1300साल पहले पैदा हुए अरब विद्वान खलील इब्न अहमद प्रभाव आज भी हिंदी उर्दू सायरी पर बरकरार है,जाने और भी कुछ खास जानकारी
संवादाता एवं ब्यूरो
मोहमद अफजाल इलाहाबाद
खलील बिन अहमद : एक अरब विद्वान जिन का प्रभाव हिंदी काव्य पर पड़ा।
तेरह सौ साल पहले पैदा हुए अरब विद्वान खलील बिन अहमद का प्रभाव आज भी हिंदी उर्दू शायरी पर है।
उन का संबंध कबीला अज़्द से था और उनका जन्म सन 718 में ओमान में हुआ था, बचपन में ही उनके मां-बाप उन्हें इराक़ के बसरा शहर ले आए वहीं उनकी परवरिश और शिक्षा हुई और वही उन का इंतकाल सन 786 में हुआ।
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बताते चले कि खलील बिन अहमद एक बड़े शायर और अदीब थे। लेकिन बड़ी ही सादगी से रहते फटे पुराने कपड़े, जूते पहनते बड़े बड़े लोग उन के शिष्य थे। लेकिन उन से कभी कोई फीस नहीं ली। पिता का काम शाहीन व बाज़ जैसी चिड़ियों को पालना, और ट्रेनिंग देना था। उन्होंने ने भी रोजी-रोटी के लिए वही काम किया एक छोटा बाग था। उससे कुछ आमदनी हो जाती थी।
हज को गए दुआ मांगी कि अल्लाह मुझे नया इल्म दे, अल्लाह ने उन की दुआ सुन ली,
उन्होंने देखा कि सरकारी भाषा होने के कारण बहुत से गैर अरब लोग अरबी में शेर कहते हैं और खूब गलती करते हैं। उनके अशआर में, सकता होता है उस में रवानी नहीं होती और फिर उसे अगर म्यूजिक के साथ गाया जाए तो म्यूजिक का भी मज़ा ख़राब हो जाता है उस में नगमगी पैदा नहीं होती।
इस कमी को दूर करने के लिए उन्होंने शायरी के लिए वज़न तैयार किए ताकि शायर शेर कहते हुए उस पर अपने शेर को नापलें और ग़लती न करे। बड़ी मेहनत से उन्होंने पंद्रह वज़न तैयार किए इन वज़न को बहर कहा जाता है और इस विधा को इल्मे उरूज़ कहते हैं।
इल्मे उरूज़ के चलते अरबी फारसी शायरी में इंकलाब पैदा हो गया और इस का प्रभाव उर्दू व तुर्कों शायरी पर भी पड़ा।
फिर जब हिंदी कविता लिखी जाने लगी तो उसमें भी खलील बिन अहमद के बनाए हुए बहर का ख्याल किया गया।
इल्मे उरूज़ को ही हिंदी में छंद कहते हैं, खलील बिन अहमद के बनाए हुए छंद का प्रयोग हिंदी काव्य में खूब हुआ, हिंदी काव्य में कुछ और छंद बढ़ाए गए लेकिन इस विधा की स्थापना खलील ने की थी इस लिए उन्हें पूरा क्रेडिट मिला। आज भी हिंदी के अच्छे कवि खलील के छंद को पढ़ते हैं और उस का प्रयोग अपनी कविताओं में करते हैं। विस्तार से जानने के लिए कमेंट बाक्स में एक लेख का लिंक दिया जाता है उसे पढ़ें।
खलील बिन अहमद ने इल्मे उरूज़ के इलावा भी कुछ और काम किए जिस से शायरी में नगमगी पैदा हुई और लोगों को शायरी में दिलचस्पी होने लगी।
दुनिया में किसी भाषा की जो डिक्शनरी पाई जाती है वह अल्फाबेट या वर्णमाला पर आधारित होती है। खलील ने एक ऐसी डिक्शनरी तैयार की जो अल्फाबेट पर आधारित न होकर मूंह के जिस हिस्से से आवाज निकलती है उस पर आधारित थी। यानी مخارج पर मिसाल के तौर पर अरबी भाषा का अक्षर ऐन ع हलक के सबसे निचले हिस्से से निकलता है, तो उन्होंने ऐन से शुरू शब्दों को पहले रखा और मीम दांतों के बीच से निकलता है तो उस से बने हुए शब्दों को सबसे आखिर में, यह काम भी उन्होंने शायरों और म्यूजिशियन की दिक्कतों को सामने रखते हुए किया था इस डिक्शनरी का नाम उन्होंने كتاب العين रखा जिसे काफी पसंद किया गया।
बाद में लोगों ने इल्मे उरूज़ और इस डिक्शनरी पर काम किया पर स्थापना करने वाले खलील बिन अहमद थे!