सूरत से केवल 13किलो मीटर की दूरी पर स्थित है साचिन जिसके बारेमे इतिहास की जानकारी शायद ही किसी को पता हो लेकिन यहां बताया जा रहा है,

सूरत-नवसारी-मुंबई स्टेट हाइवे पर सूरत से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है साचिन. आपको इसके इतिहास के बारे में शायद ही पता हो क्योंकि भारत के इतिहास में अफ्रीकी योगदान को बहुत सोच समझकर खारिज किया गया है।

ब्रिटिश शासन के दौरान 1791 में अफ्रीकी मूल के लोगों ने एक राज्य स्थापित किया था साचिन. ये अफ़्रीकन मूल के सिदी लोगों की रियासत थी. छोटे बालों वाले इन अफ्रीकियों को भारत में ‘हब्शी’ के नाम से जाना जाता है। इनमें से ज्यादातर लोग ‘हॉर्न ऑफ़ अफ्रीका’ से भारत आए थे।

यहाँ के शासक सूफ़ी सुन्नी मुसलमान थे। जिन्हें नवाब की उपाधि प्राप्त थी। नवाब को 9 तोपों की सलामी का अधिकार प्राप्त था। उनके पास अपना घुड़सवार फौज थी, एक बैंड था, हथियार थे, मुद्रा थी और स्टाम्प पेपर भी थे। 1948 में जब देसी रियासतों का भारत में विलय हो रहा था तब साचिन का भी भारत में विलय कर दिया गया।

उस वक्त साचिन की आबादी 26000 थी जिसमें 85 फीसदी हिंदू और 13 फीसदी मुसलमान थे।
भारत के प्रसिद्ध अफ़्रीकन लोगों में मलिक अम्बर उन ताकतवर इथोपियाई नेताओं में से थे। जिन्हें 1548 से 1626 के दौरान खूब शोहरत मिली।

पश्चिमी भारत के औरंगाबाद ज़िले के पास खुल्दाबाद में मलिक अम्बर की कब्र आज भी मौजूद है। जिन लोगों ने मलिक अम्बर के बारे सुन रखा है, वे अमूमन ये नहीं जानते कि वह एक इथोपियाई था।
दरअसल भारत विभिन्न संस्कृतियों और प्रजातियों से मिलकर बना देश है। इसलिए किसी के साथ उसके मूलवंश, धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी प्रकार का विभेद करना न केवल असंवैधानिक है बल्कि एक प्रकार से भारत के इतिहास को ही नकारना है।

संवाद
मनोज अभिज्ञान

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