वक्त आया था कि चुनाव मंत्रणा के बारे मे चुनाव आयुक्त को ऑफिस पर तलब किया गया था पर आयुक्त ने इनकार किया तब पीएम को चुनाव आयुक्त के पास खुद जाना पड़ा था! आज का दौर कुछ और है

विशेष संवाददाता

शेषन साहब का एक क़िस्सा उन दिनों काफी मशहूर हुआ था। राजीव गाँधी प्राइम मिनिस्टर थे और शेषन चुनाव आयुक्त थे। राजीव गाँधी ने चुनाव सम्बन्धी कुछ मंत्रणा के लिए शेषन को प्रधानमंत्री कार्यालय बुलाया , लेकिन शेषन ने इंकार कर दिया। उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय को जो जवाब दिया उससे राजनीतिक गलियारों में हड़कंप सा मच गया।

शेषन ने लिखा – मेरी ज़िम्मेदारी चुनाव आयुक्त की है , प्रधानमंत्री कार्यालय पर हाज़री देने की नहीं। न ही चुनाव आयुक्त की कोई ऐसी संवैधानिक बाध्यता है। प्रधानमंत्री चाहें तो मेरे दफ्तर में आकर मुझसे मिल सकते हैं !

नतीजा ये हुआ कि राजीव गाँधी खुद चलकर चुनाव आयोग के कार्यालय पहुंचे। आज के समय में आप ये कल्पना भी नहीं कर सकते कि कोई चुनाव आयुक्त इस तरह की भी हिम्मत दिखा सकता है। शेषन जैसे लोगों में नैतिक बल था, इसके अलावा सरकार भी ऐसी नहीं थी कि उन्हें इस धृष्टता की कोई सजा देती। ये राजीव गाँधी की भी सौम्यता ही समझी जाएगी कि उन्होंने इसे अपने अपमान की तरह नहीं लिया।

ऐसा भी था एक अफसर

जिन दिनों टी एन शेषन भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त थे, बिहार में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे। बिहार और केन्द्र में एक ही दल की सरकारें थी। शेषन बिहार में निष्पक्ष चुनाव करवाना चाहते थे। बिहार पुलिस सरकार के प्रभाव में थी इसलिए शेषन ने चुनाव के लिए केंद्र से सेन्ट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स की मांग की। केंद्र ने देने से मना कर दिया। शेषन ने कहा, ‘ठीक है, बिहार में चुनाव नहीं होंगे।’ केन्द्र के हाथ पांव ढीले हो गए, केंद्र को मजबूरन फोर्स भेजनी पड़ी और शेशन साहब की बात पर केंद्र सरकार ने बिहार में फोर्स भेजी, तब बिहार में चुनाव संपन्न हो गये।

तब से आज तक चुनाव आयोग जब और जहाँ फोर्स मांगी जाती है, फ़ोर्स भेजी जाती है। ये था टी एन शेषन का काम करने का तरीका। तब ही सुप्रीम कोर्ट से आवाज आई ‘शेषन जैसे कभी-कभी होते हैं।’

आज टी एन शेषन नाम की प्रजाति विलुप्ति के कगार पर है। आज के राजनीतिक दौर की स्थितियां इसके विपरित है जिसने भी वैसा बनने की कोशिश की, उसे पद से स्थानांतरित कर दिया जाता है। जो बिना रीढ़ की हड्डी के काम करेगा उसके लिए राज्यसभा में सीट या राज्यपाल का पद सामने गाजर की तरह लटका दिया जाता है!
तो फिर ऐ से माहौल मे भला
कोई क्यों और कैसे शेषन बनेगा?

संवाद;द्वारिका प्रसाद अग्रवाल,पिनाकी मोरे

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