शहर ए मक्का की मस्जिदों को छोड़ दुनिया की किसी मस्जिद में गैर मुस्लिमो के प्रवेश पर कोई रोक,कोई पाबंदी नहीं है और न कभी थी जाने इस बारे में पुख्ता जानकारी की एक खास रिपोर्ट

संवाददाता, और ब्यूरो

मो अफजल इलाहाबाद

मस्जिद में गैर मुस्लिम का प्रवेश

मक्का शहर की मस्जिदों को छोड़ कर दुनिया की
किसी मस्जिद में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर कोई रोक कोई पाबंदी नहीं है और न कभी थी, तुलसीदास जब राम चरितमानस लिख रहे थे मस्जिद में ही सोते थे। गुरु नानक देव जी के बारे में बताया जाता है कि वह मक्का व बग़दाद की मस्जिदों में भी गए थे।

अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम के जमाने में नजरान क्षेत्र से कुछ ईसाई मस्जिद में आए और अपनी इबादत शुरू कर दी। अल्लाह के रसूल सल्ललाहू अलैहे वसल्लम ने देखा और उन्हे रोका नहीं।अभी कुछ हफ्ते पहले पाकिस्तान में चर्च जलाए गए उस समय मस्जिद के लोग आगे आए और ईसाईयों से कहा कि जब तक चर्च की मरम्मत नहीं हो जाती हमारी मस्जिद में आप इबादत कर लिया करें। यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि मस्जिद तौहीद की जगह है।वहां शिर्किया इबादत या दूसरी पूजा के लिए नहीं हो सकती, ईसाई अल्लाह की इबादत कर रहे थे इस लिए उन्हें रोका नहीं गया था।

बता दें कि इबादत से हट कर मस्जिद में प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं है। मस्जिद के दरवाजे सब के लिए खुले हुए हैं। हां मस्जिद के कुछ आदाब हैं जिन का पालन मुसलमानों को भी करना है और ग़ैर मुस्लिम को भी।
फिर अगर किसी ग़ैर मुस्लिम को शिकायत होती है कि मेरे मुस्लिम मित्र मुझे कभी मस्जिद ले कर नहीं गए तो सोचने का मुकाम है कि ऐसा क्यों है ?

दर असल हम खुद मस्जिद से कटे हुए हैं, हमारी जिंदगी में मस्जिद की वह अहमियत नहीं है जो होनी चाहिए, जब हम खुद कटे हुए हैं तो दूसरों को कैसे ले जाएंगे? पहले मुसलमान मस्जिद से जुड़ा हुआ होता था, रमज़ान में घर से अफतारी ले कर जाता था। खुद भी अफतार करता था और दूसरों को भी कराता था। अब घर से अफतारी भेज दी जाती है गरीबों व मुसाफिरों के लिए। लेकिन खुद जा कर अफतार नहीं करते।

एक अफतार का ही मामला नहीं है बहुत सी चीजें साबित करती हैं कि हमारी जिंदगी में मस्जिदों की वह अहमियत नहीं है जो होनी चाहिए। हां मस्जिदें अब खूबसूरत बन रही हैं। उस में आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जा रही हैं लेकिन दूरी बढ़ गई है।

यूरोप व साउथ इंडिया की मस्जिदों का हवाला देना नाकाफ़ी है कि वहां बाकायदा लोगों को मस्जिद का विजिट कराया जाता है। सवाल यह है कि अगर यूरोप व साउथ इंडिया वाले ऐसा कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते ?

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