मनीष सिसोदिया के बाद अभी इन्हे भी जमानत दी गई,मामला शराब कांड , वो भी बिना सुबूतों के
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
दिल्ली शराब घोटाला : बिना सबूत के सजा।
मनीष सिसौदिया के बाद आज के कविता को भी सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। मैं यह बात लंबे समय से कह रही हूं- दिल्ली शराब घोटाला भाजपा कार्यालयों में रची गई एक फर्जी साजिश के अलावा कुछ नहीं है। इसका उद्देश्य आम आदमी पार्टी को तोड़ना है।
एक सुबह, पुलिस आपके दरवाजे पर दस्तक देती है।
पुलिस कहती हैं, “आपको दो साल पहले की गई हत्या के लिए गिरफ्तार किया जाता हैं।
आप विरोध करते हुए कहते हैं, लेकिन मैंने कोई हत्या नहीं की है।
फिर पुलिस आपको गिरफ्तार करती है, और फिर आपको अदालत में घसीटा जाता है।
अदालत में पुलिस पूरी तरह से आत्मविश्वास से भरी हुई खड़ी है। पुलिस अदालत में कहती है- “हमारे पास यह मानने के लिए ठोस कारण हैं कि इस व्यक्ति ने हत्या की है।
आप पुलिस से एक तार्किक सवाल करते हैं, मुझे सबूत दिखाओ।
पुलिस ने जवाब दिया, हमारे पास नहीं है। आपने सबूत नष्ट कर दिया।
फिर पुलिस जवाब देती है, “हमें यकीन है कि हम सबूत पा लेंगे। समय पर।
कितना समय? आप पूछते हैं, कुछ स्पष्टता की उम्मीद करते हुए।
जितना समय हमें चाहिए,” वे जवाब देते हैं।
ठीक है, आप आह भरते हैं। फिर आप पूछते है की “क्या मुझे जमानत मिल सकती है?
नहीं, वे झल्लाते हैं। आप गवाह को प्रभावित कर सकते हैं।
फिर आप कहते है क्या आप मजाक कर रहे हैं? अगर मैं गवाह को प्रभावित करना चाहता , तो मेरे पास ऐसा करने के लिए पूरे दो साल थे! आप मुझे जमानत देकर भी अपनी जांच जारी रख सकते है।
पुलिस कहती है बिल्कुल नहीं, आप सहयोग नहीं कर रहे हैं।
आप हैरान होकर पूछते है मैं कैसे सहयोग नहीं कर रहा हूँ? मैं यहाँ हूँ, आपके सवालों का जवाब दे रहा हूँ, आपने जो भी पूछा है, वह सब कर रहा हूँ।
बस कबूल कर लो, पुलिस मांग करती हैं।
तब आप कहते है क्या बकवास है? आपके पास मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं है। आपके पास जांच के लिए दो साल थे। लेकिन कोई शव नहीं मिला, कोई हथियार मिला, कोई खून नहीं है, कुछ भी नहीं है! और मैं अपराध स्थल पर मौजूद भी नहीं था! आप जांच कर रहे है लेकिन जांच जांच कब खत्म होगी, ये भी नही बता रहे है, और ना ही मुझे जमानत दे रहे हैं। यह कैसे उचित है?
पुलिस कहती है “हमारे पास गवाह का बयान है!
आप कहते है एक व्यक्ति जो कल तक आपकी नजर में दोषी था.अब वह सरकारी गवाह बन गया है, उस गवाह ने नौ बयान दिए, उसने आखिरी बयान को छोड़कर एक बार भी मेरा नाम नहीं लिया।
न्यायालय इस तमाशे को सुनता है और फिर आपकी ओर मुड़ता है और आदेश देता है, और फिर आपको जमानत मिल जाती है।
यह सिर्फ एक कहानी नहीं है – यह उस वास्तविकता का प्रतिबिंब है जिसे आजकल हमलोग देख रहे हैं।
लोगों को अदालतों में घसीटना, उन्हें तुच्छ आधारों पर जेल में बंद करना और तथाकथित जांच जारी रहने के दौरान उन्हें सड़ने के लिए छोड़ देना। यह लोगो को कुचलने और असहमति को चुप कराने के लिए बनाई गई राजनीतिक रणनीति है।
याद रखें, यह पहली बार नहीं है जब इस तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया गया है, और यह निश्चित रूप से आखिरी बार भी नहीं होगा।
यह न्याय नहीं है; यह प्रतिशोध का सबसे पारदर्शी रूप है।
संवाद;
अंजना श्रीवास्तव,पिनाकी मोरे