बड़े ही अफसोस की बात है कि पिछले सौ सालों में हम ने क्या किया और उन्हों ने क्या कुछ नहीं किया?
विशेष रिपोर्ट
साल की मेहनत और उसका रिज़ल्ट
कभी आपने गौर किया है कि पिछले सौ सालों में उन्होंने क्या किया है और हमने क्या किया है?
पिछले सौ सालों में वो संघटन बनाकर लोगो को आपस में जोड़ते रहे और हम फिरके बनाकर मुसलमानों को बांटते रहे।
पिछले सौ सालों में वो शिशु मंदिर से लेकर कॉलेज युनिवर्सिटी, बड़े हॉस्पिटल बनाते रहे और हम दाढ़ी टोपी में बाटकर पैजामे की ऊंचाई नापते रहे।
पिछले सौ सालों में वो अपनी शाखाएं बढ़ाते रहे और हम होटल, चाय पान की टपरी, सिगरेट पान गुटखा का मजा लेते रहे, दुकान,होटलों और नये स्वाद की बिरयानी की डिश चखने में रह गए।
पिछले सौ सालों में वो अपने बच्चों को चपरासी से लेकर जज बनाते रहे और हम केवल कव्वाली, नाच गाने डांस मुशायरों की महफिलें सजाते रहे।
पिछले सौ सालों से वो हिंदुओं एक हो जाओ और एकता का नारा लगाते रहे और हम दूसरे मुसलमानों से सलाम करने और हाथ मिलाने पर निकाह टूटने के फतवे देते रहे।
पिछले सौ सालों से वो सत्ता के लिए जद्दोजहद करते रहे और हम नेता, साहेब और थानों में टिप्स गिरी और दलाली करने में मस्त रहे।
पिछले सौ सालों की उनकी भी मेहनत रंग लाई और हमारी मेहनत भी रंग लाई…
आज छोटी से छोटी सरकारी आफिस के चपरासी से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज से लेकर प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक उनके लोग मौजूद हैं और हमारी मेहनत भी रंग लाई की, हमने यहां मुसलमानों को शिया, सुन्नी, वहाबी, देवबंदी, बरेलवी, अहले हदीस बना दिया, अशराफि बना दिया, पसमांदा बना दिया, शेख सैयद मुग़ल पठान, अंसारी धोबी, मंसूरी बना दिया, सब एक दूसरे के दुश्मन. कोई किसी को देखना पसंद नहीं करता। सब एक दूसरे से हसद बुगज रखते हैं। हमारी सौ साल की मेहनत रंग लाई हमने संघ का सपना जो कि मुस्लिम मुक्त भारत था हमने खुद पूरा कर ने में उन्हे सहयोग दिया।
हमारी सौ साल की मेहनत का नतीजा है कि लोग खुद को मुस्लिम कहना पसंद नहीं करते बल्कि खुद को अहले हदीस, बरेलवी, देवबंदी कहलाना पसंद करते हैं और गर्व से कहते हैं कि हम तो अहले हदीस हैं, हम तो कट्टर टनाटन सुन्नी हैं। हमारी लड़किया मदरसे, उर्दू , कुरान की तालीम छोड़ कर अंग्रेजी तालीम को अपनाने में लगी रही है तौर तरीके भी गैर मुस्लिमों की तरह अपनाए जा रहे है। हम अब इस्लामिक कल्चर को छोड़ गैर मुस्लिमो के मजहब की तरह बर्थ डे जैसे दिनों में केक काट कर हैप्पी बर्थ डे मनाने में ज्यादा खुशी मना ने में लगे है।
हमारे लिए ये सब हराम और नज़ाइज ही तो है न?
संवाद;मोहमद राशिद खान