मुसलमानो सिर्फ मंगनी या मंगनी की रस्म किस लिए? सीधे निकाह क्यों नहीं करवाते ?

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रिपोर्टर:-

मुस्लिम समाज में मंगनी की रस्म अदा कर देने के बाद मुसलमान बच्चे और बच्चियां एक दूसरे के साथ बात चीत व गिफ्ट देना शुरू कर देते हैं।
मुसलमान समाजी महाज़ पर किरदार की अजमत के खैरख्वाह है।

उन्हे समाज से बुराई खतम करने के लिए बरपा लिया गया है,
लेकिन क्या किया जाए अदम जिहालत का , मुसलमां इस कदर रस्म वा रिवाज के दलदल में फंस गया है कि यहूद भी शरमा जाए,
मुसलमान अगर मंगनी की रस्म के बजाए अपने बच्चों का सीधा निकाह कर दिया करें तो समाज में आसानियां वा सहूलियत बढ़ेगी ,
मेहनत गैर जरूरी तौर पर बरबाद नहीं होंगी और समाज का अखलाकी, इजतेमाई किरदार, पाकीज़गी वा वकार ज़्यादा महफूज़ रहेगा।

मिल्ली हालत अफसोसनाक हैं, बदकिस्मती से इल्म, वकार और अखलाक से आरी, भारत के पसमांदा मुस्लिम समाज में निकाह से पहले मंगनी की गैर इस्लामी, नाकाबिल ए कुबूल और एक अजीब वा गरीब रस्म ईजाद कर दी गई है!

मिस्कीन वा फकीर हैं जो मंगनी को निकाह का जुज समझ लेते हैं, बच्चों का सीधे सादा इस्लामी निकाह कर देने के बजाए पसमांदा शौक़ीयों के नए शौक हैं,
खुद को मुसलमान कहने वाले भूखे, नंगे, लालची, जाहिल वा मसाकीन भिकारियो का गिरोह है,
पसंद और रिश्ता तय होने के शुरुआती वा बुनियादी मरहले से ही ये जाहिल डाकू घूम घूम कर मुख्तलिफ लोगों के यहां खाते हैं,
तोहफे और लिफाफे वसूलते हैं और जहां पैसा ज़्यादा मिल जाता है वहीं गिर जाते हैं, इन भिखारियों का सारा चक्कर पैसे, जहेज़ और लूट मार रहता है !

गैरत वा वकार से खाली भिखारीयों की इस पसमांदा रस्म मंगनी” का मकसद भी सिर्फ दूसरों को लूटना और वक्त बरबाद करना होता है।
जबकि मंगनी जैसी अजीब वा गरीब पसमांदा रस्म की अदायगी किसी इन्सान के पसमांदा और बे हैसियत होने की साफ अलामत है, इसके इलावा इस रस्म के समाजी और अखलाकी नुकसान अलग हैं।

इस्लाम मुकम्मल दीन है, इस्लाम के अपने उसूल वा जाब्ते है,
इस्लाम पसमांदा है,जाहिल और रिवायत पसंदों का ऑप्शनल या इख्तियारी मजमून नहीं है, जो मर्ज़ी वह कर लो, इस्लाम खुलूस वा अमल चाहता है।
सच यही है कि इस्लाम से हटे तो पूरी तरह लपेट दिए जाओगे , खूंटे पर भी जगह नहीं मिलेगी, कुछ काम ना आएगा, इस्लाम ही राह ए निजात है।

इस्लाम इंसानों वा इस्लामी समाज में सहूलियत, सादगी और समाजी तावुन का सादा मिजाज़ देता है, नरमी वा सहूलियत फैलाने का हुकम देता है, पड़ोसियों, रिश्तेदारों और आम इन्सानों के साथ एहसान वा हमदर्दी की तलकीन करता है,
इस्लाम या इस्लामी सादगी से हटकर लालच, बेगैरती, ज़बरदस्ती, पसमांदगी जिल्लत और रुस्वाई है।
अल्लाह पाक हर पसमांदगी से महफूज़ रखे, आमीन।

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