23साल के करियर में उनकी ऊंची आवाज कोई दबा ना सका,;चंद्रचूड़

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

भारत के चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा है, कि “23 साल के करियर में उनकी ऊँची आवाज़ कोई दबा नहीं सका।
चंद्रचूड़ जी आपके दावे के उलट,‘सुप्रीम कोर्ट हर उस फ़ैसले में नागरिकों की आशाओं के विपरीत, अपनी आवाज़ नीची कर लेता है, जिसे हम न्याय कहते हैं।’
नागरिकों का विश्वास है, ‘आप बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कर रहे।

सूत्र बताते हैं कि उमर ख़ालिद पिछले तीन साल से जेल में हैं। उनकी सुनवाई लगातार टलने का आधार क्या है.?
यह आपकी आवाज़ कैसे ऊँची होने देगा.?
शिक्षाविद शोमा सेन का छह जून 2018 से जेल में होना आपकी आवाज़ का ऊँचा होना तो नहीं है.?
लोकतंत्र को चुनौती देने वालों का खुलेआम घूमना, धर्म संसद के नाम पर नफ़रत फैलाने वालों की बुलंद, बेख़ौफ़ आवाज़ का होना आपकी आवाज़ का नीचा होना नहीं है क्या?

इसी तरह बिलकिस बानो से अन्याय, जाकिया ज़ाफ़री के आँसू आपकी आवाज़ का नीचा होना नहीं है.?
सरकारें ख़रीदी जाती रहीं, सुप्रीम कोर्ट चुपचाप बैठा रहा, यह आपकी आवाज़ दबाने की कोशिश नहीं थी?
सरकार में बैठे लोग संविधान बदलने की माँग कर रहे हैं। बाबरी मस्जिद को गिराने वाले लोग सरेआम अख़बारों में लिख रहे हैं। इससे आपकी आवाज़ नीची नहीं होती.?
हाईकोर्ट के जज न्याय के आधार संविधान की जगह धर्मशास्त्रों में खोज रहे हैं। जज कह रहे हैं लेकिन क़ानून का असली उद्गम वेद हैं संविधान नहीं। इससे आपकी आवाज़ नीची नहीं होती है?

प्रोफ़ेसर डॉक्टर मोहन गोपाल को आप निश्चित रूप से जानते होंगे। उन्होंने महत्वपूर्ण सवाल उठाए। यह सवाल बताते हैं, आपकी आवाज़ कोई दबा रहा है। मुझे विश्वास है, आप हिंदी नहीं पढ़ते होंगे। सुनते नहीं होंगे।वरना आप उस मीडिया कॉन्क्लेव में नहीं जाते।जहाँ नफ़रत की आवाज़ बहुत ऊँची है। मेरी किताब 752 पेज की है, इसलिए आप न्यायपालिका वाला हिस्सा,नहीं तो कम से कम किताब के अध्याय 54 और 57 तो पढ़ ही सकते हैं। आपके पास अनुवादक हैं, जो आपका काम आसान कर सकते हैं। आपके पास समय कम होता है। इसलिए, दो अध्याय ही पर्याप्त हैं।

अध्याय 54 – सरकार दख़ल देती है तो न्यायपालिका पलटवार करे : दुष्यंत दवे
अध्याय 57- 2047 तक हिन्दू राष्ट्र वाया संविधान: डॉक्टर मोहन गोपाल।
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे और प्रोफ़ेसर मोहन गोपाल ने जो चिंता जताई है, वह आपकी आवाज़ नीची होने का पर्याप्त प्रमाण है। आपके पास एक शानदार न्यायिक विरासत है। पिता को सरकार से लोहा लेने के लिए जाना जाता है। जबकि हम देख रहे हैं, आप सरकार के दख़ल, हस्तक्षेप को केवल अपने भाषणों में जगह देते हैं। हमारे पास उपदेश देने के लिए बहुत से लोग हैं।

हम भारतीय नागरिक आपसे केवल इतना ही चाहते हैं, आप ऊँची आवाज़ को संविधान और लोकतंत्र के लिए बुलंद करें। किसी वक़ील को डपट देने से, मीडिया कॉन्क्लेव में प्रधानमंत्री के बग़ल में तस्वीर खिंचवाने से आपकी आवाज़ ऊँची नहीं होगी।
मुश्किलों में पड़े देश को आपकी ऊँची आवाज़ की ज़रूरत है। भारत के प्रधान न्यायाधीश महोदय, अ

पनी आवाज़ और भी बुलंद कीजिए.

मूल पोस्ट ( दया शंकर मिश्रा )
संवाद;पिनाकी मोरे

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