सय्यद अहमद बद्दीउद्दीन हलबी R A कुतुब ऊल मदार से मशहूर हुए ,आप वालिद और वालिदा दोनो की तरफ से फातिमी सय्यद है
विशेष
संवाददाता
दम मदार बेड़ा पार
बर्रे सग़ीर मे बेशुमार सूफ़िया तब्लीग-ए-दीन करते हुए तसरीफ लाए और हज़ारों लाखों दिल उन्होंने तौहीद की शमा से मुनव्वर किए व इश्क़-ए-रिसालत की ख़ुशबू से मुअत्तर किए।
उनमे से एक नाम एक अजीम दरवेश व मुबल्लिग-ए-आज़म का भी है जिन्होंने बहुत से मुल्कों मे सफ़र किए तब्बलीग-ए-दीन के लिए
सैय्यद अहमद बद्दीउद्दीन हलबी ( रहमतुल्लाह अलैह ) उर्फ़ मे आप क़ुतुब-उल-मदार से मशहूर हुए ।
आप वालिद और वालिदा दोनों की तरफ़ से फ़ातिमी सैय्यद है (आले रसूल) आपके वालिद “सैय्यद अली हलबी” हज़रत इमाम जाफ़र की औलाद मे से हैं!
आपकी विलादत सीरिया के शहर हलब (Aleppo) मे हुई थी।
15 साल की उम्र तक आपने दीनी तालीम हासिल कर ली थी।
आप सूफ़ी होने के साथ मुफ़्ती व मुफ़्फ़किर भी थे।
तालिम व तरबियत के बाद आपने पहला सफ़र बैत-अल-मुक़द्दस का किया वहाँ आपकी मुलाक़ात हज़रत बायज़ीद-ए-बुस्तामी रहमतुल्लाह अलैह से हुई जो नक़्शबंदियों के इमाम है आपने उनसे फ़ैज हासिल किया और वापस मुल्क लौट गये। और माँ से इजाज़त लेकर हज के लिए हिजाज़-ए-मुक़द्दस के सफ़र पर निकल गये।
आपने 550 साला तवील ज़िंदगी पाई बहुत सी सल्तनतें और हुकूमतें देखीं। बहुत मुल्कों मे सफ़र करते रहे। आप जहां से गुज़रते वहाँ तौहीद की शमा रौशन करते जाते। ज़ोक दर ज़ोक लोग आपसे बैत होते जाते इश्क़-ए-रिसालत की चाशनी मे अपने दिलों को डूबो देते।
आपकी हयात मुबारक पर छोटी सी पोस्ट मे लिखना आसान नही।
मुख़्तसर लिखने की कोशिस कर रहा हूँ ।
आप एक यमन के बहरी जहाज़ पर सवार हो गए एक लंबे सफ़र के बाद और सफ़र की मशक़्क़त के बाद हिन्दोस्तान के गुजरात की सरज़मीन पर पहुँचे। रास्ते मे बहुत से लोग भूँक और प्यास से हलाक हो गये थे। जब आप हिन्द पहुँचे तो वो दौर सुल्तान महमूद ग़ज़नबी का था। आप ने मुस्तक़िल क़याम उत्तर प्रदेश कानपुर के क़स्बा मक़नपुर मे फ़रमाया और लाखों दिलो मे तौहीद की शमा को रौशन किया।
संवाद; मोहमद अफजल इलाहाबाद