राम रहीम के बाद अब बाबा रामदेव की बारी, जाने किस महिला पत्रकार ने खोले बाबा रामदेव के राज ?

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रिपोर्टर.

जिस तरह धीरूभाई अम्बानी के कारनामों पर लिखी किताब ‘द पोलियस्टर प्रिंस’ देश  के बुक स्टाल्स से गायब हो गई।

बस उसी तरह बाबा रामदेव पर लिखी गई नई किताब गॉडमैन टू टाइकून भी बाजार से जल्द लापता हो सकती है!

कई साल से बाबा रामदेव पर रिसर्च कर रहीं  अंग्रेजी पत्रकार प्रियंका पाठक नारायण ने इस किताब में बाबा के वो भेद खोलें हैं जो पतंजलि के समर्थकों को स्वीकार नहीं  होंगे।

प्रियंका कहती हैं कि इस किताब के लिए सबूत जुटाते  वक़्त उन्हें ऐसा महसूस हुआ किया कि ,कुछ हादसे बाबा का लगातार पीछा कर रहे थे।
उनके फर्श से अर्श तक पहुँचने के सफर में हादसों का अहम किरदार है!

न जाने क्यों जिस गुरु से बाबा रामदेव  कुछ भी गुर सीखते वो ही गुरु उनकी अद्भुत जीवन यात्रा से गायब हो जाता है ?
बहरहाल इससे पहले की ये किताब गायब हो जाय, आइये इसमें किये गए   कुछ खुलासों पर गौर करें।

बाबा रामदेव के 77  वर्षीय गुरु शंकर देव एक दिन सैर करने निकले , अचानक सुबह सैर करते वक़्त गायब हो गए।

गुरु शंकर देव ने ही हरिद्वार में बाबा रामदेव को दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट और उसकी अरबों रूपए की ज़मीने  दान की थीं!

जिस वक़्त गुरु शंकर देव जुलाई 2007 में गायब हुए उस वक़्त रामदेव, ब्रिटेन की यात्रा पर थे।

लेखिका प्रियंका अपनी किताब में लिखती हैं कि इतने बड़े हादसे के बावजूद बाबा ने विदेश यात्रा बीच में क्यो नहीं रोकी ?

वो दो महीने बाद स्वदेश लौटे। पुलिस ने जब मामले की गहराई से छानबीन नहीं  की तो  पांच साल बाद यानी 2012  में गुमशुदगी की इस घटना की जांच सीबीआई को दी गयी।

अब तक जांच जारी है पर रामदेव के गुरु शंकर देव के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिल पायी  है?
अबतक ये मामला सवालों के घेरे में है।

बाबा रामदेव के मित्र और आयुर्वेद के जाने माने वैद्य स्वामी योगानंद की हत्या भी कम रहस्यमयी नहीं है।
स्वामी योगानंद ने ही बाबा को आयुर्वेद दवा बनाने का लाइसेंस 1995  में उपलब्ध कराया था।

बाबा रामदेव 8  वर्षों तक योगानंद के लाइसेंस पर ही आयुर्वेद की दवा का उत्पादन करते रहे।
2003  में बाबा रामदेव ने योगानंद के साथ साझेदारी खत्म की।

साल भर बाद योगानंद का शव उनके घर में खून से लथपथ मिला। 2005  में हत्या की जांच बंद कर दी गयी!
प्रियंका पाठक की किताब बाबा के जीवन से जुड़े हर रहस्य की परतें उधेड़ने का प्रयास करती है।

प्रियंका लिखती है कि बाबा को आयुर्वेद के व्यापार से लेकर स्वदेशी  के नारे तक  का रास्ता  राजीव दीक्षित ने दिखाया था।
आज जिस व्यापक रूप में बाबा का विशाल  बाजार खड़ा है उसका ब्लूप्रिंट दीक्षित ने तैयार किया था।

बाबा के साथ एक राजनैतिक दाल गठित करने वाले दीक्षित 2010  में एक कार्यक्रम कर रहे थे।
तभी बाथरूम में उनकी मौत हो गयी। ऐसा कहा गया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।

अगले दिन दीक्षित के चेहरे का जब रंग बदलने लगा तो कोई  पचास से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने लिखित रूप से दीक्षित के शव का पोस्टमॉर्टेम करने को कहा।
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और दीक्षित का दाह संस्कार कर दिया गया !

प्रियंका ने इस किताब में महाराज  करमवीर का ज़िक्र भी किया है। करमवीर दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट के उपाध्यक्ष थे।
मार्च 2005  में ट्रस्ट के व्यवसायीकरण  को लेकर करमवीर का रामदेव से विवाद हुआ और वे अलग हो गए।

इसी तरह 2009  में में बाबा रामदेव का आस्था टीवी के संस्थापक सदस्य किरीट मेहता से भी विवाद हुआ।
मेहता के प्रयास से ही बाबा रामदेव को आस्था टीवी के ज़रिए नाम मिला था।

प्रियंका एक अंग्रेजी वेबसाइट को दिए साक्षात्कार में कहती हैं कि बाबा के अरबों रुपये के साम्रज्य में ऐसी  अनेक कथाएं दबी पड़ी हैं
जिनके बारे या तो रामदेव जानते हैं या उनके सहयोगी बालकृष्ण।

बाबा की सफलता का सच जो भी हो पर  ये साफ़ है कि आज बाबा,  योग और आयुर्वेद के ग्लोबल ब्रांड हैं और  सायकिल से चार्टर प्लेन तक की उनकी शिखर यात्रा  प्रधानमंत्री मोदी से कम चौंकाने वाली नहीं है?

 

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