महात्मा गांधी जब विदेश में पढ़ने गए तो इन बड़ी हस्तियों का उन्हे साथ मिला

विशेष संवाददाता एवं ब्यूरो

महात्मा गांधी जब इंग्लैंड पढ़ने गए तब उन्हे अली इमाम, हसन इमाम, मज़हरुल हक जैसे साथी मिले।

महात्मा गांधी जब साउथ
अफ़्रीका गए तो उन्हे हाजी दादा, अब्दुल्लाह और हाजी उमर जोहरी जैसे लोगों का साथ मिला।

महात्मा गांधी जब भारत वापस आए तो उन्हें सबसे पहले साथ मिला सिंध के पीरों का।
महात्मा गांधी जब चंपारण गए तो उन्हें पीर मोहम्मद मुनीस और शेख़ गुलाब जैसे लोगों का साथ मिला।

महात्मा गांधी ने जब रॉलेट एक्ट का विरोध किया तो उन्हे साथ मिला सैफ़ुद्दीन किचलु और हकीम अजमल ख़ान जैसे लोगों का, जिनके चाहने वालों ने जलियांवाला बाग़ और पुरानी दिल्ली स्टेशन पर अंग्रेज़ी गोलियाँ खाई।

महात्मा गांधी ने जब असहयोग आंदोलन छेड़ा, तब उन्हे पुरी ख़िलाफ़त कमेटी ने सपोर्ट किया। अपने ख़र्चे पर पुरे हिंदुस्तान का दौरा करवाया।
जब महात्मा गाँधी ने दांडी मार्च निकाला, तब जस्टिस अब्बास तैयबजी जैसे लोगों का उन्हे साथ मिला।

जब बात अहिंसा की आई, तब ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान जैसा साथी मिला, जिसने लड़ाके कहे जाने वाले पठानो को “क़िस्सा ख़्वानी बाज़ार” में हुवे अंग्रेज़ी हिंसा के बाद भी अहिंसा की राह दिखाई।

इन तमात चीज़ों के बाद भी लोगों को गांधीजी के क़ातिल नथ्थूराम गोडसे ही याद हैँ, पर 1917 में गाँधीजी की जान बचाने वाले बख़्त मियां अंसारी को बिलकुल ही नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।.

जबकि बुज़ुर्गों का ये क़ौल है कि मारने वाले से बड़ा बचाने वाला होता है, पर यहां लोग गाँधीजी की हिफ़ाज़त करने वाले बख़्त मियां अंसारी को याद करने की जगह गांधीजी के क़ातिल नथ्थूराम गोडसे को याद करते हैं।
कुल मिला कर महात्मा गांधी की विरासत भारत के मुसलमानो की विरासत है, और हम उसे यूँ ही ज़ाया नहीं होने दे सकते हैं।

संवाद
मोहमद उमर अशरफ

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