लगभग 80किलो मीटर लंबा और 25से 30किलो मीटर चौड़ाई वाले जल डमरू रास्ते की हकीकत जाने

संवाददाता

बाब अल मंदेब का महत्व

बाब अल मंदेब आज कल बड़ी चर्चा में है यह 80 किलोमीटर लंबा और 25 से 30 किलोमीटर चौड़ा एक जलडमरू है जो लाल सागर को अरब सागर व अदन की खाड़ी से जोड़ता है। जलडमरू को उर्दु में आबनाए آبناے अरबी में मजीक مضيق और इंग्लिश में strait कहते हैं।

बाब अल मंदेब का मतलब आंसूओं का दरवाज़ा होता है। मंदेब अरबी शब्द नदब ندب से बना है। जिस का मतलब है कि किसी की मौत पर रोना इस जलमार्ग का नाम बाब अल मंदेब कयों पड़ा इस के कई कारण बताए जाते हैं। जिन में एक यह है कि इस रास्ते से अफ्रीकी यमन पर और यमन वाले अफ्रीका पर आक्रमण करते रहते थे। और हारने वाले को गुलाम बना कर अपने साथ ले जाते थे जिस पर उनकी महिलाएं समुद्र के किनारे आ कर रोती थीं इस लिए इस का नाम बाब अल मंदेब पड़ गया।

कहा जाता है कि शुरुआती इंसानों ने अफ्रीका से निकल कर दुनिया में फैल जाने के लिए इसी रास्ते बाब अल मंदेब का इस्तेमाल किया था इस के एक तरफ़ यमन है। तो दूसरी तरफ अफ्रीकी देश जिबूती है जिबूती मुस्लिम आबादी वाला एक छोटा सा देश है जो कभी सोमालिया का हिस्सा होता था और फ्रांस ने इस पर कब्जा कर इसे सोमालिया से अलग कर दिया था।

यह रास्ता शुरू से अपना महत्व रखता है।लेकिन पहले इस का महत्व सिर्फ एशिया व अफ्रीका के बीच रास्ते की तौर पर था। पर 1869 में स्वेज नहर बनने के बाद इस का महत्व बढ़ गया यह एशिया से अफ्रीका व यूरोप दोनों के लिए रास्ते की तौर पर इस्तेमाल होने लगा। इस रास्ते का महत्व इस से समझा जा सकता है कि जिबूती जैसे छोटे से देश में अमरीका रूस फ्रांस ब्रिटेन और चीन के नोसैनिक अड्डे हैं।

जिन का काम इस रास्ते पर अपने देश के मफादात को सुनिश्चित करना है और इसी रास्ते की वजह से यमन व सोमालिया में शताब्दियों से ग्रह युद्ध कराया जाता रहा है सिर्फ़ आज की बड़ी ताकतों द्वारा ही नहीं बल्कि इस्लाम से पहले भी कैसर व किस्रा ग्रह युद्ध कराते थे।

संवाद
खुर्शीद अहमद

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