बीजेपी ईवीएम के सहारे हर वक्त चुनाव जीत रही है पर चंडीगढ़ में मेयर के लिए बेलेट पेपर्स पर हुए चुनाव में हुआ ऐसा खेला कि बीजेपी की कैसे हुई जीत? जानने के लिए यह खबर पढ़े

विशेष
संवाददाता एवं ब्यूरो

पिनाकी मोरे

चंडीगढ़ मेयर चुनाव का सबक़

अब बात ईवीएम और बैलेट पेपर से आगे जा चुकी है

चंडीगढ़ नगर निगम के मेयर के चुनाव में इंडिया गठबंधन (आप+कांग्रेस) के साझा उम्मीदवार को 20 वोट मिले लेकिन उसमें से 8 वोट अवैध घोषित कर निरस्त कर दिए गए और इस तरह कुल 16 वोट पाकर भी बीजेपी के उम्मीदवार मनोज सोनकर ही जीत गए?

गौर तलब कीजिए कि यहां चुनाव बैलेट पेपर से हुए थे और इसमें कोई जनता द्वारा सीधा चुनाव भी नहीं होता। इस चुनाव में सिर्फ राजनीतिक पार्षद और स्थानीय सांसद ही वोट डालते हैं। तब भी इतना बड़ा खेला हो गया!
जबकि चंडीगढ़ नगर निगम में कुल 35 पार्षद मौजूद हैं और एक स्थानीय सांसद का वोट होता है। यानी कुल 36 वोट होते हैं जिनमें बहुमत का आंकड़ा महज 19 है।

बताते चलें कि बीजेपी के पास यहां कुल 14 पार्षद हैं। यहां की स्थानीय सांसद बीेजपी की किरण खेर हैं। इसलिए यह एक और वोट मिला लिया जाए तो भी कुल 15 वोट होते हैं। एक पार्षद अकाली दल का है। उसका वोट भी बीजेपी के उम्मीदवार को मिला। इस तरह कुल 16 वोट होते हैं। तो दूसरी तरफ़ यहां आम आदमी पार्टी के 13 पार्षद हैं। जबकि 7 पार्षद कांग्रेस हैं। इनका सीधा जोड़ करे तो आंकड़ा 20 होता है। यानी बहुमत से भी एक ज़्यादा। लेकिन चुनाव में कठित्वरूप से बड़ा खेला हो गया और हुआ ऐसे कि इन 20 वोटों में से 8 वोट रद्द कर दिए गए। इस तरह आप और कांग्रेस के साझा उम्मीदवार कुलदीप कुमार के खाते में कुल 12 वोट गिने गए और वे हार गए। आप ने इसे सरासर बेईमानी बताया है और देशद्रोह की संज्ञा दी है।

अब करते हैं मूल सवाल पर। ईवीएम को लेकर काफ़ी शोर मचाया जा चुका है। ईवीएम पर शक होने पर वीवीपैट की बात हुई। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ईवीएम को लेकर तो संदेह कम था, क्योंकि वह केवल अकेला डिवाइस था और किसी इंटरनेट से नहीं जुड़ा था लेकिन अब वीवीपैट के जुड़ने से वाकई गंभीर सवाल सामने आए हैं। इसके हल के लिए सौ फ़ीसद या ज़्यादा से ज़्यादा वीवीपैट की पर्चियों के मिलान का सुझाव दिया गया। लेकिन अब इन पर्चियों के खेल को लेकर कई सवाल उठे हैं। ऐसे में बैलेट पेपर की वापसी की वकालत की जाने लगी है। हालांकि राजनीतिक दलों ने इसे लेकर कभी गंभीर बहस नहीं छेड़ी न ही कोई आंदोलन किया।

लेकिन सूत्रों की बात करे तो पता चलता है कि चंडीगढ़ चुनाव के नतीजे बताते हैं कि अब बात ईवीएम और बैलेट पेपर से आगे पहुंच गई है। जब इतने छोटे से चुनाव में इतना बड़ा खेल हो सकता है तो लाखों वोटर्स वाली लोकसभा या विधानसभा चुनाव में क्या क्या नहीं हो सकता?। हालांकि इसके उलट यह तर्क भी दिया जा रहा है कि छोटे चुनाव में ऐसी हेरफेर आसान है लेकिन बड़े चुनाव में यह संभव नहीं।

लेकिन हमारा कहना है कि अब सबकुछ संभव है। तो फिर ईवीएम भी नहीं, और बैलेट पेपर नहीं तो और क्या विकल्प हो सकता है चुनाव का। यह गंभीर सवाल है। फ़िलहाल यही कहा जा सकता है कि जब तक सभी राजनीतिक दल और जनता दबाव नहीं बनाएगी। और लोकतंत्र के अन्य स्तंभ चुनाव आयोग, न्यायपालिका और मीडिया को आज़ाद नहीं किया जाएगा तब तक निष्पक्ष चुनाव की संभावना न के बराबर है। अब इन्हें आज़ाद कौन करेगा जब यह सब अन्य स्तंभ सत्ता के प्रभाव में हैं। दर हकीकत में मीडिया तो पूरी तरह बिकाऊ गोदी मीडिया बन ही गया है।

ऐसे मौजू पर न्यायपालिका से भी उम्मीद लगातार कम होती जा रही है और अब तो आपको यह भी मालूम होगा कि चुनाव आयुक्त चुनने की प्रक्रिया में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका को भी ख़त्म कर दिया गया है। चुनाव आयुक्त का चयन पूरी तरह से सरकार के हाथ में आ चुका है। हालांकि इससे पहले ही चुनाव आयोग की भूमिका पर लगातार शक और कई सवाल उठ रहे थे अब तो चुनाव आयुक्त का चयन प्रधानमंत्री, उनके द्वारा नामित कैबिनेट के एक मंत्री और विपक्ष के नेता द्वारा ही होगा। जिसमें साफ है कि दो-एक से बहुमत सरकार ही चुनाव आयुक्त को चुनेगी। और वो कैसा और किसे आयुक्त चुनेगी यह बताने वाली बात नहीं है।

इसलिए फ़िलहाल आगामी लोकसभा चुनाव में जनता की एकजुटता और ताक़त पर ही भरोसा किया जा सकता है कि वो अपने इस लोकतंत्र को किसी तरह बचा ने में कामयाब होती है या नही ?

संवाद मुकुल सरल

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