प्रधान मंत्री जी आप की तो तूती बोलती है ,पूरा देश राम मय हो गया है, इस लिए देश जवाब मांगता है
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
देस जवाब मांगता है”
पूरा देश राम मय हो गया,
आस्था के आगे सब सवाल बोने हो गए, कुछ महान भक्तों ने तो आने वाले चुनाव तक में इसका विश्लेषण कर दिया, लेकिन कुछ सवाल तो है जो आज भी जिंदा है और पूछे जाएंगे और जरूरी भी है।
पहला सवाल अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा क्यों की गई?
दूसरा सवाल जिस विराजमान रामलला ने कैस जीता था वह कहां है कहा तो यह गया था का वह चल मूर्ति है जबकि भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने उसे स्थापित माना था और उसी का आधार पर फैसला दिया था? खैर प्राण प्रतिष्ठा के दिन उस टेंट में विराजे रामलला को कहा रखा गया क्या उनकी भी पूजा की गई यह बात नदारद है अब तो लोग यह भी सवाल कर रहे हैं आखिर वे मूर्ति है कहां?
तीसरा सवाल जब शंकराचार्य को आपत्ति थी तो फिर 22 तारीख का ही मुहूर्त क्यों रखा गया, रामनवमी का क्यों नहीं?
सवाल चौथा यह कहा गया था प्रधानमंत्री मोदी प्रतीकात्मक यजमान होंगे क्योंकि बिना पत्नी के साथ बैठे किसी भी गृहस्थ द्वारा ईश्वर की प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराई जा सकती!
और जिन घोटालेबाज ट्रस्टी मिश्रा का जिक्र था कि वह मुख्य यजमान होंगे वह कहां गायब थे?
5 वा सवाल प्राण प्रतिष्ठा के समय कोई भी स्त्री सर खुला कर कर नहीं बैठती। फिर उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल सर खुला कर कर कैसे बैठी?
सवाल नंबर 6, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति धनकर गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा, परिवहन मंत्री अजीत गडकरी इतनी बड़ी जानी मानी हस्तियां आखिर क्या आमंत्रित नहीं थे और आमंत्रित थे तो क्यों नहीं पधारे?
सवाल नंबर 7, यह कहां जाता है जब किसी की प्राण प्रतिष्ठा होती है तो वह सार्वजनिक नहीं की जाती फिर यह पूरा इवेंट हजारों कैमरा की मदद से टीवी पर दिखाया गया इसकी आवश्यकता क्या थी?
जब कि यह मंदिर रामलला का है तो रामलला की मूर्ति प्रतिस्थापित होनी चाहिए थी, प्रतिस्थापित मूर्ति बालक श्री राम की है। नवजात श्री राम की नहीं जबकि लला अवधी में
नवजात बच्चों के लिए प्रयुक्त होता है जो पालने में झूलते हैं!
8 वा सवाल = आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत जी किस हेसियत से गर्भ ग्रह में विराजे थे,
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं आनंदीबेन पटेल उत्तर प्रदेश के राज्यपाल हैं और योगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री लेकिन भागवत के पास कोई प्रशासनिक ओहदा नहीं है, नहीं ट्रस्ट का कोई
ओहदा है, क्या उनकी उपस्थिति इस बात का परिचयाक नहीं की पूरी इवेंट भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस की एक कसरत थी!
सवाल नंबर 9:चारों शंकराचार्य तो पहले से ही इसके खिलाफत कर रहे थे लेकिन जिस रामानंद संप्रदाय का यह मंदिर बताया जा रहा है उनके सबसे बड़े आचार्य तक को इसमें नहीं बुलाया गया या वह नहीं आए यह भी प्रश्न विचार करने योग्य है।
अब इसके आगे अंतिम सवाल क्या यह आयोजन धार्मिक था या राजनीतिक ज्यादा था?
जो पूरे देश में देखा गया वह राम के प्रति आस्था थी। राम के प्रति श्रद्धा थी और जब-जब भी भगवान श्री राम का नाम लिया जाएगा यह देश ऐसे ही उत्सव मनाएगा। पर कुछ राजनीतिक विचारधारा के लोग यदि इसे अपना कॉपीराइट समझते हैं तो वह भूल करेंगे!
क्योकि 1992 की बाबरी विध्वंस के समय की आक्रामक आस्थाओं के ऊपर भी 1993 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह परस्त हुए थे और उत्तर प्रदेश में सामाजिक न्याय बिजयी हुआ था।
संवाद;पिनाकी मोरे