25जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का शिगूफा क्या लाजमी है?
विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो
25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने के केंद्र की मोदी सरकार के फैसले पर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बहुत ज़ोरदार जवाब दिया है। अखिलेश यादव ने कहा है कि 30 जनवरी को “बापू हत्या दिवस” मनाया जाना चाहिए।
इस तरह के ऐलान यह बताते हैं कि नरेंद्र मोदी तीसरी पारी में भी किसी रचनात्मक , सकारात्मक सोच के साथ काम करने की नीयत के साथ नहीं आये हैं। यह फैसला मोदी की अगुआई वाली अतीतजीवी सरकार के दिमाग़ी दीवालियेपन का एक और हास्यास्पद उदाहरण है। 4 जून को चुनाव नतीजे आने के बाद नरेंद्र मोदी 9 जून को शपथ भी ले चुके थे। फिर इस 25 जून को क्यों नहीं मनाया संविधान हत्या दिवस?
बेरोज़गारी, महँगाई, आर्थिक असमानता पर कोई ठोस काम न करने वाली मोदी NDA सरकार इसी तरह की बेवक़ूफ़ियाँ कर सकती है। दस साल सत्ता में गुज़ारने के बाद अचानक तीसरी पारी में प्रधानमंत्री मोदी को आपातकाल और संविधान की हत्या की बहुत याद आने लगी है। इससे पहले क्यों नहीं मनाया संविधान हत्या दिवस?
क्या मोदी के सीनियर रहे अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ बीजेपी नेता मूर्ख थे जिनकी अकल में इस तरह की कोई योजना कभी नहीं आई?
यह दरअसल इस लोकसभा चुनाव से पहले और उसके बाद राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता से मोदी सरकार की घबराहट का नमूना है। चुनाव प्रचार के दौरान संविधान पर संकट का जो मुद्दा राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने बहुत ज़ोरदार तरीके से उठाया और उत्तर प्रदेश में बीजेपी को धूल चटा दी । बीजेपी अपने बूते पर बहुमत भी नहीं जुटा सकी। नरेंद्र मोदी इस करारी पिटाई को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं।
उनकी बिलबिलाहट इससे पहले लोकसभा के सत्र के दौरान भी दिखी जब राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में उन्होंने सदन में कांग्रेस पर हमला किया। इससे पहले नरेंद्र मोदी ने विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का ऐलान भी किया था। उस घोषणा पर आम जनता ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
इमरजेंसी वाले नये ऐलान का भी यही हश्र होना है। देश की युवा आबादी अपने भविष्य को लेकर मोदी सरकार से ठोस फैसले चाहती है, वह आगे देखना चाहती है, बार-बार पीछे मुड़ कर देखने में उसकी दिलचस्पी नहीं है।
संवाद; पिनाकी मोरे