ऐसी है इस्लाम की सिख कि बेवा के सामने अपनी बीवी से इतना प्यार न जताओ !

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रिपोर्टर.

एक शख़्स ने यूरोप में इस्लाम क़बूल किया।
उस से पूछा गया, के इस्लाम की कौन सी बात ने तुम्हे मोतासिर किया ?

उस ने कहा, “सिर्फ़ एक वाक़ीया ने मुझे हिदायत का सबब बना दिया।”
उस ने कहा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वस्सल्लम की मजलिस लगी है।
सारे लोग बैठे हैं एक आदमी उठ कर कहता है।
या रसूल्लल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम) मेरा बेटा तीन दिन से लापता है।
आप दुआ कर दीजिये के मेरा बेटा मिल जाए।
अभी हुज़ूर दुआ करने वाले ही थे कि, एक दूसरा आदमी जो पहले से वहां बैठा था।

उस ने कहा, या रसूल्लल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम) मैं इस के बेटे को पहचानता हूँ। फ्ला बाग़ में अभी अभी खेलते देखा है।
बाप ने जैसे ही सुना तो दौड़ लगा दी। हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम ने कहा, बुलाओ उसे और पूछा बहत जल्दी है ?

उसने कहा, या हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम ।
वो बेटा है मेरा। तीन दिन से बिछड़ा हुआ है।
माँ भी उस की परेशान है। तीन दिन से कुछ खाया पिया नहीं है।

सोंचा जल्द मिल जाए तो उसकी माँ से भी मिलवा दूँ ।
हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम ने कहा, बहुत ख़ूब।
पर सुनो तुम्हे बुलाने की एक ख़ास वजह थी।
पूछा हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम बतायें क्या वजह है ?

हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम ने कहा, जब तुम्हें तुम्हारा बेटा मिल जाए, तो उसे “बेटा” कह कर न बुलाना।
बल्कि उसका नाम जो तुमने रखा है उसे लेकर पुकारना।
उस ने कहा, जी हुज़ूर पर वो मेरा बेटा है। अगर बेटा कह कर पुकार लिया तो हर्ज़ क्या है ?

हुज़ूर सल्ललाहु अलैहे वस्सल्लम ने कहा, तुम तीन दिन से बिछड़े हो। तुम्हारे लक़ब में ज़बरदस्त मिठास होगी।
और हो सकता है, खेलने वाले बच्चे में कोई यतीम बच्चा भी खेल रहा हो।
और जब तुम अपने बेटे को बेटा कह कर पुकारोगे, तो उस का कलेजा कट जाएगा।

के काश आज मेरा बाप भी ज़िंदा होता, तो मुझे भी ऐसे ही बेटा कह कर पुकारता।
फ़रमाया तुम अपना शौक घर जा कर पूरा कर लेना।
लेकिन जब बच्चे एक साथ खेल रहे हो तो उन्हें बेटा न कहना नाम लेकर पुकारना ।

तो ये है इस्लाम का मिजाज़, जो कहता है बेवा के सामने अपनी बीवी को प्यार मत करो ! ग़रीब के सामने अपनी दौलत की नुमाईश न करो।

बल्कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने यहां तक फ़रमाया, अपने घर में पक रहे गोश्त की खुशबु से अपने ग़रीब पड़ोसी को तक़लीफ़ न दें!
बल्कि पानी ज्यादा डाल दें  और शोरबे की एक प्याली ग़रीब पडोसी के घर भी भेज दीजिये।

अगर ऐसा नहीं कर सकते, तो ऐसे वक़्त में खाना पकाओ जब ग़रीब पड़ोसी के बच्चे सो जाए।
क्योंकि उन्हों ने अगर ज़िद कर ली तो उनके आंसू कौन पोछेगा ? ये है इस्लाम और उन की तालिमात।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम ने यहां तक फ़रमाया, “ज़मीन पर बेहतरीन घर वो है, जिस में यतीम की इज़्ज़त की जाए।

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