वो तो समझ चुके है कि मोदी जी का अब तिलिस्म टूट चुका है

विषेश संवाददाता एवं ब्यूरो

तकीब डेढ़ साल बीत चुका है मणिपुर को
क्या मोहन भागवत को मणिपुर की चिंता है?
क्या उन्हें राजनीतिक मर्यादा की चिंता है?
क्या उन्हें विपक्ष के दमन की चिंता है?

बिल्कुल भी नहीं। इसमें से कोई भी बात सच नहीं है।
सच तो यह है कि जो बातें पिछले कुछ साल से राहुल गांधी और कांग्रेस कह रही थी, अब वह बात जनता समझ गई है और वह इस चुनाव में दिख गया। मोहन भागवत की चिंता यह है कि मीडिया द्वारा बनाई गई मोदी की फेंक इमेज एक्शपोस हो गयी है और यह उनके लिए अच्छा नहीं है।

इसलिए भागवत अभिभावक बनकर विपक्ष की भाषा में समझाइश देने की कोशिश कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि जनता वही बातें राहुल गांधी से सुनेगी तो सत्ता छिनने का खतरा है। वे खुद प्रवचन देंगे तो जनता को इस भ्रम में डाल सकते हैं कि जो कुछ गड़बड़ है उस पर हम खुद मुखर हैं और इससे थोड़ा फायदा हो सकता है।

अगर उन्हें मणिपुर की चिंता होती तो डेढ़ साल से यह चिंता कहां थी?
अगर उन्हें विपक्ष या राजनीतिक मर्यादा की चिंता होती तो नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री ही न बनाते, जिनका मर्यादाओं से 36 का आंकड़ा है।

सब से अहम बात ये है कि मोहन भागवत समझ गए हैं कि नरेंद्र मोदी का तिलिस्म टूट चुका है। वे जो कर रहे हैं, वह डैमेज कंट्रोल के सिवा और कुछ नहीं है।

संवाद;पिनाकी मोरे

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