दोसतम ने तालबान के लड़ाकों के हाथ पैर बांधकर कब्रों में जिंदा दफन कर दिया था? दश्ते-लैली की अलमनाक दास्तान पढ़िए !
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रिपोर्टर :-
आज से तकरीबन 20 साल पहले नवम्बर 2001 मे कंदूज़ के मकाम पर स्टूडेंट्स के साथ जनरल रशीद दोस्तम ने कुरआन पर हाथ रखकर अहद़ किया था,कि मैने अमेरिका से बात कर ली है तुम (तालबान) हथियार डाल दो मै तुमको महफ़ूज़ रास्ता दिलवाऊगां।
क्योंकि स्टूडेंट्स मुजाहिदीन मुहासरे मे आ चुके थे ,
और उनके पास हथियारों की भी श़दीद़ कमी थी ,
लिहाज़ा उन्होंने ये फैसला किया कि अपनी कुव्वत बचा कर कही और कुफ्फारो से दूसरी जगाहो पर मुकाबला करना चाहिए
,इस सूरतेहाल के पेशेनज़र शहज़ादों ने हथियार डाल दिये ।
लेकिन उसके बाद जो हुआ उसे लिखने की हिम्मत शायद कलम मे ना हो !
उस ज़ुल्म का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि एक जर्मन रिपोर्टर ने कहा कि जब मुजाहिदीनो को कंटेनरो मे ठूस कर सबर ग़ान ले जाने के लिये चल दिये ,
जब बन्द कंटेनरों मे मुजाहिदीनो का दम घुटने लगा तो उन्होंने कंटेनरो को ज़ोर ज़ोर से पीटना शुरू कर दिया।
मगर अमन के ठेकेदारों ने बजाये कंटेनरो को खोलने के उनपर फ़ायरिंग का ह़ुक्म दे दिया ।
जर्मन रिपोर्टर के मुताबिक मेरी गाड़ी उन कंटेनरो के पीछे चल रही थी और अब पूरे रास्ते सड़क पर खून ही खून बह रहा था।
इस तरहा ज्यादातर मुजाहिदीनो को कंटेनरो मे ही शहीद कर दिया गया था। ।
और जो बच गये थे उनको रशीद दोस्तम जो कि आजकल फील्ड मार्शल है कि हवाले कर दिया ,
दोस्तम ने बचे हुये तालबान लड़ाकों को हाथ पैर बांधकर दस्ते-लैली के मक़ाम पर ज़िन्दा ही कब्रो मे दफन कर दिया ।
कुछ अर्से बाद इन मज़लूम मुजाहिदीनो की बेगौरो-कफ़न लाशे दस्ते-लैली के सेहरा मे ज़ाहिर होने लगी।
अमेरिकी हकूम़त की फ्रीडम आफ इनफार्मेशन एक्ट के मुताबिक, दस्ते-लील मे शहीद होने वालो की तादाद 1500 से लेकर 2000 के बीच थी।
जबकि तालबान के मुताबिक़ 10,000 से ज्यादा थी ,
दस्ते -लैली के इस वसीह सेहरा मे हर लाश अपनी दास्ताने ग़म सुना रही थी , उनके सर के रूमाल,टोपियां और तसबीह और इन मज़लूम शोहद़ा की लाशे मुजाहिदीनो से ये फरयाद कर रही है ।
हम अहद अपना निभा चले है!
तुम अहद अपना भुला ना देना !