हरीश राठौड़: जैसलमेर के धोरों से निकला एक चमकता सितारा, बना आर्ट ऑफ गिविंग का ब्रांड एंबेसेडर — ये है असली भारत का असली हीरो!

भुवनेश्वर की चकाचौंध भरी रौशनी में जब देश के चुने हुए 35 युवा मंच पर थे, तब एक नाम अलग से चमक रहा था — हरीश राठौड़। राजस्थान के जैसलमेर जैसे सीमावर्ती इलाके से निकले इस नौजवान ने वो कर दिखाया, जो आज के युवाओं को दिशा भी देता है और ऊर्जा भी। हरीश अब सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक आंदोलन का चेहरा बन गए हैं। उन्हें हाल ही में देश की प्रतिष्ठित संस्था “आर्ट ऑफ गिविंग” का ब्रांड एंबेसेडर घोषित किया गया है।
भुवनेश्वर में 13 से 15 अप्रैल के बीच आयोजित यूथ कॉन्क्लेव कोई मामूली इवेंट नहीं था। इसे अयोजित किया था KIIT और KISS विश्वविद्यालय ने, जिनकी स्थापना की है वो शख्सियत, जिनका नाम है प्रो. अच्युत सामंता — वो व्यक्ति जिनकी सोच ने 40,000 आदिवासी बच्चों को नक्सलवाद से निकालकर शिक्षा की दुनिया में खड़ा कर दिया। और उसी मंच पर राजस्थान का प्रतिनिधित्व कर रहे थे हरीश राठौड़।
अब आप सोच रहे होंगे कि क्या खास किया हरीश ने? तो ज़रा गौर कीजिए — समाज सेवा, नेतृत्व विकास और सामाजिक समरसता जैसे भारी-भरकम विषयों पर जहां लोग रटे हुए भाषण देते हैं, हरीश ने वहां जमीनी अनुभवों की ऐसी मिसाल दी कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बताया कि कैसे सीमावर्ती इलाके में युवा अभी भी संसाधनों से जूझते हुए समाज के लिए कुछ बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी बातों में सिर्फ शब्द नहीं, तजुर्बा था। और वही तजुर्बा बना उनकी पहचान की वजह।
आर्ट ऑफ गिविंग, जो कि सेवा और संवेदना की नींव पर खड़ी संस्था है, उसने जब हरीश के योगदान और उनकी दृष्टि को देखा, तो एक पल भी नहीं गंवाया — और बना दिया उन्हें ब्रांड एंबेसेडर! ये कोई गिफ्ट हैंपर नहीं, ये एक जिम्मेदारी है। और हरीश उस जिम्मेदारी को समझते हैं। वे पिछले तीन सालों से आर्ट ऑफ गिविंग के साथ जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं, खासकर युवाओं के बीच, जहां बातें कम और काम ज्यादा होता है।
मंच पर भाषण देने वाले बहुत हैं, लेकिन समाज को बदलने की आग लेकर चलने वाले बहुत कम। और उन्हीं गिने-चुने लोगों में से एक हैं हरीश। ना उनके पास कोई बड़ी डिग्री है, ना किसी राजनेता की सिफारिश। उनके पास है तो बस — काम करने की भूख, कुछ बदलने का जूनून, और सेवा का जुनूनी दृष्टिकोण। आज जहां युवा वर्ग को Netflix और Instagram की रील्स में उलझा हुआ बताया जाता है, वहीं हरीश जैसे लोग उस नैरेटिव को तोड़ते हैं — और बता रहे हैं कि असली रील लाइफ वो है, जो समाज की रियल तकलीफों को सुनती, समझती और सुलझाती है।
तो हरीश की ये कामयाबी सिर्फ एक ताज नहीं है, ये एक मशाल है — उन लाखों युवाओं के लिए जो सोचते हैं कि “क्या मैं कुछ बदल सकता हूं?” हां, बदल सकते हो। जैसलमेर से निकला ये लड़का बता रहा है कि जब इरादे साफ हों, तो भूगोल कोई दीवार नहीं बनाता।
आख़िर में बस इतना कहेंगे —
हरीश तुम चलो, हम सब तुम्हारे साथ हैं।
तुम जहां जाओ, वहां उम्मीद की रोशनी फैले।
और अगर कोई पूछे कि असली भारत कैसा दिखता है —
तो हम कहेंगे: हरीश राठौड़ जैसा।