पूरा भारत क्यों प्रेरित है राहुल गांधी की राजनीति से?
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
राहुल गांधी की राजनीति
कल बसपा सुप्रीमो मायावती ने दनादन 6 ट्वीट करके कांग्रेस पर आक्रमण किया और भाजपा द्वारा उनकी मदद करने का एहसास याद किया।
दरअसल यह सब यूं ही नहीं है , बीते शनिवार इलाहाबाद में आयोजित “संविधान सम्मान सम्मेलन” में “बहुजन नायक-राहुल गांधी” के नारों से पूरा आडिटोरियम गूंजता रहा और यही गूंज मायावती तक पहुंची , जिसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने 6 ट्वीट करके कांग्रेस पर आक्रमण किया।
कांग्रेस के सामाजिक न्याय और जातिगत जनगणना के मुद्दे समाज में असर कर रहें हैं और छोटे-छोटे जातिगत समूह और संगठन राहुल गांधी के पक्ष में लामबंद हो रहे हैं।
बहुत से पंजीकृत और अपंजीकृत संगठनों ऐसे है जिनका कांग्रेस से कभी कोई संबंध नहीं रहा मगर वह अपने मुद्दों को उठाने के कारण राहुल गांधी के साथ लामबंद होते जा रहे हैं।
ऐसे संगठनों में तमाम ओबीसी , अध्यापक, शिक्षामित्र, छात्र, अभ्यर्थी, बेरोजगार, कामगार और व्यापार के कई दर्जन संगठन इलाहाबाद में संविधान सम्मान सम्मेलन में “बहुजन नायक – राहुल गांधी” के नारे लगाकर पूरे वातावरण को उसी दौर में ले जा रहे थे जिस दौर में कभी कांशीराम की सभाएं होतीं थीं, कुछ नारे यह भी लगे कि “राहुल गांधी दूसरा कांशीराम हैं।
दरअसल पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को जो सबसे अधिक नुकसान हुआ उसका कारण दलित वोट ही थे जो मायावती के हाथ से 50% तक छिटक कर इंडिया गठबंधन की तरफ शिफ्ट हो गए।
तो अब सवाल यह है कि ऐसा क्यों हुआ? सवाल यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जब सपा-बसपा एक साथ चुनाव लड़े थे तब ऐसा क्यों नहीं हुआ?
दरअसल इसका सबसे बड़ा फैक्टर “राहुल गांधी” हैं जो तब उस गठबंधन में नहीं थे और अब इस इंडिया गठबंधन में हैं, यद्यपि इसका एक कारण अखिलेश यादव की टिकट वितरण की रणनीति भी थी।
मगर यह सच है कि जातिगत जनगणना और 50% आरक्षण को हटाने की राजनीति दलितों और ओबीसी समाज को राहुल गांधी के पक्ष में गोलबंद कर रही है और यह भविष्य में और तिव्रता से गोलबंद होती जाएगी।
भाजपा की राजनीति की यही सबसे अचूक काट है और इसे और अधिक प्रमुखता और तिव्रता से धार देने की आवश्यकता है।
इस मोमेंटम को बनाए रखने के लिए और प्रयास करना चाहिए, मोमेंटम को तिव्रता से बढ़ाने के लिए राहुल गांधी
▪️ जातिगत जनगणना
▪️ 50% का आरक्षण सीमा हटाने
▪️ MSP को कानूनी अधिकार
मुद्दे को लेकर केन्द्र की NDA सरकार को एक डेडलाइन दें और मांगें यदि पूरी नहीं हों तो फिर राजघाट , इंडिया गेट या रामलीला मैदान पर अनशन करें। इससे एक देशव्यापी आंदोलन स्वत: ही खड़ा हो जाएगा।
अन्ना हजारे की तर्ज पर यदि आमरण अनशन जैसा कुछ होता है तो यह कांग्रेस और राहुल गांधी के साथ साथ ओबीसी दलितों अल्पसंख्यकों और किसानों के हित में होगा।
साभार;पिनाकी मोरे