शायद यहीं वजह है कि बीजेपी हो रही है बेनकाब

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

देशबन्धु में संपादकीय आज.

इलेक्टोरल बॉण्ड्स : भाजपा बेनकाब

बेंगलुरु के तिलक नगर पुलिस स्टेशन में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के खिलाफ दर्ज एफआईआर ने पूरी भारतीय जनता पार्टी को मुश्किल में डाल दिया है।

यह एफ़आईआर बेंगलुरु हाईकोर्ट के निर्दश पर की गयी है। इसके अनुसार सीतारमण एवं अन्य लोगों ने केन्द्रीय जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय का डर दिखाकर 8 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा की राशि उगाही थी।

जनाधिकार संघर्ष परिषद के सह अध्यक्ष आदर्श अय्यर ने बंगलुरु की जन प्रतिनिधियों की विशेष अदालत में एक शिकायत दर्ज की थी जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि चुनावी बॉण्ड्स के रूप में जबरन डरा-धमकाकर धन की वसूली की गयी है। एसीएमएम कोर्ट ने शिकायत की एक प्रति रिकॉर्ड के लिये थाने भेजने का भी निर्देश दिया है।
एफ़आईआर के लम्बित होने के कारण सुनवाई 10 अक्टूबर तक के लिये टाली गयी है।

शिकायतकर्ता के अनुसार सीतारमण ने ईडी अधिकारियों के माध्यम से जो जबरन वसूली की, उसमें अन्य भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का भी सहयोग था। शिकायत में ईडी अधिकारियों तथा केन्द्रीय कार्यालय के अधिकारी तो शामिल हैं ही, कर्नाटक भाजपा के पूर्व सांसद नलिन कुमार कतील, भाजपा अध्यक्ष बी वाई विजयेन्द्र एवं एक और भाजपा नेता शामिल है।

आरोप है कि विभिन्न कार्पोरेट कम्पनियों के उच्चाधिकारियों को गिरफ्तारी का डर दिखाया गया तथा छापों की धमकी देकर भाजपा के लिये चुनावी बॉण्ड्स खरीदने पर मजबूर किया गया। उल्लेखनीय है कि इस वर्ष की फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा सरकार द्वारा 2019 में लाई गई इलेक्टोरल बॉण्ड्स की योजना को असंवैधानिक बतलाते हुए इसे लोगों के सूचना के अधिकार का हनन भी बताया था क्योंकि भाजपा सरकार उन लोगों के नाम ज़ाहिर करने से इंकार करती रही जिन्होंने उसे इस रूप में चंदा दिया था।

सरकार का यह कहना था कि जनता को इससे कोई सरोकार ही नहीं होना चाहिये कि किन लोगों ने किन राजनैतिक दलों को चंदा दिया है। ये बॉण्ड्स भारतीय स्टेट बैंक के जरिये खरीदे गये थे। स्वतंत्र याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि लोकसभा चुनाव (2024) के पहले यह सूची जारी होनी चाहिये ताकि नागरिकों को पता चल सके कि किस पार्टी ने किस कम्पनी से कितने पैसे लिये हैं जबकि इसके लिये सरकार तथा उसके इशारे पर एसबीआई तैयार नहीं थी। बैंक अधिकारियों का कहना था कि इस काम के लिये उन्हें तीन माह का समय लग जायेगा। उद्देश्य यह था कि तब तक चुनाव निकल जाये तत्पश्चात ही ये आंकड़े सार्वजनिक किये जायें ताकि उसका चुनावी परिणामों पर असर न हो। देश की कारोबारी लॉबी ने भी इस मामले में शामिल होकर उच्चतम न्यायालय से गुजारिश की थी कि ऐसा न होने दिया जाये वरना उनकी साख पर भी बट्टा लग सकता है।

सुप्रीम कोर्ट की कड़ाई के बाद जब ये आंकड़े केन्द्रीय निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर अपलोड हुए तो देश में तूफान खड़ा हो गया। उसके साथ ही ये जानकारियां भी सामने आईं कि किस तरह से छापेमारी तथा गिरफ्तारियों का डर दिखाकर कम्पनियों एवं कारोबारियों से भाजपा ने बॉण्ड्स खरीदवाए थे। इतना ही नहीं, यह भी सामने आ गया कि ईडी, आयकर, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों का किस तरह से दुरुपयोग भाजपा सरकार द्वारा किया गया था।

ईडी तथा आयकर के सूत्र वित्त मंत्री के हाथों में होते हैं। इसलिये पहले से ही सीतारमण की ओर भी शक की सुइयां घूमती रही थीं। यह अलग बात है कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के पीछे छिपती रहीं।नया खुलासा उसी श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिये। वैसे तो पहले ही यह स्पष्ट हो चुका था कि भाजपा इन एजेंसियों के माध्यम से धन उगाही करती रही है, नयी बात तो यह है कि भाजपा का यह दावा भी खोखला साबित हो गया है कि इन एजेंसियों को सरकार की ओर से कोई निर्देश नहीं दिये जाते और उनके अधिकारियों को भ्रष्टाचार को रोकने की खुली छूट दी गयी है।

इस आशय के बयान स्वयं मोदी संसद के भीतर तथा मीडिया में देते रहे हैं। इस एफ़आईआर ने साबित कर दिय़ा है कि विपक्ष का यह आरोप बिलकुल सही था कि सरकार के इशारे पर ये छापेमारी तथा गिरफ्तारियां होती रही हैं जिसका उद्देश्य लोगों से धन उगाही करना है।इलेक्टोरल बॉण्ड्स के खुलासे के बाद ज्ञात हुआ कि न केवल छापेमारी के डर से कम्पनियों ने बॉण्ड्स खरीदे बल्कि बहुत से ऐसे भी हैं जिन्होंने इसके बल पर सरकार से बड़े ठेके प्राप्त किये।

भाजपा खुद को भ्रष्टाचार से मुक्त तथा सारे विपक्ष को भ्रष्ट कहती आई है। जांच के नाम पर न जाने कितने विपक्षी लोगों के यहां छापे मारे गये और अनेक को जेल भेजा गया। यदि भाजपा का भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस का दावा इतना ही सही है तो सरकार को चाहिये कि वह इस मामले की जांच करे तथा भाजपा जो अपने को ‘पार्टी विद ए डिफरेंस’ कहती आई है, उसे चाहिये कि वह तत्काल सीतारमण का इस्तीफा ले। हालांकि ऐसा होगा नहीं क्योंकि सभी जानते हैं कि वे कठपुतली मात्र हैं जो मोदी-शाह के इशारे पर काम करती हैं।

सीतारमण को ही चाहिये कि वे तब तक अपने आप को वित्त मंत्रालय से अलग कर लें जब तक कि इस मामले की जांच पूरी नहीं होती। लोकतांत्रिक और नैतिकता का तकाज़ा यही है। इसे लेकर कांग्रेस हमलावर है, जो कि स्वाभाविक ही है।
संवाद;पिनाकी मोरे

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