भारत के साहित्य में एक बड़ा मुकाम रखने वाली अमृता प्रीतम सिंह पंजाबी ज़बान की पहली शायरा है, जिनकी यौमे पैदाइश पर कुछ खास लेख

एमडी डिजिटल न्यूज और प्रिंट मीडिया

संवाददाता और ब्यूरो

मो अफजल इलाहाबाद

अमृता प्रीतम – पंजाबी ज़बान की पहली शाइरा.

अमृता प्रीतम के साथ सब से बड़ी नाइंसाफी ये हुई है कि उन्हें हमेशा साहिर लुधियानवी के साथ याद किया जाता है। गोया कि अमृता की अपनी कोई शिनाख्त नहीं है। उनकी पहचान साहिर के ज़िक्र की मोहताज है.।

ये किसी भी शाइर अदीब पर बड़ा ज़ुल्म है और ये ज़ुल्म सब से ज़्यादा अमृता पर हुआ है। ये बहुत अच्छा होता अगर अमृता को अपने आप में मुक्कमल तौर पर एक ज़ात मान लिया जाता और उन्हें साहिर के जादू से अलग देखने की भी कोशिश की जाती. वो जैसी थीं उन्हें उसी तरह देखा जाता।

अमृता पंजाबी ज़बान की पहली शाइरा थीं।. उन्होंने बहुत कम उम्र में ही शाइरी शुरू कर दी थी। लेकिन उनकी सब से मशहूर नज़्म “अज अखां वारिस शाह नूं” है। इस नज़्म में वो पंजाबी के मशहूर शाइर वारिस शाह(वफ़ात 1798)से ख़िताब करती हैं।. वारिस शाह ने मशहूर पंजाब की मशहूर दास्तान हीर रांझा लिखी थी। अमृता की ये नज़्म बंटवारे के खौफनाक मंजर को समेटे हुए है। इस नज़्म का शुरुआती हिस्सा यहां पेश किया जाता है।

आज वारिस शाह से कहूं, अपने क़ब्र से बोलिए
और किताब-ए-इश्क़ का कोई अगला सफ़ा खोलिए
एक पंजाब की बेटी रोई, तो आपने उस के ग़मों में नौहे लिखे
आज लाखों बेटियां रोती हैं। और ऐ वारिस शाह आपसे कह रही हैं।
ए दर्दमंद इन्सान अब उठीए और देखिए अपना पंजाब
आज ख़ुशकी-ओ-दरिया को इन्सानी लाशों से भर दिया गया।

इस नज़्म को अलग अलग ज़बानों में तर्जुमा किया गया और कई फ़िल्मों में इसे गाया गया.
शाइरी के अलावा अमृता ने नॉवेल भी खूब लिखे हैं।. उनका सब से मशहूर नॉवेल ‘ पिंजर’ है। ये नॉवेल भी बंटवारे के मौज़ू है. 2003 में इस पर फिल्म भी बनी थी जिसमें लीड रोल उर्मिला मार्तोडकर ने निभाया था।

1956 में अमृता को ‘सुनेहड़े’ (संदेशों) नज़्म के लिए साहित्य अकादमी अवार्ड दिया गया। साहित्य अकादेमी अवार्ड हासिल करने वाली अमृता पहली औरत थीं। 1982 में एक और नज़्म काग़ज़ तै कैनवस (काग़ज़ और कैनवस) के लिए भारतीय ज्ञानपीठ अवार्ड दिया गया।

अमृता ने दस से ज़्यादा नॉवेल लिखे, कई शेरी मजमूए और अपनी तीन हिस्सों में अपनी सवानेह (autobiography) लिखी। देखा जाए तो अमृता प्रीतम का इतना असासा है कि भारत के साहित्य में एक बड़ा मक़ाम रखती हैं। यही वजह है उनकी कई किताबों का इंग्लिश, उर्दू, हिन्दी, फ्रेंच, जर्मन, डेनिश वगैरह ज़बानों में तर्जुमा हो चुका है।.

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