अबकी बार 4सौ पार नामुमकिन , राम भरोसे बीजेपी की बागडोर

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

देशबन्धु में संपादकीय आज.

भाजपा फिर रामभरोसे

रविवार की शाम को जब लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण के अंतर्गत 11 राज्यों-केन्द्र शासित प्रदेशों की 93 सीटों के लिये प्रचार बन्द हो चुका था, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अयोध्या के उसी रामलला मंदिर में पहुंचे जिसकी प्राणप्रतिष्ठा उन्होंने 22 जनवरी को की थी। जिस उद्देश्य को लेकर आधे-अधूरे मन्दिर में भव्य समारोह के जरिये यह काम हुआ था, उसने धर्माचार्यों एवं धर्म का मर्म समझने वालों के एक बड़े वर्ग को चाहे नाराज़ किया हो परन्तु भारतीय जनता पार्टी को उम्मीद थी कि राममंदिर का 5 सदियों का कथित विवाद हल करने का सियासी फ़ायदा ज़रूर मिलेगा।

जिस तीसरे चक्र की वोटिंग आज मंगलवार को होने जा रही है, उसमें भाजपा की हालत वैसी ही खस्ता समझी जा रही है जैसी कि पहले दो चरणों (19 और 26 अप्रैल) के मतदान के बाद लगाये गये अनुमानों में बतलाई गई थी। ज़्यादातर सर्वे भी बतला रहे हैं कि इंडिया गठबन्धन ने पहले चरण से ही बढ़त बना ली थी जो दूसरे चरण के मतदान में और भी सघन हो गई।

अधिकतर विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार कह चुके हैं कि मंगलवार के तीसरे चरण के मतदान के बाद भाजपा के हाथ से चुनाव निकल चुका रहेगा। उसके बाद इतनी कम सीटें रह जायेंगी कि उसके लिये नुकसान भरपाई की गुंजाइश तक नहीं बचेगी।

राज्यवार विश्लेषण भी दर्शाते हैं कि अब भाजपा की बड़ी आशा नरेंद्र मोदी व केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात से ही है। दूसरा भरोसा उसे उत्तर प्रदेश से था परन्तु वहां समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर कांग्रेस ने सीटों का जैसा बंटवारा किया है और जिस सुन्दर तालमेल के साथ दोनों दलों के नेता (खासकर राहुल गांधी व अखिलेश यादव) प्रदेश को मथ रहे हैं, उससे भाजपा की अनेक सीटें उसके हाथ से निकलती दिखाई दे रही हैं। यहां 2019 में भाजपा ने 80 में 62 सीटें जीती थीं।

भाजपा एवं उसके गठबन्धन एनडीए के लिये देश भर में चल रहा ‘दक्षिण में साफ़, उत्तर में हाफ़’ का नारा यूं ही शोर मचाने के लिये नहीं लग रहा है- ज़मीन की वास्तविकता भी यही बतला रही है। जिन सीटों पर चुनाव हो चुके हैं, जिन पर मंगलवार को चुनाव हो रहे हैं और बची-खुची जिन पर शेष चार चरणों में होंगे, उनमें इंडिया गठबन्धन मजबूत दिखाई दे रहा है। दक्षिण को लेकर जो कहा जा रहा है अगर वह शत-प्रतिशत सही न भी हो, तब भी ज्यादातर लोगों को यह मानने से कोई गुरेज़ नहीं है कि भारत के सांस्कृतिक रूप से सम्पन्न और विवेकपूर्ण समाज वाले द्रविड़ प्रखंड के पांचों राज्य (तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, आंध्रप्रदेश व तेलंगाना) इंडिया गठबन्धन की झोली लबालब करने जा रहे हैं।

यह भी अब मोटे तौर पर साफ़ हो गया है कि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र व बिहार भाजपा के वाटरलू साबित होंगे। राजस्थान, छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी जिस तरह से भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत मिली थी, वैसा अबकी होना सम्भव नहीं बतलाया जा रहा है। ये तीनों राज्य गेमचेंजर हो सकते हैं जिनमें कांग्रेस अब मुकाबले में लौट आई है। हरियाणा व उत्तराखंड (किसान आंदोलन के कारण) तथा दिल्ली व पंजाब (अरविन्द केजरीवाल की गिरफ़्तारी के चलते) भाजपा की पकड़ में वैसे नहीं रह गये हैं, जिस प्रकार से वे वर्तमान लोकसभा में हैं। मणिपुर के दुखद प्रसंग के चलते पूर्वोत्तर राज्यों तथा अनुच्छेद 370 हटाये जाने के चलते जम्मू, कश्मीर व लद्दाख में भी भाजपा विरोधी लहर है।

पिछले दिनों एक प्रतिष्ठित संस्था द्वारा कराये गये सर्वे ने बताया है कि लोगों के लिये धर्म व राष्ट्रवाद के मुद्दे गौण हैं। उन्होंने रोजगार, महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे मसलों को वरीयता दी है जो मतदान करते समय उनके जेहन में रहेंगे। भाजपा व एनडीए की मुश्किलों की शुरुआत यहीं से होती है। एक ओर तो जिस पुलवामा व बालाकोट की घटनाओं के जरिये उभारे गये राष्ट्रवाद के बल पर उसने पिछला चुनाव जीता था, वैसा कुछ होता प्रतीत नज़र नहीं आ रहा है, तो दूसरी तरफ, चुनाव आधा रास्ता पार कर चुका है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी अब तक अपने धुव्रीकरण, विपक्षियों के कथित भ्रष्टाचार तथा कांग्रेस के परिवारवाद के कार्ड के अलावा कोई दूसरी काट इंडिया गठबन्धन के प्रचार को विफल करने के लिये नहीं ढूंढ़ पाये हैं।

दूसरी तरफ़ ,कांग्रेस के न्याय पत्र के आगे लाचार नज़र आ रहे मोदी ने इतना समय व ऊर्जा जाया कर दी है कि अब उनके पास अपनी पार्टी के घोषणापत्र व खुद की गारंटियों की चर्चा करने की शक्ति ही नहीं बची। उन्होंने पहले कांग्रेस के न्याय पत्र पर ‘मुस्लिम लीग की छाया’ बतलाई तो बाद में कहा कि ‘कांग्रेस ऐसा कानून लायेगी कि लोगों के मंगलसूत्र तक छीनकर मुसलमानों में बांट देगी।’ गांधी परिवार को बदनाम करने के लिये मोदी ने कभी कहा कि ‘राजीव गांधी ने इंदिरा की सम्पत्ति पाने के लिये विरासत टैक्स खत्म कर दिया’, तो कभी दावा किया कि ‘जब तक वे (मोदी) जीवित हैं, किसी को भी दलितों, पिछड़ा वर्गों, आदिवासियों का आरक्षण छीनकर मुस्लिमों को नहीं देने देंगे।’

इसके विपरीत रणनीतिक सूझबूझ से जनसरोकार के मुद्दों पर टिके रहकर कांग्रेस-इंडिया ने इस चुनाव को संविधान तथा लोकतंत्र की लड़ाई में बदल दिया। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां, उन्हें भाजपा में शामिल कराना, जांच एजेंसियों का दुरुपयोग, ईवीएम, इलेक्टोरल बॉन्ड्स और अब कोविशील्ड पर हुए खुलासे से घिरते मोदीजी और भाजपा रामभरोसे होते हैं तो बिलकुल आश्चर्य नहीं करना चाहिये।

साभार:पिनाकी मोरे

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